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अमेरिका को कौन बताएगा... आपने जो किया है वो एथनिक क्लिंजिंग है!

ट्रेल ऑफ टियर्स (Trail of Tears) की 200 साल पुरानी कहानी अमेरिकी लालच और प्रपंच की मुनादी है. ब्रिटेन से नई दुनिया की तलाश में व्हाइट सेटलर्स जब अमेरिका आए तो उन्होंने यहां के मूल निवासियों (इंडियन) को 'असभ्य' और 'गंवार' से ज्यादा कुछ भी नहीं समझा. इन जनजातियों को कथित आधुनिक और शहरी बनाते बनाते अमेरिकी स्टेट ने जो बदमाशियां की वो इतिहास में 'आसुंओं की पगडंडियां' के नाम से रिकॉर्ड हो गईं. इसे कलमबद्ध किया है किसी और ने नहीं, बल्कि अमेरिकी इतिहासकारों ने ही. ये वो पगडंडियां है जहां पग-पग पर एक आदिवासी की अस्मिता अमेरिकी स्टेट से टकराती है.

Trail of tears की पेंटिंग (आजतक) Trail of tears की पेंटिंग (आजतक)
पन्ना लाल
  • नई दिल्ली,
  • 21 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 10:26 AM IST

अमेरिका की जो शानो-शौकत अभी है. इसके पास ताकत और डॉलर की जो गर्मी है. इसकी जो धौंस और चौधराहट है उसके पीछे 250 सालों के मुसलसल खूनी संघर्ष और टकराव का इतिहास है. वर्ना इसी अमेरिका में यहां के राष्ट्रपति अपनी निजी संपत्ति के तौर पर गुलामों का कुनबा रखा करते थे. हैरान न होइए अगर हम आपको बताते हैं कि यूएस के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन का जब निधन हुआ तो उनके पास जायदाद की लिस्ट में 300 दास थे. बतौर आदमी पैदा हुए ये वो लोग थे जिनके साथ आदमियत से कभी पेश नहीं आया गया. और इनकी कई नस्लें गुलामगीरी करते-करते अमेरिका में ही मर खप गईं.

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अमेरिकियों ने ऐसा ही बर्बर आचरण अमेरिका के मूल निवासियों यानी कि 'इंडियन' के साथ किया. इंडियन सुनकर चौंकिए नहीं. दरअसल 1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस स्पेन से भारत यानी कि इंडिया का समुद्री रास्ता पता लगाने निकले थे. लेकिन पहुंच गए अमेरिका. पर उस समय कोलंबस का मानना था कि वे इंडिया ही पहुंचे हैं.इसलिए उन्होंने वहां के मूल निवासियों को इंडियन कहना शुरू कर दिया. यही इंडियन शब्द यूरोप पहुंचा और अमेरिका की मूल जनजाति को दुनिया में नाम मिला इंडियन.  

मानवाधिकार का लेक्चर देने वाले अमेरिका का अतीत
 
एक राष्ट्र के रूप में अमेरिकन स्टेट की यात्रा इन इंडियन की एथनिक क्लींजिंग (समूल विनाश) से भरी हुई है. आज अमेरिका चुनाव की प्रक्रिया से गुजर रहा है. ये समय है अमेरिकी इतिहास के दस्तावेजों को पलटकर देखने का. जरा देखिए उस अमेरिका का अतीत जिसकी एजेंसियां दुनिया भर में मानवाधिकार का लेक्चर देती है, सांस्कृतिक स्वतंत्रता की दुहाई देकर संस्थाओं और राष्ट्रों पर बैन लगाती है.मगर अपने लिबास पर लगे कालिख को देखकर भी नजरअंदाज कर देती हैं. ट्रेल ऑफ टियर्स (Trail of Tears) इसी अमेरिकी हिपोक्रेसी की दास्तान है. 

