
अयोध्या के श्रीराम मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का आयोजन 22 जनवरी को होगा. इसे लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. रामलला अपने भव्य मंदिर के गर्भगृह में विराजमान होंगे. प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए अयोध्या को दुल्हन की तरह सजाया-संवारा जा रहा रामपथ पर काम युद्ध स्तर पर चल रहा है. शहर में चल रहे तमाम निर्माण कार्यों को पूरा करने के लिए 30 दिसंबर की डेडलाइन तय की गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में 22 जनवरी को राम मंदिर का लोकार्पण होने वाला है. इसी दिन मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी. इसके बाद 26 जनवरी से श्रद्धालु मंदिर के गर्भ गृह में रामलला के दर्शन-पूजन कर पाएंगे. इसे लेकर देश और दुनिया के अलग-अलग देशों में रहने वाले राम भक्तों में उत्साह है. जिस मंदिर में जाकर भक्त प्रभु श्रीराम के दर्शन के लिए उत्साहित हैं, उस मंदिर का इतिहास काफी रोचक है.
क्या है अयोध्या विवाद?
सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि अयोध्या विवाद आखिर था क्या? अयोध्या में लगभग 5 हजार मंदिर हैं. इसमें 95 फ़ीसदी मंदिर सीताराम के हैं. फिर आखिर इस श्रीराम मंदिर को लेकर सैकड़ों सालों तक संघर्ष और लंबी कानूनी लड़ाई क्यों हुई. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इस सवाल का जवाब भी दे दिया है. उसकी मानें तो यह लड़ाई श्री राममंदिर को लेकर नहीं, बल्कि श्री राम की जन्मभूमि को लेकर थी. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि जन्मस्थान की अदला-बदली नहीं होती. यह मंदिर जन्मस्थान का मंदिर है. अन्यथा मंदिर तो बहुत हैं, सारे देश में लाखों मंदिर होंगे, यह झगड़ा जन्मस्थली को लेकर था.
विवादित ढांचा गिराने के बाद बदले हालात
अयोध्या में श्रीराम की जिस जन्मस्थली की बात राम मंदिर ट्रस्ट कर रहा है, वहां पहले तीन गुंबदों की ऐसी इमारत थी, जो देखने में पूरी तरह मस्जिद लगती थी. इसी इमारत को हिंदू समाज श्रीराम का जन्मस्थान बताता है, जबकि मुस्लिम समाज इसे मस्जिद कहता था. हिंदू समाज का दावा है कि यहां पहले मंदिर था, जिसे तोड़कर विवादित ढांचा बनाया गया. जबकि मुस्लिम समाज का दावा था कि यहां कुछ नहीं था और ना कुछ तोड़ा गया. विवाद इस बात पर था कि जो तीन गुंबदों का ढांचा तोड़ा गया, वह मंदिर था या मस्जिद? इसे लेकर चंपत राय कहते हैं यहां तीन गुंबदों का एक ढांचा था.इसके तीन गुंबद थे, कोई दरवाजा नहीं था. हिंदू समाज कहता था कि यह श्रीराम का जन्मस्थान है. दूसरे लोग कहते थे कि मस्जिद है. अंग्रेजी में लिखा गया है बैरन लैंड. इसका मतलब यहां कुछ भी नहीं था. जब कुछ था ही नहीं तो तोड़ा भी कुछ नहीं गया. ये लड़ाई तब शुरू हुई जब विवादित ढांचा ढहाया गया था.
