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शादी के बाद दुल्हन नहीं, दूल्हे की होती थी विदाई, पुराने जमाने में क्या ऐसा था रिवाज?

दुनिया में आमतौर पर यही परंपरा है कि शादी के बाद दुल्हन अपने ससुराल जाती है. यह रिवाज सदियों पुराना है, जो आज तक चलता आ रहा है. लेकिन एक नई स्टडी ने यह धारणा पलट कर रख दी है. ब्रिटेन के लौह युग की डीएनए स्टडी में यह खुलासा हुआ है कि उस दौर में शादी के बाद दूल्हा अपनी पत्नी के परिवार के साथ रहता था. यह स्टडी ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन की डॉ. लारा कैसिडी के नेतृत्व में की गई है. उन्होंने लौह युग के लोगों की कब्रों से मिले डीएनए का अध्ययन किया. उस समय महिलाओं डोमिनेटिंग थीं.

लौह युग में शादी के बाद दूल्हा रहता था ससुराल( सांकेतिक तस्वीर-Pexel) लौह युग में शादी के बाद दूल्हा रहता था ससुराल( सांकेतिक तस्वीर-Pexel)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 25 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 10:11 AM IST

दुनिया में आमतौर पर यही परंपरा है कि शादी के बाद दुल्हन अपने ससुराल जाती है. यह रिवाज सदियों पुराना है, जो आज तक चलता आ रहा है. लेकिन एक नई स्टडी ने यह धारणा पलट कर रख दी है.


ब्रिटेन के लौह युग की डीएनए स्टडी में यह खुलासा हुआ है कि उस दौर में शादी के बाद दूल्हा अपनी पत्नी के परिवार के साथ रहता था. यह स्टडी ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन की डॉ. लारा कैसिडी के नेतृत्व में की गई है. उन्होंने लौह युग के लोगों की कब्रों से मिले डीएनए का अध्ययन किया. उस समय महिलाओं डोमिनेटिंग थीं.

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क्या कहती है स्टडी?
डॉ. लारा कैसिडी ने द गार्जियन से बातचीत में कहा कि ये निष्कर्ष उस धारणा को चुनौती देते हैं, जिसके मुताबिक इतिहास के ज्यादातर समाज पितृस्थानीय (Patrilocal) थे, जहां शादी के बाद महिलाएं पति के घर जाती थीं.


डॉ. कैसिडी ने कहा की शायद इतिहास के कुछ समय में मातृस्थानीयता का चलन ज्यादा था, जो यह दिखाता है कि महिलाओं की भूमिका और उनका प्रभाव समाज में बहुत अहम था. इस स्टडी से यह साफ होता है कि महिलाएं केवल घरेलू कार्यों तक सीमित नहीं थीं, बल्कि समाज में उनकी शक्ति और योगदान बहुत बड़ा था.

कैसे पहुंचे इस निष्कर्ष पर?

शोधकर्ताओं ने जेनेटिक प्रमाणों का अध्ययन कर पाया कि उस दौर में महिलाओं के बीच डीएनए समानता ज्यादा थी, जबकि पुरुषों का डीएनए अलग था. इससे यह साबित हुआ कि पुरुष शादी के बाद अपनी पत्नियों के घर रहने जाते थे. यह मातृस्थानीय प्रथा का सीधा प्रमाण है. इसका मतलब है कि एक ही क्षेत्र या समुदाय में रहने वाली महिलाओं का जेनेटिक प्रोफाइल (डीएनए) काफी हद तक एक जैसा था. यह इस बात का संकेत है कि महिलाएं अपने परिवार के साथ एक ही स्थान पर रहती थीं और कहीं और नहीं जाती थीं.

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