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1830 में अमेरिकी संसद में एक कानून पास होता है. ये तत्कालीन राष्ट्रपति एंड्रयू जैक्सन का प्रोजेक्ट था. नाम था- The Indian Removal Act. जैसा कि नाम से ही जाहिर होता है इंडियन को हटाने वाला कानून. इस दमनकारी कानून का सहारा लेकर अमेरिका ने जॉर्जिया, टेनेसी, अल्बामा, नॉर्थ कैरोलिना और फ्लोरिडा में लाखों एकड़ जमीन पर पीढ़ियों से रहने वाले हजारों-लाखों नैटिव अमेरिकन को मिसीसिपी नदी के पश्चिम में धकेल दिया. इस सफर में हजारों लोग मौत का शिकार हुए और अमेरिका ने इनकी सदियों की पहचान, यादगार, संस्कृति और रीति-रिवाज दिन दहाड़े डकैती कर ली. अमेरिकी मूल निवासियों की इसी विस्थापन की विपदा की यात्रा को इतिहास में Trail of tears के नाम से जाना जाता है.

आपने जो किया है वो नरसंहार की श्रेणी में आता है

लेकिन तब न तो मानवाधिकार संगठन थे, न ही इंटरनेशनल कोर्ट और न ही कोई कर्मठ चौकीदार था जो अमेरिका की ओर उंगुली उठाकर कह सके कि आपने इन मूल निवासियों के साथ जो किया है वो एथनिक क्लिंजिंग और जेनोसाइड (नरसंहार) की श्रेणी में आता है. 

Trail of tears की एक पेंटिंग.

तो कहानी ऐसी है कि 4 जुलाई 1776 को अमेरिका को ब्रिटेन से आजादी मिली. इसके साथ ही लाखों मील में फैले अमेरिका नाम के देश के मालिक अंग्रेज बन बैठे. लेकिन इनके आने से सैकड़ों साल पहले ही इस जमीन पर अमेरिकी मूल निवासी यानी इंडियन रहते आ रहे थे. 

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जब व्हाइट सेटलर्स ने अमेरिका में अपनी बस्तियां बसानी शुरू की, कपास लगाने शुरू किए, इन्हें नैटिव की बस्तियों की जमीनों के नीचे सोने की खदानों का पता चला तो इस पर कब्जे के लिए इनका इंडियंस के साथ टकराव होने लगा. यूरोपियन इन मूल निवासियों के जानवर ले जाते, अनाज हड़प जाते, जमीनों पर कब्जा कर लेते. मूलवासी भी पारंपरिक औजारों से गोरों पर हमला करने लगे. जल्द ही ये मसला एक समस्या बन गई. अमेरिकी सरकार ने इसे नाम दिया 'इंडियन प्रॉब्लम'. 

'इंडियन प्रॉबल्म'से निजात दिलाने के वादे के साथ बने राष्ट्रपति

एक 'सज्जन' थे एंड्रयू जैक्सन. अमेरिका के सातवें राष्ट्रपति. इन्होंने चुनाव ही इस वादे के साथ लड़ा था कि वे अमेरिकियों को इस 'इंडियन प्रॉबल्म'से निजात दिलाएंगे. राष्ट्रपति बनते ही उन्होंने अमेरिकन कांग्रेस से एक कानून पास करवाया. इसका नाम था- The Indian Removal act. एंड्रयू जैक्सन नैटिव इंडियंस को बस नाम का ही इंसान मानते थे. वे कहा करते थे- 'न तो इनमें बुद्धि है, न ही उद्योग करने की क्षमता, न ही वो नैतिक आचरण, इसके अलावा इनमें तरक्की की कोई ख्वाहिश भी नहीं है."

इधर नैटिव इंडियन अपने अनूठे रीति-रिवाज, खान-पान, वेश भूषा के साथ अपनी दुनिया में मस्त थे. उन्हें न तो यूरोपीय ज्ञान की जरूरत थी और न ही  संस्कारों की. लेकिन रेनेशां और इनलाइटनमेंट की रोशनी से आए व्हाइट सेटलर्स इन्हें कमतर निगाहों से देखते थे. दरअसल इनकी नजर इंडियंस की जमीनों पर थी जिन पर ये कपास उगाना चाहते थे. इस जमीन के नीचे सोना था जिसे हासिल करने के लिए नैटिव को यहां से भगाना जरूरी था. प्राकृतिक न्याय के हिसाब से देखा जाए तो ये जमीनें इन जनजातियों की होनी चाहिए थी, जहां इनके पूर्वज सदियों से रहते आए थे. लेकिन तब न्याय का बीड़ा उठाता कौन? 

