
तीसरी बार केंद्र की सत्ता में बीजेपी को आने से रोकने के लिए विपक्षी एकता की कवायद तेज हो गई है. इस कड़ी में बिहार के सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने सोमवार को सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की. यह मुलाकात एक घंटे तक चली, लेकिन दोनों ही नेताओं की प्रेस कॉफ्रेंस महज 7 मिनट में खत्म हो गई. बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की लिए बैठक में बातें तो हुईं, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सबकुछ तय हो गया. ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या नीतीश कुमार सपा के साथ कांग्रेस और बसपा को विपक्षी खेमे में जोड़ पाएंगे?
ममता और अखिलेश से मिले नीतीश
कांग्रेस नेताओं राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ बातचीत के 12 दिनों के भीतर नीतीश कुमार ने ममता और अखिलेश से मिलने की कवायद की है. वहीं, सोमवार की बैठकों से यह संकेत मिले हैं कि दोनों क्षेत्रीय दलों (टीएमसी और सपा) के प्रमुख अब कांग्रेस के प्रति अपनी उदासीनता छोड़ने और 2024 के आम चुनावों से पहले विपक्षी गठबंधन के लिए सहमत हैं. ममता बनर्जी ने नीतीश कुमार के साथ लगभग एक घंटे की बैठक की तो अखिलेश के साथ भी इतनी ही देर मुलाकात चली, लेकिन कोई ऐसी बात निकलकर बाहर नहीं आ पाई जिससे ये पता चलता हो कि किसी ठोस कार्यक्रम पर ये लोग आगे बढ़ पाए हैं. दरअसल, यूपी में विपक्षी एकता की राह में कई सियासी चुनौतियां भी हैं.
अखिलेश-नीतीश ने दिया एकता का संदेश
नीतीश-अखिलेश की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कोई भी ऐसी नई बात सामने नहीं आई, जिससे यह पता चले कि विपक्ष को एक करने की नीतीश कुमार की कोशिश रंग लाई है. हालांकि, अखिलेश यादव ने यह जरूर कहा कि बीजेपी को हटाने के लिए वो साथ देने को तैयार हैं. नीतीश कुमार ने भी आधिकारिक तौर पर कहा कि अगर विपक्ष के ज्यादा से ज्यादा दलों में एकता हो जाए तो बीजेपी को आसानी से हटाया जा सकता है. वह इसके लिए गंभीरता से कोशिश भी कर रहे हैं, लेकिन बिहार की तर्ज पर यूपी में नीतीश क्या अखिलेश को कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए मना पाएंगे और बसपा को लेकर किस रणनीति के साथ आगे बढ़ पाएंगे, यह बड़ा सवाल है.
कांग्रेस पर तस्वीर साफ नहीं
बीजेपी को हराने और मोदी को सत्ता की हैट्रिक से रोकने के लिए तो दोनों नेता एकमत हैं, लेकिन कांग्रेस के जिस मैंडेट के साथ नीतीश कुमार बीजेपी और कांग्रेस विरोधी दलों से मिल रहे हैं, उस पर अखिलेश सहमत हो जाएं यह आसान नहीं. माना जा रहा है कि अखिलेश यादव से नीतीश कुमार ने अपनी इस मीटिंग में कांग्रेस को साथ लेने और उत्तर प्रदेश में विपक्षी दलों का नेतृत्व करने की बात की है.
वहीं, अखिलेश यूपी में कांग्रेस को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं. अखिलेश का मानना है कि कांग्रेस पार्टी के पास अपना वोट बैंक नहीं बचा है. ना तो ब्राह्मण कांग्रेस के साथ है, ना ही दलित और ना ही मुसलमान. कांग्रेस अब ओबीसी को लुभाने में लगी है. कांग्रेस का पूरा वोट बैंक बीजेपी में शिफ्ट हो चुका है और जब तक पार्टी अपना खिसका हुआ सियासी आधार वापस नहीं हासिल कर लेती. खासकर ब्राह्मण समुदाय उसके साथ नहीं जुड़ता है, तब तक कांग्रेस सूबे में क्षेत्रीय दलों के लिए कोई खास कारगर नहीं हो सकती है. कांग्रेस यूपी में बीजेपी के वोटबैंक को छोड़कर सपा के सियासी आधार में सेंधमारी कर रही है.
अखिलेश यादव सीधे-सीधे कांग्रेस के खिलाफ तो नहीं दिखे, लेकिन नीतीश कुमार भी कांग्रेस को लेकर बहुत उत्साहित नहीं थे. नीतीश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात के संकेत दिए कि अभी बहुत ही शुरुआती बातचीत है और आने वाले समय में ऐसी मुलाकातें होती रहेंगी. एक तरह से इस मीटिंग में आइस ब्रेक करने जैसी कोई बात नहीं हुई, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बेहद ही कमजोर स्थिति में है उसके ज्यादातर बड़े नेता बीजेपी में जा चुके हैं. कुछ इलाकों में कांग्रेस का जनाधार बचा है, ऐसे में कांग्रेस किसी बड़े प्लान के साथ गठबंधन की नहीं सोच सकती.
बसपा की एकला चलो की नीति बनी चुनौती
सपा भी कांग्रेस को बहुत ज्यादा राजनीतिक स्पेश देने के मूड में नहीं है. इसी तरह से 2019 के चुनाव में बसपा के साथ का कोई खास फायदा अखिलेश यादव को नहीं मिल सका. मायावती भी कांग्रेस की तरह सपा के कोर वोटबैंक पर ही नजर गड़ाए हुए हैं. बसपा दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने में जुटी है, जो बीजेपी से ज्यादा सपा के लिए घातक सिद्ध हो सकता है. ऐसे में अखिलेश यादव कांग्रेस और बसपा दोनों के साथ दूरी बनाए रखना चाहते हैं जबकि नीतीश कुमार बिहार फॉर्मूले पर यूपी में विपक्षी एकता बनाना चाहते हैं, जो फिलहाल संभव नहीं दिख रहा है.
मायावती पहले ही साफ कर चुकी हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में किसी भी दल के साथ कोई गठबंधन यूपी में नहीं करेंगी और सभी 80 सीटों पर अकेले चुनावी मैदान में उतरेंगी. बसपा विपक्षी एकता से दूरी बनाए हुए है. सांसद से लेकर सड़क तक मायावती एकला चलो की राह पर हैं. बसपा अकेले चुनावी मैदान में उतरती है तो विपक्षी एकजुटता कोई खास प्रभाव नहीं जमा सकेगी. नीतीश कुमार जिस तरह से अखिलेश पर ही डोरे डाल रहे हैं, उससे बसपा का साथ आना बहुत मुश्किल है.
नीतीश क्या सिर्फ मैसेज दे रहे हैं
सपा के करीबी सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार ने अखिलेश यादव के साथ मुलाकात के जरिए अपनी यह मैसेज देने की ज्यादा कोशिश की कि बिहार में उनका अपना सियासी ग्राफ बना रहे. आरजेडी और जेडीयू एक है यह मैसेज लोगों के बीच रहे और साथ ही लखनऊ और कोलकाता में मुलाकातों के जरिए राष्ट्रीय राजनीति में नीतीश कुमार अपनी प्रासंगिकता को भी बनाए रखना चाहते हैं. इस तरह नीतीश कुमार ने अखिलेश से मुलाकात के बहाने भले ही बातें कम की हो, लेकिन संदेश ज्यादा दिया है?