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कहानी उस शख्स की, जो पत्नी के चलते 28 साल रहा 'मृत', जिंदा साबित करने में घिसे जूते

एक शख्स 28 सालों तक कानूनी रूप से मृत रहा. खुद को जिंदा साबित करने के लिए उसे दो सालों तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी. इसी साल 16 अगस्त को, दो साल की लंबी अदालती लड़ाई के बाद आखिरकार मैनोएल मार्सिआनो दा सिल्वा का मृत्यु प्रमाण पत्र रद्द किया गया.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 01 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:52 PM IST

ब्राजील के टोकेन्टिन्स क्षेत्र के एक 71 वर्षीय व्यक्ति को उसकी पूर्व पत्नी और दो गवाहों की गवाही के आधार पर, 1995 में मृत घोषित कर दिया गया था. इसी के चलते उन्होंने अपने जीवन के अगले 28 साल कानूनी तौर पर मृत होकर बिताए.

28 सालों से 'मृत' था जीवित शख्स

इसी साल 16 अगस्त को, दो साल की लंबी अदालती लड़ाई के बाद आखिरकार मैनोएल मार्सिआनो दा सिल्वा का मृत्यु प्रमाण पत्र रद्द किया गया. ब्राजीलियाई अधिकारियों के अनुसार, वह मर चुका था और 28 सालों पहले उसे टोकेन्टिन्स में ऑगस्टिनोपोलिस के एक कब्रिस्तान में दफनाया गया था. 

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मौत की जांच कराई तो पता लगा...

मैनोएल के लिए तब मुसीबत हो गई थी, जब वह अपनी पेंशन नहीं ले पा रहे थे. उसे अपने बीमा के आधार पर मुफ्त स्वास्थ्य सेवा तक नहीं मिल पा रही थी. ऐसे में उन्होंने अपनी 'मौत' की जांच शुरू की और उन्हें पता चला कि यह उनकी पूर्व पत्नी ने दो लोगों के साथ मिलकर उन्हें अधिकारियों के सामने उन्हें मृत घोषित कर दिया था.

'जिंदा' होने के लिए लड़नी पड़ी कानूनी लड़ाई

यह स्पष्ट नहीं है कि मैनोएल की पूर्व पत्नी ने उन्हें 1995 में मृत क्यों घोषित कर दिया था, लेकिन उनका दावा है कि उन्हें इसके बारे में 2012 में ही पता चल पाया था. जब उन्होंने स्थानीय चुनाव में मतदान करने की कोशिश की, तो उन्हें बताया गया कि वह मर चुके हैं. उस समय, उन्हें वास्तव बहुत फर्क नहीं पड़ा लेकिन जब आम चीजों में दिक्कत होने लगी तो उन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया.

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मुश्किल थी खुद को जिंदा साबित करने की लड़ाई

भले ही केवल कागज पर हो लेकिन उन्हें पुनर्जीवित होना जरूरी था.  और जितना उन्होंने कभी सोचा नहीं था ये उससे कहीं ज्यादा कठिन था. अंत में, सत्तर साल के व्यक्ति को मृत्यु प्रमाण पत्र का विरोध करने और एक नया जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए एक वकीलों की जरूरत पड़ी.

'कैसे जीवित साबित हुआ शख्स'

आखिरकार उसकी उंगलियों के निशान के पेपिलोस्कोपिक टेस्ट से यह साबित करने में मदद मिली कि वह जीवित था, लेकिन उसे यह पुष्टि करने के लिए कई गवाहों की भी आवश्यकता थी कि वह वास्तव में मरा नहीं था. अंत में, वह 'खुद को जिंदा साबित करने' में कामयाब रहे, लेकिन उनकी मृत्यु का रहस्य अभी भी बना हुआ है. 

'अनपढ़ मां को कुछ लोगों ने गुमराह किया था'

मनोएल के बच्चों का मानना ​​है कि उनकी अनपढ़ मां को कुछ लोगों ने गुमराह करके उनके पिता को मृत घोषित कर दिया गया था. हालांकि, खुद मनोएल को इस बात की परवाह नहीं है कि ऐसा क्यों हुआ. उसे बस इस बात की परवाह है कि वह जीवित लोगों के बीच वापस आ गया है. दिलचस्प बात यह है कि मैनोएल का मामला अनोखा नहीं है. बता दें कि, हमने भारत के जीवित 'मृतकों' को देखा है. यहां एक आदमी ने यह साबित करने में 18 साल लगा दिए कि वह जीवित है.

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