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तब अमेरिका में 5 जनजातियां मुख्य थीं. ये जनजातियां थी चेरोकी, चिक्शॉ, चोक्टाव, क्रीक और सेमीनल. ये जनजातियां जॉर्जिया, अल्बामा, नॉर्थ कैरोलिना, फ्लोरिडा, टेनेसी में सदियों से रह रही थीं. इंडियन रिमूवल एक्ट पास होते ही अमेरिकी सरकार को अपने मिशन को अंजाम देने में जुट गई. अमेरिका सरकार ने इन जनजातियों को नये ठिकाने पर बसाने के लिए एक आज के ओकलाहोमा के पास एक जगह तय की. इसे 'इंडियन टेरिटोरी' नाम दिया गया. 

1831 की सर्दियां और इतिहास का वो विस्थापन

1831 की सर्दियों में, यूएस आर्मी की बंदूकों के साये में चोक्टाव वो पहली जनजाति थी जिसका विस्थापन शुरू हुआ. जनजातियों का अपने जल, जंगल जमीन से कितना लगाव होता है कहने की जरूरत नहीं, ये पहली बार में तो जाना ही नहीं चाहते थे, लेकिन अमेरिकी सैनिकों ने इन्हें जबरन घर से निकाल दिया. जो बागी थे उन्हें सीखचों में बांध दिया गया. 

कल्पना करिए 1831 का समय. 500 मील की यात्रा. सर्दियों की रातें. पैदल सफर, बच्चे और महिलाए भी साथ. और फिर माथे पर गृहस्थी का सारा संसार. कैसी रही होगी वो यात्रा. रास्ते में मौतों की संख्या हजारों में थी. कुछ बीमारी से मरे, कुछ भूख से, कुछ थककर, कुछ रोकर, कुछ त्रासदी से. 

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उबला मक्का, एक शलजम और दो कप गर्म पानी

और फिर जो खाना इन्हें मिलता था वो भी कोटे में था. दो तीन मुट्ठी उबला मक्का, एक शलजम और दो तीन कप गर्म पानी. इसी कोटे के भोजन के भरोसे ओकलाहोमा तक का सफर हुआ. 

इतिहास बताता है कि 17000 चोक्टाव इस सफर पर निकले थे, 5 से 6 हजार रास्ते में भी मर गए. इसी सफर पर उपहास करते हुए एक मजबूर चोक्टाव कबीलाई मुखिया ने इसे आंसुओं और मौत का रास्ता कहा था. 

ये तो चोक्टाव जनजाति की कहानी थी. इसी भाग्य से दूसरे इंडियन ट्राइब्स को भी गुजरना था. 1836 में सरकार ने क्रीक्स को उनकी भूमि से खदेड़ दिया. इस सफर में ओक्लाहोमा के लिए निकले 15,000 क्रीक्स में से 3,500 लोगों ने दम तोड़ दिया. 

सेमीनल, क्रीक जनजातियों की भी यही कहानियां रही. हजारों लोग मारे गये. ये सिलसिला सालों तक चलता रहा. 

1600 किलोमीटर की लंबी यात्रा

चेरोकी इंडियंस के विस्थापन की कहानी अमेरिकी साम्राज्यवाद की बेशर्मी की पराकाष्ठा है. चेरोकी अपनी जमीन नहीं छोड़ना चाहते थे. बात 1838 की है.  जैक्सन का कार्यकाल खत्म हो चुका था. अब  मार्टिन वैन ब्यूरन हेड ऑफ द स्टेट थे. उन्होंने चेरोकी को भगाने के लिए जनरल विनफील्ड स्कॉट के नेतृत्व में 7,000 सैनिकों को भेजा. स्कॉट और उनके सैनिकों ने संगीन की नोक पर 16000 चेरोकी इंडियंस को बाड़ों और डिटेंशन कैंप में बंद कर दिया, जबकि उनके लोगों ने उनके घरों और सामानों को लूटा. 

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फिर शुरू हुई इनका ट्रेल ऑफ टियर्स. ये 1000 मील यानी कि लगभग 1600 किलोमीटर लंबी यात्रा थी. यात्रा की वही कहानी यहां भी थी. काली खांसी, टाइफड, पेचिश, हैजा और भूखमरी महामारी बन गई. इतिहासकारों का अनुमान है कि यात्रा के परिणामस्वरूप 5,000 से अधिक चेरोकी मारे गए. 

