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वोटिंग, काउंटिंग और नए अमेरिकी राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण कब होगा? जानिए अमेरिका का पूरा चुनावी शेड्यूल

हर चार साल में नवंबर के पहले मंगलवार को होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया का बिगुल चुनावी साल की शुरुआत में ही बज जाता है. इस प्रक्रिया की शुरुआत प्राइमरी और कॉकस की बैठकों के साथ होती है और समापन राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के साथ पूरा हो जाता है.

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 04 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 4:57 PM IST

अमेरिका में नए राष्ट्रपति के चुनाव के लिए पांच नवंबर को वोटिंग होगी. मुकाबला डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस और रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप के बीच है. वोटिंग बेशक पांच नवंबर को होगी लेकिन नतीजों की घोषणा में कई दिन लग सकते हैं. नया राष्ट्रपति जनवरी 2025 में पद की शपथ लेगा. ऐसे में दुनिया की सबसे जटिल चुनावी प्रक्रिया को समझ लेना जरूरी हो जाता है. 

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हर चार साल में नवंबर के पहले मंगलवार को होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया का बिगुल चुनावी साल की शुरुआत में ही बज जाता है. इस प्रक्रिया की शुरुआत प्राइमरी और कॉकस की बैठकों के साथ होती है और समापन राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के साथ पूरा हो जाता है.

अमेरिकी चुनाव में सिर्फ 2 पार्टियों का है बोलबाला!

अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव के लिए देश की दोनों प्रमुख पार्टियों रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक से दावेदार खुद को नॉमिनेट करते हैं. खुद की दावेदारी पेश करते हैं. यानी चुनाव में उतरने के लिए पार्टी के भीतर भी दावेदारों को उम्मीदवारी जीतनी होती है. इसके लिए पार्टियां स्टेट प्राइमरी और कॉकस का आयोजन करती हैं. चुनाव की शुरुआत प्राइमरी और कॉकस से ही होती है, जो हर राज्य में आयोजित किए जाते हैं. इनके जरिए पार्टियों की ओर से आधिकारिक तौर पर उम्मीदवारों का चयन किया जाता है. यह प्रक्रिया आमतौर पर चुनावी साल के जनवरी से शुरू हो जाती है. 

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क्या है प्राइमरी और कॉकस में अंतर?

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में यूं तो दो प्रमुख पार्टियों रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी का ही बोलबाला है. लेकिन एक ही पार्टी से राष्ट्रपति की उम्मीदवारी के लिए दर्जनों दावेदार खड़े हो जाते हैं. इन दावेदारों में से एक का चुनाव कर आधिकारिक रूप से उसे पार्टी की ओर से चुनावी मैदान में उतारा जाता है. इसके लिए देश के लगभग हर राज्य में प्राइमरी और कॉकस बैठकों का आयोजन किया जाता है.

प्राइमरी के लिए प्रत्यक्ष चुनाव होता है, जिसमें पार्टी के रजिस्टर्ड वोटर्स अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए वोट करते हैं. कॉकस से अलग प्राइमरी का संचालन पोलिंग स्टेशन पर होता है. वोटर्स सामान्य तौर पर गोपनीय बैलट के जरिए अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट करते हैं.

प्राइमरी आमतौर पर 2 तरह की होती है- क्लोज्ड प्राइमरी जिसमें सिर्फ पार्टी के रजिस्टर्ड वोटर्स हिस्सा लेते हैं जबकि दूसरी ओपन प्राइमरी है, जिसमें किसी भी पार्टी का मेंबर होना जरूरी नहीं है. 

वहीं, कॉकस एक तरह की स्थानीय बैठक होती है, जिसका आयोजन किसी स्कूल, टाउन हॉल समेत किसी भी सार्वजनिक स्थान पर होता है. इस बैठक में पार्टी के रजिस्टर्ड सदस्य इकट्ठा होते हैं और राष्ट्रपति के उम्मीदवार का चुनाव करते हैं. दोनों पार्टियों में उम्मीदवार बनने की चाहत रखने वाले लोग हर स्टेट में प्राइमरी और कॉकस इलेक्शन में हिस्सा लेते हैं. प्राइमरी और कॉकस चुनाव में जो जीतता है वह दोनों पार्टियों की ओर से औपचारिक उम्मीदवार बनता है.

