Advertisement

मोहब्बत की बेमिसाल कहानी...पत्नी की याद में बनवाया ताजमहल

भागलपुर के डॉ नजीर आलम ने अपनी पत्नी हुस्ना बानो की याद में 35 लाख का एक मकबरा बना मोहब्बत की निशानी पेश की है.

मोहब्बत की बेमिसाल कहानी....पत्नी की याद में बनवाया ताजमहल मोहब्बत की बेमिसाल कहानी....पत्नी की याद में बनवाया ताजमहल
सुजीत झा
  • पटना,
  • 13 फरवरी 2017,
  • अपडेटेड 11:23 PM IST

ये मोहब्बत की निशानी है. यह मोहब्बत की बेमिसाल कहानी है. एक कहानी वो है जिसमें शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था. लेकिन इस कहानी में न तो कोई शाहंशाह है और ना ही कोई बेगम. लेकिन मोहब्बत वही है.

वेलेंटाइन डे खराब कर सकता है आपका स्मार्टफोन, जानिये कैसे

ये कहानी है भागलपुर के डॉ नजीर आलम और हुस्न बानो की. दोनों एक दुसरे से बेइंतिहा मोहब्बत करते थे. दोनों की शादी के 57 साल हो गए, लेकिन साथ 55 सालों का रहा. दो साल पहले हुस्न बानो नजीर को छोड़ खुदा की नजीर हो गई. लेकिन डाँ नजीर के साथ छोड़ गई अपनी यादों का पिटारा. नजीर ने हुस्ना के यादों को जिंदा रखने के लिए एक मकबरा बनवाया है जो ताजमहल तो नहीं है लेकिन ताजमहल से कम भी नही है.

Advertisement

अगर आपकी भी है कोई वेलेंटाइन, तो ऐसे करें उसे इंप्रेस...

डॉ नजीर आलम ने अपनी कमाई का एक-एक पैसा लगाकर इस मकबरे को तैयार करवाया है करीब 35 लाख की कीमत से बना यह मकबरा को लोग मोहब्बत की निशानी मानते हैं. इसे देखने के लिए लोग दुर-दुर से आते हैं. हुस्ना बानो की कब्र पर बना यह मकबरा प्रेम की प्रतीक बन गई है.

पाकिस्तान में 'वेलेंटाइंस डे' पसंद नहीं, नहीं मनाने का अदालती फरमान

यह मकबरा क्यों और कैसे बना इसके पीछे भी एक कहानी है. चार साल पहले पति पत्नी दोनों हज करने गए. लौटकर आने पर तय किया कि जिसकी मृत्यु पहले होगी उसका मकबरा घर के आगे बनेगा. 2015 में हुस्ना बानों की मौत हो गई. पत्नी के गम में डॉ नजीर टूट से गए लेकिन पत्नी से किया गया वादा नहीं भूले और फिर शुरू हुआ मोहब्बत की निशानी बनवाने का सिलसिला.

Advertisement

वैलेंटाइंस डे पर गुलाबों की भारी डिमांड, कीमतें तीन गुना तक बढ़ी

दो साल तक इस का निर्माण चलता रहा है. नजीर ने अपनी जिंदगी की पूरी कमाई लगा दी. पेशे से होम्योंपैथी डॉक्टर नजीर आलम का कहना है कि हम रोज कमाने खाने वालों में से है इसलिए मकबरा बनाने में पाई पाई लगा दी. यहां तक पत्नी के नाम पर जमा किए गए पैसे और अपनी बचत के पैसे बैंक से निकालकर लगा दी. बच्चो ने भी पूरा सहयोग दिया. डॉक्टर ने कहा कि शाहजहां तो बादशाह थे उनके पास पैसों की कमी नहीं थी. लेकिन हमारे पास तो अब कुछ नही बचा है.

होम्योपैथी डॉक्टर होने के कारण कमाई सीमित है फिर भी डॉक्टर नजीर अपने 10 बच्चों का भरनपोषण कर रहे हैं. उन्हें अच्छी शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं ताकि आत्मनिर्भर बन सके. पांच बेटों में से तीन बेटे होम्यो मेडिकल एंड सर्जरी की पढ़ाई कर डॉक्टर बन चुके हैं, जबकि पांच बेटियों में से तीन बेटियां भी इसी पढ़ाई से आत्मनिर्भर बन चुकी हैं. पत्नी के निधन के दो महीने बाद से ही नजीर ने मकबरे का निर्माण शुरू करा दिया. मकबरे का टाइल्स मार्बल ग्रेनाइट पत्थर, शीशा स्टील और लाइटिंग का जबरदस्त काम किया गया है मकबरे का गुम्बद शाहजंगी के हाफइज तैयब ने तैयार किया है. वही उसके चार मीनार का निर्माण के लिए गुजरात से कारीगर बुलवाए गए. मीनार पर अच्छी नक्काशी की गई है जो देखने लायक है.

Advertisement

अब शाम होते ही इस मकबरे में संगमरमर के गुंबद और मीनार रोशनी से जगमगा जाते हैं. उसे देखने के लिए सुबह शाम लोगों की भीड़ लगती है. तो डॉक्टर को सुकून मिलता है. डॉक्टर की इच्छा है कि पत्नी की मोहब्बत को लोगों के बीच छोड़कर जाएं ताकि हमारी मोहब्बत हमेशा कायम रहे. वैसे डॉक्टर साहब ने अपने मकबरे के लिए जमीन बगल में छोड़ रखी है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement