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गेस्ट हाउस कांड के बाद अतीक पर टूटा था मायावती का कहर! अब हाथी पर सवार हुआ बाहुबली परिवार

बाहुबली अतीक अहमद का परिवार गुरुवार को बसपा का दामन थाम लिया है. अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन ने बसपा की सदस्ता ग्रहण की और पार्टी ने उन्हें प्रयागराज से मेयर का कैंडिडेट बनाया है. हालांकि, गेस्ट हाउस कांड के बाद अतीक पर मायावती का जबरदस्त तरीके से कहर टूटा था, लेकिन अब तीन दशक के बाद सारी अदावत खत्म हो गई है.

मायावती और अतीक अहमद मायावती और अतीक अहमद
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 06 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 2:57 PM IST

उत्तर प्रदेश की सियासत में एक समय बसपा सुप्रीमो मायावती की सियासी तूती बोलती थी तो प्रयागराज में बाहुबली अतीक अहमद का राजनीतिक वर्चस्व कायम था. वक्त और सियासत ने दोनों को ऐसी जगह पर लाकर खड़ा कर दिया है कि उन्हें सियासी वजूद को बचाए रखने के लिए जूझना पड़ रहा है. ऐसे में मायावती और अतीक अहमद के बीच सालों से चली रही अदावत आखिरकार गुरुवार को समाप्त हो गई. मायावती के निर्देश पर अतीक का परिवार गुरुवार को बसपा के हाथी पर सवार हो गया है. 

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अतीक का परिवार बसपा में शामिल

अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन और उनके बेटे गुरुवार को बसपा में शामिल हो गए हैं. बसपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य घनश्याम चंद्र खरवार ने उन्हें पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराई और साथ ही शाइस्ता परवीन को प्रयागराज से मेयर का प्रत्याशी घोषित कर दिया है. बाहुबली अतीक के परिवार का बसपा में शामिल होने को उत्तर प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण घटनाक्रम माना जा रहा हैं, क्योंकि मायावती और अतीक अहमद दो विपरीत ध्रुव की तरह देखे जाते थे. 

प्रयागराज (इलहाबाद) को एक समय अतीक अहमद का गढ़ माना जाता था. 1989 में अतीक अहमद प्रयागराज पश्चिम सीट से निर्दलीय चुनाव जीते. इसके बाद वह सपा, अपना दल के टिकट से मैदान में आते रहे और जीतकर विधानसभा और संसद पहुंचते रहे. अतीक अहमद सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के करीबी नेता माने जाते थे और 1995 में सपा से बसपा ने समर्थन वापस लिया तो अतीक अहमद भी मुलायम सरकार बचाने उतरे थे. 

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गेस्ट हाउस कांड से शुरू हुई अदावत

जून 1995 में लखनऊ में हुए गेस्ट हाउस कांड के मुख्य आरोपियों में से बाहुबली अतीक अहमद एक थे, जिन्होंने मायावती पर हमला किया था. मायावती ने गेस्ट हाउस कांड के कई आरोपियों को माफ कर दिया था, लेकिन अतीक अहमद को नहीं बख्शा था. मायावती के सत्ता में आने के बाद अतीक अहमद की उल्टी गिनती शुरू हुई तो जब-जब बसपा सरकार में आई, अतीक अहमद हमेशा उनके निशाने पर रहे. 

मायावती शासन काल में अतीक अहमद पर कानूनी शिकंजा कसने के साथ-साथ उनकी संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने से लेकर कई बड़ी कार्रवाई हुई थी. यूपी में मायावती सरकार में अतीक अहमद जेल के सलाखों में रहे. बसपा के दौर में अतीक का कार्यालय गिरवाने के साथ उनकी संपत्तियां जब्त करवा कर जेल भेजा गया और प्रयागराज में उनकी राजनीतिक पकड़ को कमजोर ही नहीं बल्कि पूरी तरह से खत्म कर दिया गया था. 

राजू पाल हत्याकांड के बाद टूटा कहर

2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद फूलपुर सीट से सांसद चुने तो उनकी परंपरागत सीट प्रयागराज पश्चिम खाली हो गई. सूबे में सपा की सरकार थी और उपचुनाव हुआ तो अतीक अहमद के भाई अशरफ अहमद उतरे, जिनके खिलाफ बसपा के राजू पाल मैदान में थे. राजू पाल ने अशरफ को हराकर अतीक अहमद की सीट पर बसपा का झंडा फहरा दिया. यह बात अतीक अहमद को बर्दाश्त नहीं हुई और उन्होंने बसपा विधायक राजू पाल की दिन दहाड़े हत्या करा दी. राजू पाल की शादी हत्या से दस दिन पहले पूजा पाल से हुई थी. 

