
स्पेसएक्स के अंतरिक्ष यान ड्रैगन से भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर की पृथ्वी पर वापसी तय हो गई है. नासा और स्पेसएक्स के मिशन क्रू-10 ने उन्हें वापस लाने की पूरी तैयारी कर ली है.पूरी दुनिया की नजरें सुनीता विलियम्स और उनके साथी पर टिकी हैं.
साथ ही, लोगों में अंतरिक्ष से जुड़े रहस्यों को जानने की दिलचस्पी भी बढ़ गई है. खासकर, एक बड़ा सवाल यह है कि जब कोई इंसान अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखता है, तो उसकी सोच कितनी बदल जाती है? क्योंकि अंतरिक्ष से हमारी यह धरती, जहां जिंदगी है, बाकी सितारों और ग्रहों की तरह ही नजर आती है. कुछ ऐसा ही अनुभव एस्ट्रोनॉट रॉन गैरेन ने शेयर किया.
अब 62 साल की उम्र में रिटायरमेंट के बाद, उन्होंने अपने अनुभव शेयर करते हुए बताया कि जब उन्होंने अंतरिक्ष से धरती को देखा, तो एक झकझोर देने वाली सच्चाई का एहसास हुआ. हम सभी एक झूठ में जी रहे हैं.
मिरर न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, NASA के पूर्व एस्ट्रोनॉट रॉन गैरेन उन्हीं में से एक हैं. अपने शानदार करियर में उन्होंने 178 दिन अंतरिक्ष में बिताए, 71 मिलियन मील की यात्रा की और पृथ्वी के 2,842 चक्कर लगाए.
'अंतरिक्ष से धरती देखने पर हुआ ये एहसास'
मिरर न्यूज के मुताबिक, Big Think के एक इवेंट में बातचीत के दौरान रॉन गैरेन ने बताया कि जब उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) से धरती को देखा, तो उन्हें कुछ ऐसा महसूस हुआ, जिससे उनकी सोच ही बदल गई.
जब मैंने ISS की खिड़की से बाहर देखा, तो बिजली के तूफानों की चमक, रंग बदलती उत्तरी रोशनी (Aurora) और पृथ्वी के वातावरण की बेहद पतली परत देखी. तभी मुझे एहसास हुआ कि यही पतली परत हमारे ग्रह की हर जीवित चीज को बचाए रखती है.
'हम एक झूठ में जी रहे हैं'
रॉन गैरेन का कहना है कि हम इंसानों ने अपनी प्राथमिकताएं गलत तय कर ली हैं. जिंदगी जीने के लिए क्या अहम होता है, हम अभी तक नहीं समझ पाए. उन्होंने कहा कि मैंने अंतरिक्ष से एक चमकती-दमकती धरती देखी, लेकिन वहां मुझे कहीं भी 'इकोनॉमी' नहीं दिखी, लेकिन धरती पर हमारी बनाई हुई व्यवस्थाएं हर चीज-यहां तक कि पर्यावरण और जीवन को भी इकोनॉमी का हिस्सा मानती हैं. यह साफ है कि हम एक झूठ में जी रहे हैं.
‘सोच बदलनी होगी, वरना आगे दिक्कतें बढ़ेंगी’
गैरेन ने कहा कि अगर हमें आगे बढ़ना है, तो हमें अपनी सोच को ऐसी दुनिया की ओर मोड़ना होगा जहां सभी इंसान बराबर हों और एक-दूसरे पर निर्भर हों. न कोई किसी से बेहतर है, न कोई कमतर, क्योंकि अंतरिक्ष से देखने पर सब समान नजर आते हैं. इस विशाल और खूबसूरत ब्रह्मांड के सामने हम इंसानों की अहंकार, श्रेष्ठता और अर्थव्यवस्था की कोई वजूद ही नहीं है.
इस दुनिया में हमें ऐसी अर्थव्यवस्था विकसित करनी होगी जो सभी के हित में हो. यही वह बदलाव होगा जो हमारे विकास को सही दिशा में ले जाएगा.
'हर कोई जुड़ा हुआ है, लेकिन हम समझ नहीं पा रहे'
उन्होंने आगे कहा कि जब लोग यह समझते हैं कि हम सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और हमारी जिंदगी एक-दूसरे पर निर्भर करती है, तब जाकर सही मायनों में हमारी सोच बदलती है.