
आपने जासूसों की एक से एक कहानी सुनी होंगी. ये प्रोफेशन इतना खतरनाक है कि जो इसमें एक बार हाथ डाल दे, उसके सुरक्षित अपने देश लौटने की गारंटी तक नहीं होती. कई मामलों में तो ये भी देखा गया है, जब जासूस को पकड़े जाने पर मौत की सजा दे दी जाती है. इसमें सबसे खराब बात ये लगती है कि जिस देश की रक्षा के लिए जासूस दुश्मन देश जाता है, वही देश उसे अपनाने से इनकार कर देता है. हालांकि इन्हीं जासूसों की वजह से देश युद्ध जीतते हैं, लाखों जिंदगियां बचती हैं.
आज हम एक ऐसे जासूस के बारे में जानने वाले हैं, जो दुश्मन देश का प्रधानमंत्री तक बनने वाला था. मगर जब पकड़ा गया, तो उसके साथ वो किया गया, जिसके बारे में सुनकर लोगों की रूह कांप जाए.
आज हम एली कोहेन की कहानी जानेंगे. जिनका नाम जासूसी की दुनिया में काफी ऊपर आता है. वो आज अपने देश के लिए हीरो हैं. इन्हें दुनिया का बेहतरीन जासूस कहा जाता है. तो चलिए इस रियल लाइफ हीरो के बारे में जानते हैं...
ये कहानी शुरू होती है गोलन हाइट्स की लड़ाई से. ये दक्षिण पश्चिमी सीरिया में स्थित एक पहाड़ी इलाका है. जो राजनीतिक और रणनीतिक रूप से बेहद अहम है. यहां से जॉर्डर नदी गुजरती है. इजरायल को 30-40 फीसदी पानी यहीं से मिलता है. इसके अलावा गोलन हाइट्स पर पहले सीरिया की सेना रहती थी, जिससे इजरायल के लोग परेशान थे. इसी वजह से ये जगह इजरायल के लिए काफी अहम हो गई.
इजरायल ने जीता था युद्ध
इजरायल ने 1967 में सीरिया के साथ छह दिन के युद्ध के बाद यहां कब्जा कर लिया. इस युद्ध को सिक्स डे वॉर भी कहते हैं. जब यहां कब्जा हुआ था, तब इलाके में रहने वाले अधिकतर सीरियाई अरब लोग अपने घर छोड़कर चले गए थे. सीरिया ने 1973 में मिडल ईस्ट वॉर के दौरान इसे दोबारा हासिल करने की कोशिश भी की लेकिन फिर भी वो ऐसा करने में नाकाम रहा. हालांकि इस युद्ध में इजरायल को भारी नुकसान उठाना पड़ा था.
अब हम एली कोहेन की कहानी पर लौटते हैं. इजरायल के सिक्स डे वॉर जीतने का श्रय इन्हें ही दिया जाता है. ऐसा कहते हैं कि अगर कोहेन ना होते, तो इजरायल ये युद्ध जीत ही नहीं पाता. इजरायल ने इन छह दिनों के भीतर जॉर्डन, सीरिया, मिस्र सभी की सेनाओं को हरा दिया था.
मिस्र में पैदा हुए थे एली कोहेन
एली कोहेन का जन्म मिस्र के अलेक्जेंड्रिया में 26 दिसंबर, 1924 में हुआ था. पिता यहूदी और मां सीरियाई मूल की थीं. पूरा परिवार मिस्र में ही रह रहा था. मगर यहां यहूदियों की हालत कुछ ठीक नहीं थी. कोहेन बेशक यहूदी थे, लेकिन उनका हाव भाव और बोली अरबों जैसी थी. वहीं यहूदियों की अपनी भूमि की मांग वाली भावना उनमें कूट कूटकर भरी हुई थी. उन्होंने मिस्र में शुरुआती पढ़ाई लिखाई की. तब मिस्र में 1947 में राष्ट्रवादी आंदोलन जोर पकड़ रहा था.
यहूदियों के साथ खूब भेदभाव किया जा रहा था. हालात इतने बिगड़ गए थे कि कोहेन यूनिवर्सिटी छोड़कर घर पर पढ़ने लगे. वो छह भाई बहन थे. यहां स्थिति जब ज्यादा खराब हुई तो पूरा परिवार 1949 में इजरायल चला गया था.
