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मकान की खुदाई में मिले 52 जिंदा कारतूस, 1965 के भारत-पाक युद्ध के गवाह

भारत और पाकिस्तान बॉर्डर सीमा पर किस तरीके से 1965 और 1971 में भारत ने पाकिस्तान को धूल चटाई थी उसके प्रमाण आज भी बॉर्डर के गांवों में मिलते रहते हैं. जब भी बॉर्डर के गांवों में लोग अपने घरों की खुदाई करवाते हैं तो पुराने बारूद मिलते रहते हैं.

खुदाई में मिले कारतूस खुदाई में मिले कारतूस
दिनेश बोहरा
  • बाड़मेर,
  • 26 जून 2020,
  • अपडेटेड 7:43 PM IST
  • बॉर्डर के पास के घर की खुदाई में मिले जिंदा कारतूस
  • 1965 में हुए पाक-भारत युद्ध से है कनेक्शन

राजस्थान के रेगिस्तान के बॉर्डर के इलाकों में 1965 और 1971 की लड़ाई के बाद भी कई बार भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी का माहौल बन गया था जिसके चलते कई बार दोनों देशों की सीमाओं ने बॉर्डर पर मोर्चा संभाल लिया था यहां तक कि 1999 में तो बॉर्डर पर जबरदस्त तरीके से सेना का जमावाड़ा नजर आया था और कई गांव भी उस समय सेना ने अपने कब्जे में ले लिए थे जिसके चलते कई गोला-बारूद रेगिस्तान के अंदर आज भी मकान खुदाई या खेतों में मिलने का सिलसिला जारी है.

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ऐसा ही एक मामला राजस्थान के बाड़मेर जिले के भारत-पाक सीमा से महज 2 किलोमीटर पहले मीठाडाउ गांव में पीएम आवास योजना के लिए अपने घर की खुदाई का काम मजदूरों से शुरू करवाया तो घर में खुदाई के दौरान मिट्टी की हांडी में 52 जिंदा कारतूस मिले.

बाड़मेर जिले के चौहटन इलाके में जब मकान मालिक ने खुदाई शुरू की तो उसे तीखी लोहे की वस्तु देखी तो मजदूरों के भी होश उड़ गए लेकिन उसके बाद जब पूरी खुदाई हुई तो पता चला कि यहां पर भी किसी समय में सेना का मूवमेंट हुआ करता था.

दरअसल, सरहदी बीजराड़ थाना क्षेत्र के मिठडाऊ गांव में एक मकान के नींव खुदाई का कार्य चल रहा था कि अचानक बारूद मिलने से परिवार में हड़कंप मच गया. आनन फानन में उस जगह को छोड़कर परिवार को पहले दूर किया और बाद मिठडाऊ निवासी मदन कुमार तत्काल पुलिस थाने पहुंचा और बारूद होने की सूचना पुलिस को दी जिस पर बीजराड़ एसएचओ कैलाश दान मय जाब्ता मौके पर पहुंचे और खुदाई में मिले जिंदा कारतूस बरामद कर बीएसएफ को भी सूचना दी.

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उप पुलिस अधीक्षक कार्यालय द्वारा इस बारे में जानकारी सेना को दी जाएगी इसके बाद यह सामान सेना द्वारा सुरक्षा उपकरणों से मौके से हटाया जाएगा तब तक प्रशासन की ओर से मकान मालिक को खुदाई बंद करने के आदेश दे दिए गए हैं. इससे पहले भी बॉर्डर के इलाकों में इसी तरीके से खुदाई के दौरान सेना से जुड़े सामान मिलते रहते हैं.

जानकारों का ऐसा मानना है कि 1965 युद्ध के दौरान गोलाबारी में गांव को जला दिया था कई लोगों को गांव का छोड़कर चौहटन की तरफ आना पड़ा था. इसी दौरान सरकार की ओर से गांव की रखवाली के लिए ग्रामीणों को भी हथियार दिए जाते थे. ऐसे में हो सकता है कि यह वही कारतूस हों. 


 

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