
किसी भी चीज की कीमत उसकी खूबियों पर निर्भर करती है. कुछ ऐसा ही इस चाकू के साथ भी है. जो लाखों रुपये में बिकता है. ये दमिश्क चाकू हैं, जो जर्मनी में मिलते हैं. इन्हें बनाने के पीछे एक परंपरा छिपी है, जो लोगों को काफी आकर्षित करती है.
सदियों पुरानी ये कला आज भी जीवित है. वहीं इसे बनाए जावे का तरीका बेहद हटकर है. चाकू जितनी अधिक गुणवत्ता का होगा, उसकी कीमत उतनी अधिक होगी. इसकी कीमत 5000 डॉलर (करीब 4 लाख रुपये) से भी अधिक तक पहुंचती है.
इसे जर्मनी में दुनिया के सबसे पुराने पेशों में से एक माना जाता है. चाकू बनाने वालों का कहना है कि ये कई पीढ़ियों तक चल सकता है, बशर्ते इसे बनाते वक्त कई चीजों का ख्याल रखना पड़ता है. इसे बनाने में वैसे दो से तीन दिन का वक्त ही लगता है. इसके लिए अलग अलग गुणों वाली कई कील की परतों को एक साथ रखा जाता है.
इन्हें 1200 डिग्री सेल्सियस तापमान पर आकार दिया जाता है. और हर मोड़ के साथ ये परत दोगुनी होती जाती हैं, जिससे स्टील और बेहतर होती है. ऐसा कहा जाता है कि चाकू की गुणवत्ता 360 परतों के तौर पर होती है. यानी मानक के तौर पर दमिश्क स्टील की 360 परतें होती हैं.
हजारों साल पुरानी तकनीक
दमिश्क चाकू बनाए जाने की तकनीक हजारों साल पुरानी है. इनका इस्तेमाल मध्यकाल में भी होता था. वहीं चाकू का नाम सीरिया के शहर दमिश्क पर रखा गया है. ये 14वीं सदी में हथियारों और चाकुयों के कारोबार का अहम केंद्र था. चाकू को आकार दिए जाने के बाद तेल में नहलाकर मजबूत किया जाता है. फिर इसे फाइनल आकार देकर धार दी जाती है.
जब चाकू पूरी तरह तैयार हो जाए, तो उसे तेजाब में डुबो दिया जाता है. अलग अलग स्टील इस पर काफी अलग असर डालती हैं. इससे चाकू पर खास दमिश्क पैटर्न उभरकर आता है. ये लचीले और टिकाऊ बने रहते हैं. दिखने में भी बेहद खूबसूरत होते हैं.
इसी वजह से ये कई साल तक चल सकते हैं. इनके हैंडलों को कई कलाकार लकड़ी, हड्डी या हाथी के दांतों से बनाते हैं. इसके लिए हाथियों का शिकार नहीं होता बल्कि प्राचीन हाथियों के पहले से उपलब्ध दातों का इस्तेमाल होता है. जिनका दुनिया में पिघलती बर्फ के बाद खनन करके इंतजाम किया जाता है.