चूंकि कोहेन की पढ़ाई पूरी नहीं हुई थी इसलिए वो यहीं ठहर गए. वो यहां पढ़ाई करने के साथ ही जायोनीवाद मूवमेंट (यहूदीवाद आंदोलन) को मजबूत कर रहे थे. एली कोहेन अपने साथियों के साथ लोगों को बचाकर इजरायल भेज रहे थे. मगर जब भी कोहेन की जांच होती, तो उनके खिलाफ एक भी सबूत नहीं मिलता. जबकि वहां के अधिकारी सोचते थे कि इनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाएंगे. लेकिन बिना सबूत के कैसे चलाते?
मोसाज ने दो बार रिजेक्ट किया
ऐसा कहते हैं कि वो अपनेआप को ही ज्यादा महत्व देते थे, इसी वजह से दुनिया की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसी मोसाद ने उन्हें दो बार रिजेक्ट कर दिया था. उन्हें मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड और वहां की सेना परेशान कर रही थी. साल 1951 में मिस्र में तख्तापलट हुआ. इसके बाद कोहेन गिरफ्तार हुए और पूछताछ की गई. मगर कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया. हालांकि वो ये देश छोड़कर खुद भी दिसंबर 1956 में इजरायल चले गए.
उनकी सबसे बड़ी खूबी ये थी कि भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी. वो एसेंट भी अच्छे से बोल लेते थे. उनकी याददाश्त काफी अच्छी थी. एक बार जो चीज देख लें, उसे कभी भूलते नहीं थे. इसी वजह से उन्हें 1957 में इजरायल की डिफेंस फोर्स में भर्ती किया गया. यहां वो मिलिट्री इंटेलीजेंस में थे. उन्हें काउंटर इंटेलीजेंस एनालिस्ट के तौर पर काम करना था. मगर वो तो मोसाद में जाना चाहते थे, जब उन्हें रिजेक्ट किया गया, तो उन्होंने गुस्से में मिलिट्री काउंटर इंटेलीजेंस से ही इस्तीफा दे दिया.
कहानी आगे बढ़ती है. जब सबकुछ खत्म सा लगता है. मानो तभी एक ऐतिहासिक कहानी की नींव रखी जा रही होती है. ये वो वक्त था, जब मोसाद के डायरेक्टर जनरल मीर आमित हुआ करते थे. उन्हें एक ऐसे शख्स की तलाश थी, जो सीरिया में जाकर सारी खोज खबर निकाल सके. तभी उनकी नजर उन फाइल्स पर पड़ी, जो रिजेक्ट हो चुके कैंडिडेट्स की थीं. उन्होंने एली कोहेन की फाइल देखी. मीर आमित ने तुरंत कोहेन को बुलाया और मोसाद में भर्ती कर दिया.
मोसाद का जासूस बनने का सपना पूरा हुआ
अब मोसाद में आने का कोहेन का सपना तो पूरा हो गया. मिलिट्री की नौकरी छोड़ने के कुछ साल बाद 1960 में. अब वो मोसाद के जासूस बन गए थे. उन्हें छह महीने की ट्रेनिंग दी गई. एक नई पहचान मिली. कोहेन को सीरिया जाने को कहा गया. उन्हें कुरान सिखाई गई. भूमिका बताई गई. वहां के लोगों की तरह बोलना सिखाया गया.
एली कोहेन ने सीरिया में एक सीरियाई बिजनेसमैन के तौर पर एंट्री ली. जो अर्जेंटीना में रहने के बाद दोबारा अपने देश लौट रहा है. इसके लिए भी तैयारियां की गईं, ताकि वो किसी भी गलती की वजह से पकड़े न जाएं. उन्हें अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में 1961 में भेजा गया. यहां वो करीब एक साल तक बिजनेस में एक्टिव रहे. उनकी पहचान एक बिजनेसमैन की थी. वो बड़ी बड़ी पार्टियां दिया करते थे. इनमें सीरिया के बड़े मंत्री और डिप्लोमैट भी आते थे. यहां एली इनसे मुलाकात करके जान पहचान बढ़ाते थे. इन्हें महंगे तोहफे दिया करते थे. वो खूब पैसा इस काम में लगा रहे थे, जो इजरायल से आ रहा था. जो लोग पैसों से नहीं बिक पाते, उन्हें हनी ट्रैप में फंसाया जाता था.