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हर राज्य में प्राइमरी और कॉकस चुनाव जीतने के बाद इन्हें निश्चित संख्या में डेलिगेट्स का समर्थन हासिल होता है. जो उम्मीदवार महीनों चलने वाली इस प्रक्रिया में अपनी पार्टी के डेलिगेट्स की तय संख्या अपने पक्ष में कर लेता है वह नॉमिनेशन हासिल कर लेता है. यानी वह पार्टी का औपचारिक उम्मीदवार बन जाता है.

क्या है नेशनल कन्वेंशन?

हर पार्टी का अपना एक नेशनल कन्वेंशन होता है. इसमें आमतौर पर उस उम्मीदवार की आधिकारिक रूप से पुष्टि की जाती है जिसने पर्याप्त डेलिगेट्स जीत लिए हैं. इसकी घोषणा के लिए नेशनल कन्वेंशन का आयोजन किया जाता है. इस कन्वेंशन में पार्टी की ओर से तय किए गए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की जाती है. 

क्या होता है इलेक्टोरल कॉलेज?

यह अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का सबसे जटिल चरण है. इलेक्टोरल कॉलेज दरअसल वह निकाय है, जो राष्ट्रपति को चुनता है. इसे आसान भाषा में कुछ यूं समझिए कि आम जनता राष्ट्रपति चुनाव में ऐसे लोगों को वोट देते हैं जो इलेक्टोरल कॉलेज बनाते हैं और उनका काम देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को चुनना है. नवंबर के पहले सप्ताह में मंगलवार को वोटिंग उन मतदाताओं के लिए होती है जो राष्ट्रपति को चुनते हैं. ये इलेक्टर्स निर्वाचित होने के बाद दिसंबर महीने में अपने-अपने राज्य में एक जगह इकट्ठा होते हैं और राष्ट्रपति के चुनाव के लिए वोट करते हैं. 

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कैसे तय होता है राष्ट्रपति?

अमेरिका का राष्ट्रपति का चुनाव एक अप्रत्यक्ष प्रक्रिया है, जिसमें सभी राज्यों के नागरिक इलेक्टोरल कॉलेज के कुछ सदस्यों के लिए वोट करते हैं. इन सदस्यों को इलेक्टर्स कहा जाता है. ये इलेक्टर्स इसके बाद प्रत्यक्ष वोट डालते हैं जिन्हें इलेक्टोरल वोट कहा जाता है. इनके वोट अमेरिका के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए होते हैं. ऐसे उम्मीदवार जिन्हें इलेक्टोरल वोट्स में बहुमत मिलता है राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए चुने जाते हैं. 

समझ लीजिए, कुल 538 सीटों पर चुनाव का विजेता वह उम्मीदवार होता है जो 270 या उससे अधिक सीटें जीतता है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वही राष्ट्रपति बन जाए. यह संभव है कि कोई उम्मीदवार राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक वोट जीत ले लेकिन फिर भी वह इलेक्टोरल कॉलेज की ओर से जीत नहीं पाए. ऐसा मामला 2016 में सामने आया था, जब हिलेरी क्लिंटन इलेक्टोरल कॉलेज की ओर से नहीं जीत पाई थीं.

क्या नतीजे आने में लग सकते हैं कई दिन?

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग पांच नवंबर को हो रही है. वोटों की गिनती उसी दिन शुरू हो जाएगी लेकिन अंतिम नतीजे आने में कई दिन लग सकते हैं. अमेरिकी मतदाताओं को अंतिम नतीजे तब तक पता नहीं चल पाएगा, जब तक कमला हैरिस या ट्रंप अधिकांश राज्यों विशेष रूप से स्विंग स्टेट्स में महत्वपूर्ण जीत हासिल नहीं कर लेते. अगर जीत में कोई बड़ा अंतर नहीं आता है तो रिकाउंटिंग के साथ परिणामों को सुलझाने में कई दिन या सप्ताह भी लग सकते हैं.

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राष्ट्रपति कब लेता है शपथ?

राष्ट्रपति को आधिकारिक तौर पर जनवरी में वाशिंगटन डीसी में आयोजित एक समारोह में शपथ दिलाई जाती है. 20 जनवरी 2025 को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह होना है. 
 

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