
दुनिया में कई ऐसी जगहें हैं जहां की स्थितियां, रहन-सहन या परंपराएं बिल्कुल आम नहीं हैं. कई जगहों पर सब कुछ इतना अनोखा है कि सोचकर हैरानी होती है कि क्या सचमुच ऐसी जगह भी हो सकती है? हमारी ही धरती पर कई ऐसे इलाके हैं जो बाकी जगहों से इस तरह कटे हैं कि मानो ये कोई नया या खोया हुआ देश हो.
इसी तरह केन्या के पूर्वोत्तर सम्बुरू इलाके में एक गांव है - उमोजा. यहां के घरों के डिजाइन, सड़कें पेड़- पौधे, जंगल सबकुछ तो आम है. यहां जो खास और अजीब है वो है यहां के रहने वाले निवासी. आपको जानकर हैरानी होगी कि लगभग 30 सालों इस पूरे गांव में केवल महिलाएं ही रहती हैं.
मर्दों की एंट्री पूरी तरह से बैन
इससे भी ज्यादा कमाल की बात है कि इस गांव में मर्दों की एंट्री पूरी तरह से बैन है. रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार तीन दशक पहले रेबिका लोलोसोली नाम की महिला ने अपने समाज में महिलाओं पर हिंसा और अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी. रेबिका की इस आवाज को घरेलू हिंसा की सताई 15 और औरतों का समर्थन मिला और एक गांव बनाया गया- उमोजा, जहां मर्दों के आने पर पूरी तरह मनाही है. बता दें उमोजा का अर्थ होता है- एकता.
15 रेप सर्वाइवर्स के साथ मिलकर बनाया गांव
द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार इस गाँव की स्थापना 1990 में रेबिका के अलावा उन 15 महिलाओं के एक समूह द्वारा की गई थी जो लोकल ब्रिटिश सैनिकों द्वारा बलात्कार के बाद की सर्वाइवर थीं. उमोजा की आबादी ने अब बाल विवाह, एफजीएम (खतना), घरेलू हिंसा और बलात्कार से बचने वाली किसी भी महिला के लिए अपने दरवाजे पूरी तरह खुले रखे हैं.
कई आदमियों मे मिलकर की थी रेबिका की पिटाई
इस अनोखा गांव की कहानी तब शुरू हुई जब 1990 में रेबिका को महिलाओं को उनका अधिकार बताने के लिए पुरुषों के एक समूह द्वारा बुरी तरह पीटा गया था. ऐसे में जब वह अस्पताल में थी, तभी उनके मन में केवल महिलाओं के लिए समुदाय या गांव बनाने का का विचार आया. यह पिटाई उसे अपने गांव की महिलाओं से उनके अधिकारों के बारे में बात करने का साहस करने के लिए सबक सिखाने के लिए की गई थी.
मेल डोमिनेटिंग मसाई जनजाति का प्रभाव रहा
बता दें कि सम्बुरु इलाका मासाई जनजाति से निकटता से संबंधित हैं, जो एक जैसी भाषा बोलते हैं. वे आम तौर पर पांच से 10 परिवारों के समूह में रहते हैं और चरवाहे का काम करते हैं. उनकी संस्कृति पूरी तरह से पितृसत्तात्मक यानी मेल डोमिनेटिंग है. गाँव की बैठकों में पुरुष गाँव के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक इंटरनल सर्किल में बैठते हैं, जबकि महिलाएँ बाहर बैठती हैं. बहुत कम ही ऐसा होता है जब उन्हें अपनी राय देने की इजाजत होती है. इसी जनजाति के प्रभाव के चलते गांव बसने से पहले ये महिलाएं दबी कुचली रहीं. उमोजा के पहली सदस्य महिलाएं रिफ्ट घाटी के पार बसे अलग-थलग सांबुरु गांवों से आईं थी. तब से, जो महिलाएं और लड़कियां शरण के बारे में सुनती हैं वे इस गांव में आती हैं और व्यापार करना, अपने बच्चों का पालन-पोषण करना और पुरुष हिंसा और भेदभाव के डर के बिना रहना सीखती हैं.
18 साल का होते ही गांव से बाहर किए जाते हैं लड़के
उमोजा में फिलहाल 47 महिलाएं और 200 बच्चे हैं. इनमें से लड़कों को 18 साल का होते ही गांव से बाहर काम करने को कह दिया जाता है. हालांकि यहां के निवासी बेहद कम खर्च में रहते हैं. यहां की महिलाएं और लड़कियां छोटे- मोटे काम से इतना कमा लेती हैं कि सभी के लिए भोजन, कपड़े और घर हो सके. गांव की कुछ महिलाएं नदी के किनारे एक किलोमीटर दूर एक कैंपसाइट चलाती हैं, जहां सफारी पर्यटकों के समूह रुकते हैं. इनमें से कई पर्यटक, और आसपास के प्राकृतिक भंडारों से गुजरने वाले अन्य लोग, उमोजा भी जाते हैं. महिलाएं मामूली एंट्री फीस लेती हैं और हाथ की बनी चीजें पर्यटकों को बेचती हैं.
खास मुद्दों पर फैलाई जाती है जागरुकता
उमोजा समुदाय की एक अनूठी विशेषता यह भी है कि यहां की कुछ अधिक अनुभवी औरतें आसपास के सांबुरु गांवों की महिलाओं और लड़कियों को कम उम्र में शादी और खतना जैसे मुद्दों पर प्रशिक्षित करती हैं.