जिंदगी जमीन का ही हिस्सा है

चेरोकी जनजाति के लिए जिंदगी जमीन का ही एक हिस्सा था. अपनी जमीन से इतर वे जिंदगी सोच ही नहीं सकते थे. विलियम एम नाम के एक लेखक ने लिखा है, "जंगल के हर चट्टान, हर पेड़, हर जगह इनकी आत्मा बसती थी. यह आत्मा इस जनजाति जीवन शैली की केंद्र थी. इस स्थान को खोने का विचार खुद को खोने का ही एहसास था." 

इस दौरान एक मिशनरी एलिज़र बटलर चेरोकी जनजातियों के साथ था उनके डॉक्टर के रूप में काम कर रहा था. इसकी पत्नी लूसी एम्स बलटर ने इस त्रासदी का वर्णन अपनी एक सहेली को लिखे एक पत्र में किया है- "क्या वे लोग जिनके पास इंडियंस के साथ अन्याय को दूर करने की शक्ति है, अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक नहीं होंगे? क्या वे उन लोगों के बारे में नहीं सोचेंगे जो इन पीड़ित इंडियंस की मूल धरती पर धन और स्वतंत्रता का आनंद लेने वाले श्वेत व्यक्तियों के लालच में बह गए हैं?"

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अगर मौतों का हिसाब लगाएं तो आज से 200 साल पहले कुल 15 से 20 हजार नैटिव अमेरिकन ने आंसुओं के इस पथ चलते हुए जान गंवाए.

दुनिया को 'सभ्य' बनाने के बोझ से दबे अमेरिकी 

विडंबना ये है कि न सिर्फ अमेरिकी सरकार बल्कि उनका पूरा सिस्टम जनजातियों के साथ इस व्यवहार को क्रिश्चयन वैल्यूज के अनुसार मानता था.  

राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन का मानना ​​था कि इस 'इंडियन प्रॉब्लम' को हल करने का सबसे अच्छा तरीका इन जनजातियों को 'सभ्य' बनाना है. सभ्य बनाने के इस कथित अभियान का मूल लक्ष्य उन्हें ईसाई धर्म में कन्वर्ट कर जितना हो सके गोरे अमेरिकियों जैसा बनाना था. 

जॉन गास्ट की पेंटिंग अमेरिकन प्रोग्रेस

   
1872 में जॉन गास्ट की एक पेंटिंग अमेरिकन प्रोग्रेस बहुत चर्चित हुई थी. इस तस्वीर में व्हाइट सेटलर महिला आसमान से एक फरिश्ते की तरह अमेरिकी जमीन पर उतर रही  है. उसके साथ व्हाइट सेटलर्स भी हैं. ये गोरे अपने साथ तरक्की के नये इजाद जैसे रेलवे, टेलिग्राफ, जहाज, खेती के आधुनिक यंत्र लेकर आ रहे हैं. जबकि उनके आगे असभ्य और जंगली नजर आने वाले स्थानीय इंडियंस भाग रहे हैं. अमेरिकी प्रोपगैंड का ये औजार उन दिनों खूब पॉपुलर हुआ था. 

सिकुड़ते सिकुड़ते समाप्त हो गई इंडियन टेरिटोरी

1840 आते-आते हजारों मूल अमेरिकियों को दक्षिण-पूर्वी राज्यों में उनकी भूमि से खदेड़कर जबरन मिसिसिपी के पार बसा दिया गया. लेकिन अमेरिकी लालच का अंत यहां भी नहीं था. यूं तो अमेरिकी सरकार ने वादा किया था कि उनका नया ठिकाना हमेशा के लिए स्थायी रहेगा और इस पर अमेरिकी हुकुमत कभी नजर नहीं डालेगी. लेकिन मूल निवासियों के हक को हड़प कर तेजी से तरक्की कर रहे अमेरिका का पेट कब भरने वाला था. 

लेकिन जैसे-जैसे गोरे लोगों की बस्तियों का दायरा पश्चिम की ओर बढ़ा "इंडियन टेरिटोरी" सिकुड़ती चली गई. अमेरिकी कानून में किये सारे वादे भूल गए. 1907 में, ओक्लाहोमा एक राज्य बन गया और इंडियन टेरिटोरी का वजूद समाप्त हो गया. दरअसल इस क्षेत्र को अमेरिकी साम्राज्यवाद का विकराल मुंह डकार गया था.   

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