
रूस-यूक्रेन में छिड़ी जंग (Russia Ukraine War) के बीच वहां फंसे भारतीयों को लेकर चिंता बढ़ गई है. सरकार उन्हें यूक्रेन से सुरक्षित निकालने का काम कर रही है. कई भारतीय लोगों को Ukraine से निकाला भी गया है, लेकिन बहुत सारे लोग अब भी मदद की आस में हैं. Ukraine में भारतीय दूतावास (Embassy of India) ने 15 हजार भारतीय छात्रों के फंसे होने की जानकारी दी है. इस बीच सोशल मीडिया पर एक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी और केरल के पूर्व DGP के ट्वीट पर बहस शुरू हो गई है.
दरअसल, यूक्रेन से भारतीयों की निकासी को लेकर ट्वीट करने वाले पूर्व IPS अधिकारी का नाम डॉ. एनसी अस्थाना (Dr. N. C. Asthana) है. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा- "यूक्रेन में छात्रों की निकासी के लिए भारत सरकार की केवल नैतिक जिम्मेदारी है, कोई कानूनी जिम्मेदारी नहीं है. बेवजह सरकार की आलोचना करना बंद करें. वे अपने निजी स्वार्थ के लिए गए थे. यदि कोई भारतीय अंटार्कटिका या गहरे समुद्र में खतरे में है, तो क्या भारत सरकार को उसे निकालना चाहिए?"
सोशल मीडिया पर छिड़ गई बहस
पूर्व IPS अधिकारी के इस ट्वीट पर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई. तमाम यूजर्स ने उनके इस ट्वीट पर रिएक्ट किया. एक यूजर (@Mihir23760756) ने लिखा- "इस तर्क के साथ, भारत सरकार ने इराक-कुवैत संघर्ष के दौरान 1990 में कुवैत से 1.7 लाख लोगों को हवाई जहाज से निकालकर अपने संसाधनों को अनावश्यक रूप से बर्बाद कर दिया, क्योंकि वो सभी लोग अपनी इच्छा से अधिक पैसा कमाने के लिए वहां गए थे."
इसके जवाब में एनसी अस्थाना लिखते हैं- 'भारत सरकार ने कभी नहीं कहा कि वह यूक्रेन से सुरक्षित निकालने की पूरी कोशिश नहीं करेगा. लेकिन यदि इस दौरान कोई व्यक्ति हताहत हो जाता है, तो भारत सरकार को दोष नहीं दिया जा सकता. दया और कानूनी दायित्व का अंतर समझिये, प्रभु. दया में करोड़ों खर्च दें, लेकिन डंडा मार कर नहीं कराया जा सकता. War Zone की कुछ बाधाएं हैं.'
पूर्व IPS के ट्वीट पर यूजर्स ने किया रिएक्ट
पूर्व IPS अधिकारी एनसी अस्थाना के ट्वीट पर सैकड़ों यूजर्स ने कमेंट्स किए हैं. किसी ने उनकी आलोचना की तो किसी ने तरह-तरह के तर्क दिए. @chetansha_ नाम के एक यूजर ने पूछा- 'अगर भारत सरकार ने खाड़ी युद्ध के दौरान भी ऐसा ही किया होता तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होती?'
और क्या बोले पूर्व IPS अधिकारी?
पूर्व IPS ने एक के बाद एक कई और ट्वीट किए. एक ट्वीट में उन्होंने लिखा- 'भारत सरकार किसी भी व्यक्ति (पर्यटकों सहित) की सुरक्षा और भलाई के लिए तभी तक जिम्मेदार है जब तक वे भारतीय क्षेत्र में हैं, दुनिया के किसी कोने में नहीं! डफर्स को पता होना चाहिए, मूर्खतापूर्ण भावनाएं कानूनी विचारों को खत्म नहीं कर सकती हैं. भारत सरकार कुछ अनुग्रह कर सकती है लेकिन बाध्यकारी नहीं.
एक और ट्वीट में वो लिखते हैं- 'वर्तमान में, यूक्रेन संप्रभु है. हम उनकी अनुमति और प्राथमिकताओं से ही कुछ भी कर सकते हैं. उनके अपने नागरिक भाग रहे हैं, शहर में ट्रैफिक जाम हो रहा है. हम नैतिक रूप से भी, उनके लुप्तप्राय हवाई अड्डों के प्राथमिकता के उपयोग की मांग नहीं कर सकते.'
'बेरहम लग सकता है लेकिन..'
वो आगे लिखते हैं- 'कई निरक्षर गलत समझते हैं कि पासपोर्ट पर क्या छपा है. यह एक अपील है, विदेशी सरकारों से प्रार्थना है कि जरूरत पड़ने पर भारतीय नागरिकों की मदद करें, भारत सरकार का दायित्व नहीं! ब्रितानियों के 200 वर्ष और भारत सरकार के 74 वर्ष बर्बाद हो गए, शिक्षा भारतीयों को प्रबुद्ध करने में विफल रही.'
साथ ही उन्होंने यह भी कहा- 'कोविड के दौरान विदेशों में भारतीयों के लिए भारत सरकार ने जो किया वह नि: शुल्क था और उन्हें इसके लिए हमेशा आभारी रहना चाहिए, भले ही उन्होंने किराया चुकाया हो. कानूनी तौर पर, भारत सरकार केवल दूतावास और विदेशों में ऐसे सरकारी कर्मचारियों के लिए जिम्मेदार है, निजी नागरिकों के लिए नहीं. बेरहम लग सकता है लेकिन यह कानूनी वास्तविकता है.