अर्जेंटीना में रहते हुए एली कोहेन सारिया के दूतावास में काम करने वाले अमान अल हाफिज से मिले. ये वही शख्स है, जो 1963 में सीरिया का राष्ट्रपति बना था. कोहेन ने हाफिज से करीबी बढ़ाई. दोनों के रिश्ते इतने अच्छे हो गए कि हाफिज के राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने कोहेन के लिए रक्षा मंत्री का पद देने की मांग कर दी थी. उन्होंने इतना तक बोल दिया था कि उनके बाद सीरिया का राष्ट्रपति बनने के लिए एली कोहेन से बेहतर कोई ऑप्शन ही नहीं है.
अगर कोहेन पकड़े नहीं जाते और राष्ट्रपति बन जाते, तो सीरिया को इजरायल बनने से कोई नहीं रोक पाता. कोहेन हाफिज की पार्टी को खूब फंड करते थे. पार्टी के लोगों से भी उनके अच्छे खासे रिश्ते थे. वो फाइनेंशियल सेना के सारे मामले देखते थे. सीरिया की राजधानी में रह रहे थे.
कैसे घर में रहा करते थे कोहेन?
यहां वो एक आलीशान घर में रहा करते थे. जो जरा भी मामूली नहीं था. घर में ट्रांसमिशन केबल बिछे रहते थे, ताकि मोसाद को सूचना दी जा सके. इसके अलावा कोहेन अपने साथ सायनाइड की बोतल रखते थे. इस डर से कि अगर पकड़े जाएं तो उसे पी लें. वो 1961 से लेकर 1965 तक लगातार अपना कद बढ़ा रहे थे.
गोलन हाइट्स को लेकर सीरिया ने फैसला लिया कि ऐसा कुछ करेंगे जिससे इजरायल को पानी ना मिल सके. मगर कोहेन को ये बात पहले ही पता चल गई. सीरिया की योजना पानी को डायवर्ट करने की थी. एली कोहेन ने इसकी सूचना इजरायल को तो दी ही, साथ ही उन्होंने इस पूरे फैसले को भी पलट दिया. वो सैन्य ठिकानों की जानकारी, फाइनेंशियल योजनाओं, छिटपुट युद्ध, सभी की जानकारी इजरायल को भेज रहे थे. एक तरह से देखा जाए, तो सीरिया गोलन हाइट्स का इस्तेमाल इजरायल के खिलाफ एक हथियार की तरह कर रहा था. कभी पानी रोककर, तो कभी फायरिंग करके.
इधर एली कोहेन ने सोचा कि क्यों न गोलन हाइट्स तक ही पहुंचा जाए. उन्होंने सीरियाई प्रशासन को सुझाव दिया कि इस स्थान पर युकलिप्टुस के पेड़ लगा सकते हैं. ताकि सैनिकों के लिए अच्छा वातावरण तैयार किया जा सके. अब चूंकि सीरियाई सेना के कमांडर उनके अच्छे दोस्त थे, उन्हें गोलन हाइट्स के टूर पर ले गए. उन्हें सैनिकों ने वो सब जगह दिखाईं, जहां वो हथियार रखते हैं और जहां से फायरिंग करते हैं. कोहेन ने ये सब मोसाद को बता दिया. पेड़ लगाने का कॉन्ट्रैक्ट भी उन्हें ही मिला था. इसका खर्च भी वही उठा रहे थे.
पेड़ों को एक मैप के तौर पर लगाया गया. जहां जहां सीरियाई सेना के बम का जखीरा था, वहां वहां पेड़ लगाए गए. 1967 के छह दिनों के युद्ध में इजरायल को बमबारी करते वक्त इन पेड़ों से काफी मदद मिली थी. जहां जहां पेड़ थे, वहीं बम गिराए गए. इस युद्द में इजरायल ने गोलन हाइट्स पर कब्जा कर लिया था. हालांकि ये सब देखने के लिए कोहेन मौजूद नहीं थे. तब तक उनकी मौत हो गई थी. कैसे, चलिए आगे जानते हैं.
