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यहां आजादी के जश्न में डूबे थे लोग, वहां डूब रहा था भारत का 'Titanic', हुई सैकड़ों मौत

टाइटैनिक जहाज हादसे के बारे में पूरी दुनिया बात करती है. लेकिन भारत में भी एक ऐसा ही हादसा हुआ था. जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई. वो भी उस वक्त, जब देश आजाद होने वाला था.

भारत में भी डूबा था जहाज (प्रतीकात्मक तस्वीर- Getty Images) भारत में भी डूबा था जहाज (प्रतीकात्मक तस्वीर- Getty Images)
Shilpa
  • नई दिल्ली,
  • 23 जून 2023,
  • अपडेटेड 2:14 PM IST

टाइटन पनडुब्बी के डूबने के बाद एक बार फिर दुनिया टाइटैनिक की बात कर रही है. पनडुब्बी हादसे में पांच लोगों की मौत की पुष्टि की गई है. वहीं आज से 111 साल पहले साल 1912 में हुए टाइटैनिक हादसे में 1500 लोगों की मौत हो गई थी. जहाज पर 2200 लोग सवार थे. कई को बाद में बचा लिया गया. इसे दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा समुद्री हादसा कहा जाता है. लेकिन क्या दुनिया भारत के 'टाइटैनिक' हादसे के बारे में जानती है? मतलब ये कि भारत में भी टाइटैनिक जैसा हादसा हुआ था. जिसमें करीब 700 लोगों की मौत हो गई थी. 

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मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हादसे का शिकार बने जहाज का नाम एसएस रामदास था. एक रिपोर्ट में फिल्म निर्देशक किशोर पांडुरंग बेलेकर के हवाले से लिखा गया है कि उन्हें इस हादसे पर फिल्म बनाने का ख्याल साल 2006 में आया था. इसके बाद उन्होंने रामदास के बारे में जानकारी जुटाने का काम शुरू कर दिया. वो दस साल तक हादसे में बचे तमाम लोगों से मिले. 

179 मीटर थी जहाज की लंबाई

इसके साथ ही उन्होंने कई अखबार पढ़े और अपनी रिसर्च करते रहे. इस काम में उनकी मदद वैज्ञानिक खाजगीवाले ने की. बेलेकर के सफर की शुरुआत अलीबाग के बारकू शेठ मुकादम से मिलकर हुई. ये हादसे में बचने वाले लोगों में शामिल हैं. सबसे आखिर में बोलेकर ने दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले अब्दुल कैस से मुलाकात की. वो भी इस हादसे से बचकर निकलने वालों में शामिल थे.

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रामदास जहाज को बनाने का काम स्वान और हंटर कंपनी ने किया था. ये वही कंपनी है, जिसने महारानी एलिजाबेथ का जहाज तैयार किया था. साल 1936 में बने रामदास की लंबाई 179 मीटर, चौड़ाई 29 फीट थी. इसमें 1000 यात्री सवार हो सकते है. ये हादसा उस वक्त हुआ जब भारत में स्वतंत्रता संग्राम अपने उफान पर था. कुछ साल बाद इंडियन कोऑपरेटिव स्टीम नेविगेशन कंपनी ने इसे खरीद लिया.

जहाज पर सैकड़ों यात्री सवार थे (प्रतीकात्मक तस्वीर- Getty Images)

दो और जहाज भी डूबे थे
 
समान विचार वाले कुछ राष्ट्रवादियों ने इस कॉपरेटिव नेविगेशन कंपनी की स्थापना की. इसकी शुरुआत कोंकण तट पर सुखकर बोट सेवा के तौर पर हुई. इसे लोग माझी आगबोट कंपनी कहते थे. कंपनी ने इसी वजह से जहाजों के नाम भी साधु संतों के नाम पर रख दिए. फिल्म निर्देशक को अपनी रिसर्च के दौरान ही पता चला कि उसी रास्ते पर दो और जहाज हादसे का शिकार हुए थे. 

रामदास से पहले 11 नवंबर, 1927 को एसएस जयंती और एसएस तुकाराम उसी रास्ते पर, ठीक उसी दिन, करीब उसी वक्त डूबे थे. जयंती में 96 लोगों की मौत हुई थी. वहीं तुकाराम में 48 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 96 की जान बचा ली गई. इसके 20 साल बाद उसी रास्ते पर रामदास भी हादसे का शिकार हुआ. जिसमें करीब 700 लोगों की मौत हो गई. 

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सुबह 8 बजे शुरू हुआ था सफर

जानकारी के मुताबिक, जहाज पर 778 लोग सवार थे. इसने मुंबई से 17 जुलाई, 1947 को अपना सफर सुबह 8 बजे शुरू किया. ये रेवास के लिए निकला था. मछुआरे और छोटे व्यापारियों के साथ साथ कुछ अंग्रेज अधिकारी भी अपने परिवार के साथ जहाज पर सवार थे. सीटी बजते ही जहाज तेजी से आवाज करता हुए चल पड़ा. 13 किलोमीटर दूर पहुंचते ही बारिश और तेज हो गई. तेज हवाएं भी चल रही थीं. 

अब धीरे धीरे जहाज में पानी भरने लगा. आपस में बात करते लोग अचानक खौफ से घिर गए. वो एकदम शांत थे. पूरे जहाज में देखते ही देखते सन्नाटा पसर गया. तभी जहाज एक तरफ को झुका और लोगों ने चीखना चिल्लाना शुरू कर दिया. तब जहाज पर बेहद कम लाइफ जैकेट्स मौजूद थे. इसके लिए लोगों ने लड़ना शुरू कर दिया. हर तरफ अफरा तफरी का माहौल था. 

समुद्र की ऊंची लहरों से बढ़ा खतरा (प्रतीकात्मक तस्वीर- ट्विटर)

जान बचाने के लिए पानी में कूदे लोग

जहाज के नीचे झुकते ही जिन लोगों को तैरना आता था वो पानी में कूद गए. जब रामदास एक द्वीप तक पहुंचा तभी बड़ी लहर का उससे सामना हुआ. अब जहाज एक तरफ को पलट गया. कई लोग तिरपाल में फंस गए और निकल नहीं पा रहे थे. तभी एक और लहर आई और जहाज पूरी तरह डूब गया.

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इसे भारत के समुद्री इतिहास का सबसे बड़ा हादसा कहा जाता है. जहाज सुबह करीब 9 बजे पानी में डूबा था. लेकिन मुंबई में शाम 5 बजे इसकी खबर लगी. जो लोग बचकर लौटे उन्होंने हादसे की कहानी बताई. मगर बहुत से लोग ऐसे भी थे, जिनके शव तक नहीं मिले. 

रामदास जहाज 17 जुलाई, साल 1947 के दिन डूबा था. इसके करीब एक महीने बाद हमारा देश आजाद हो गया. एक तरफ पूरा देश आजादी के जश्न में डूबा था, वहीं दूसरी तरफ मुंबई, रेवास, अलीबाग, मानगांव, नंदगांव और इसके आसपास के इलाकों में लोग रामदास हादसे का शिकार हुए अपनों की तलाश कर रहे थे.

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