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2007 में यूपी में सत्ता परिवर्तन हुई. मायावती पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई तो अतीक अहमद की इलाहाबाद पश्चिम सीट से सिर्फ पूजा पाल को विधायक ही नहीं बनाया बल्कि बाहुबली की सियासत को भी जड़ से मिटा दिया. अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ पर मायावती के शासनकाल में कड़ी कार्रवाई हुई थी. मायावती के इस एक्शन के बाद आज तक अतीक अहमद और उनके परिवार को कोई सदस्य चुनाव नहीं जीत सका. 

अतीक अहमद की सियासत खत्म

अतीक अहमद पर मायावती ने जबरदस्त नकेल कसी थी और 2017 में योगी आदित्यनाथ ने उनके सियासी सम्राज्य को भी पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया. सपा ने भी अतीक अहमद से पूरी तरह किनारा कर लिया तो उनके पूरे परिवार का राजनीतिक ठिकाना पहले ओवैसी और अब बसपा बनी. इस तरह तीन दशक से अतीक के साथ चली आ रही अदावत को मायावती ने भुलाकर उनके परिवार को राजनीतिक सहारा दिया है.  

दरअसल, सूबे में 2012 से बसपा के घटते जनाधार ने मायावती के सामने राजनीतिक चुनौती खड़ी कर दी है. ऐसे में बसपा एक बार फिर से दलित-मुस्लिम गठजोड़ के साथ राजनीति में नया पैंतरा खेलने की तैयारी में है. इसी के मद्देनजर पश्चिमी यूपी में इमरान मसूद को बसपा में शामिल कराया गया और अब अतीक अहमद का परिवार हाथी पर सवार हुआ. अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता को प्रयागराज में नए मुस्लिम चेहरे के तौर पर जनता के बीच लाने की रणनीति अपनाई जा रही है. 

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अतीक अहमद के परिवार की बसपा में एंट्री मायावती की मंजूरी के बाद हुई है. पूर्व राज्यसभा सदस्य घनश्याम चंद्र खरवार ने कहा कि पार्टी प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के निर्देश पर शाइस्ता परवीन को पार्टी की सदस्यता दिलाई गई है. साथ ही नगर निकाय चुनाव भी पार्टी इनके ही नेतृत्व में लड़ेगी. वहीं, बसपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद शाइस्ता परवीन ने कहा कि सरकार उनके पति, देवर के साथ मेरे पूरे परिवार व मिलने जुलने वालों को फर्जी केसों में मुकदमा दर्ज करके उत्पीड़न कर रही है. उन्होंने कहा कि मेरा परिवार और समाज हमेशा बसपा के साथ रहेगा.   

मायावती से हो चुकी है मुलाकात
बसपा के सूत्रों की मानें तो मायावती से शाइस्ता परवीन ने लखनऊ में मुलाकात की थी और उसी दौरान सारे गिले-शिकवे दूर हो गए. बसपा मुखिया के निर्देश पर ही उन्हें पार्टी में शामिल कराया गया है. मायावती तक पहुंचाने और मुलाकात कराने की जिम्मेदारी जोन प्रभारी पूर्व राज्यसभा सदस्य घनश्याम चन्द्र खरवार को दी गई. इसके बाद ही अतीक अहमद के परिवार को बसपा में एंट्री मिली है और शाइस्ता परवीन को प्रयागराज नगर निगम में मेयर का टिकट दिया गया है. आगामी महापौर चुनाव में दलित और मुस्लिम गठजोड़ के सहारे बसपा जीत दर्ज करने का सपना देख रही है. 

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अतीक के परिवार को मिलेगी संजीवनी
प्रयागराज की सियासत में अतीक अहमद की तूती बोलती थी. साल 1989 से 2017 तक अतीक अहमद और उनके परिवार के लोग प्रयागराज से चुनाव लड़ते रहे और जीतते-हारते रहे. 33 साल में पहली बार 2022 विधानसभा चुनाव ऐसा था जब अतीक अहमद या उनका परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव नहीं लड़ सका था. इस तरह से अतीक अहमद की राजनीतिक विरासत बिल्कुल खत्म हो चुकी है. प्रयागराज पश्चिमी से पांच बार विधायक और एक बार फूलपुर से सांसद रहे अतीक अहमद के जेल जाने और प्रशासन की कार्रवाई से उनका सियासी समीकरण गड़बड़ा गया है.

हालांकि, एक दौर में प्रयागराज की सियासत में अतीक अहमद कभी कई सीटों पर जीत और हार तय करता था, लेकिन अब खुद ही उनकी राजनीति पर संकट गहरा गया है. ऐसे में अतीक अहमद के परिवार को मायावती ने सहारा दिया और उनकी पत्नी को प्रयागराज से मेयर का कैंडिडेट भी बनाया है. हाथी पर सवार होने के बाद क्या अतीक अहमद की राजनीतिक को नई सियासी संजीवनी मिल पाएगी? 
 

 

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