परिवार से मिलने इजरायल गए थे
वक्त में थोड़ा पीछे चलते हैं. नवंबर 1964 में एली कोहेन अपने परिवार से मिलने के लिए इजरायल आए थे. उनके परिवार में पत्नी और तीन बच्चे थे. वो अब तक ये भांप चुके थे कि उनके लिए खतरा कुछ कम नहीं है. हालांकि खुद पर भरोसा भी था कि सरकार मेरे अंडर है और बड़ा पद देने की बात हो रही है, तो कोई क्या ही बिगाड़ सकता है. मगर यही उनके लिए गलत साबित हुआ.
सीरिया को अब शक होने लगा था. इजरजायल सारे युद्ध जीत रहा था. जो भी योजना बनाते, इजरायल तक उसकी जानकारी पहले से पहुंच जाती. सीरिया को शक होने लगा कि कोई अंदर का ही आदमी ये सारी जानकारी इजरायल तक पहुंचा रहा है. उस वक्त सोवियत संघ सीरिया को सपोर्ट कर रहा था, जबकि अमेरिका इजरायल को.
सोवियत संघ जासूसी का पता लगाने के लिए सीरिया की मदद कर रहा था. उसने सीरिया को उपकरण दिए. उस वक्त एली कोहेन रेडियो ट्रांसमिशन लाइंस का इस्तेमाल कर रहे थे. अब सीरिया ने सोवियत से मिले उपकरणों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया.
सीरिया ने इनके इस्तेमाल से जनवरी, 1965 में एली कोहेन को पकड़ लिया. वो इस ट्रांसमिशन लाइन का काफी इस्तेमाल कर रहे थे. सीरिया ने उन पर नजर रखी. एक लिस्ट बनाई गई कि कहां कहां ट्रांसमिशन हो रहा है. इसमें एली कोहेन का नाम भी शामिल था. उनके मैसेज को इंटरसेप्ट किया गया.
एक आखिरी मिशन दिया गया
एली कोहेन का तीसरा बेटा पैदा होने वाला था. वो परिवार से मिलने इजरायल आए. वो वापस जाने के मूड में नहीं थे. मगर मोसाद ने उन्हें एक आखिरी मिशन के लिए भेज दिया. उनसे कहा गया कि हम युद्ध की कगार पर हैं. आपकी जानकारी अब तक काम आई है और आगे भी आएगी. बस फिर क्या था. एली कोहेन को वापस सीरिया भेज दिया गया. उनका ये आखिरी मिशन ही साबित हुआ. इसके बाद वो कभी अपने देश नहीं लौटे.
अब जो एली कोहेन के साथ होने वाला था, उस बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं होगा. उनके घर पर सीरियाई अधिकारी आए. एली कोहेन को डिटेंशन सेंटर में रखकर टॉर्चर किया गया. जब इसकी खबर इजरायल को लगी तो उसने सीरिया से साफ बोल दिया कि एली कोहेन को कुछ नहीं होना चाहिए. अगर कुछ हुआ तो सीरिया को बख्शा नहीं जाएगा.
इसके अलावा फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, बेल्जियम, अमेरिका, इटली भी कोहेन की जान बख्शने की अपील कर रहे थे. जो बन पा रहा था इजरायल ने वही किया. सीरिया ने किसी की एक नहीं सुनी. कोहेन को 18 मई, 1965 में सरेआम फांसी दे दी गई.
राजधानी के चौराहे पर लटकाया गया
मौत से एक दिन पहले उन्होंने अपनी पत्नी को एक इमोशनल लेटर लिखा था. उन्हें राजधानी डमासकस के चौराहे पर लटकाया गया. उनका शव अभी तक इजरायल को नहीं सौंपा गया है. उनके शरीर के बाहर नारे लगे पेपर लगाए गए थे. उन्हें खूब गालियां दी गईं. उनकी लाश का अभी तक नहीं पता कि सीरिया ने कहां रखी है. ये फांसी निर्दयी हत्या थी. शरीर पर अखबार लपेटे गए थे, जिनपर नारे लिखे थे. सीरिया ऐसा करके ये दिखाने की कोशिश कर रहा था कि उसके खिलाफ कुछ भी करने वाले का वो क्या हाल करता है.