500 साल पहले भी लड़ी थी हिंदुओं ने लड़ाई
लड़ाई सिर्फ मंदिर की थी, तो मंदिर किसी अन्य स्थान पर क्यों नहीं बनाया गया. इस पर श्री राम मंदिर ट्रस्ट ने कहा कि यह लड़ाई मंदिर की नहीं, बल्कि ये थी कि यह इज्जत और सम्मान की लड़ाई थी. यही वजह रही कि हिंदू पक्ष इस लड़ाई को अपने सम्मान की लड़ाई मानकर लड़ता रहा. चंपत राय ने कहा कि 1528 में क्या आबादी रही होगी. 500 साल पहले यहां की जनता ने लड़ाई लड़ी. जय राजकुमारी ने इसे लेकर तलवार उठाई. उन्होंने कहा कि रानी तो कई मंदिर बनवा सकती थीं, तो लड़ाई की क्या जरूरत थी, लेकिन सवाल ये था कि यह स्थान हमारा है. हमारे घर में कोई कैसे घुस गया. ये इज्जत और सम्मान की लड़ाई थी.
हिंदू पक्ष क्या दावा करता है?
श्री राम मंदिर को तोड़ने का दावा हिंदू पक्ष करता है, तो क्या और भी मंदिर अयोध्या में तोड़े गए थे. इसे लेकर श्री राम जन्मभूमि ट्रस्ट का दावा है कि श्री राममंदिर के अलावा मुगलकाल में दो और मंदिर तोड़े गए थे. जिसमें एक स्वर्गद्वारी मंदिर था तो दूसरा मंदिर त्रेता के ठाकुर का था. हालंकि चर्चा सिर्फ श्री राम मंदिर को लेकर होती है, क्योंकि हिंदुओं का दावा है कि यह स्थान श्री राम की जन्मभूमि है. चंपत राय ने कहा कि संघर्ष केवल रामजन्मभूमि का है, केवल मंदिर तो इस देश में काम से कम 3000 तोड़े गए. कई किताबें लिखी गई हैं. अयोध्या में ही तीन मंदिर तोड़े गए. एक राम जन्मभूमि. दूसरा स्वर्गद्वारी और तीसरा त्रेता के ठाकुर का मंदिर. तीनों मंदिरों के तोड़ने का वर्णन किताबों में है.
6 दिसंबर की घटना पर क्या है ट्रस्ट का कहना?
श्री राम की जन्मभूमि पर बनी तीन गुंबदों वाले ढांचे को ढहाने का समय गीता जयंती के दिन नियत किया गया था. राम मंदिर ट्रस्ट कहता है कि ये संयोग था कि उस दिन 6 दिसंबर था. उसी दिन श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था और उस दिन तीन गुंबद वाला ढांचा गिर गया. चंपत राय ने कहा कि जब हमें इसका पता लगा तो आंख-नाक सब खुल गए थे.
योगी सरकार ने लिया दस्तावेज ट्रांसलेट करवाने का फैसला
मंदिर-मस्जिद की लड़ाई अदालत में लंबे समय तक चलती रही. 1995 में एक आदेश के तहत इस संबंध में दायर अलग-अलग मुकदमों को क्लब कर दिया गया. इसके बाद भी हाईकोर्ट से फैसला आने में एक दशक से अधिक का समय लग गया. जब फैसला आया तो दोनों पक्षों ने उसे पूरे मन से स्वीकार नहीं किया और दोनों पक्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट चले गए. सुप्रीम कोर्ट में सारे दस्तावेज अंग्रेजी में अनुवाद होकर जमा होने चाहिए, तभी सुनवाई होती है. लिहाजा अलग-अलग भाषाओं के दस्तावेज ट्रांसलेट होने में लंबा समय लग गया. सवाल यह भी था कि यह ट्रांसलेट कौन कराए? 2017 में यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद यूपी सरकार ने इन दस्तावेजों को ट्रांसलेट करने की जिम्मेदारी उठाई. चंपत राय ने कहा कि ये दस्तावेज हिंदी, संस्कृत, उर्दू, पारसी और फ्रेंच भाषा में थे. जब अदालत में सारे डॉक्यूमेंट्स अंग्रेजी में प्रस्तुत हो गए तब प्रक्रिया आगे बढ़ी.
महीनों तक चली समझौता वार्ता भी रही बेनतीजा
विवादित ढांचा गिरने के बाद लंबे संघर्षों और कानूनी लड़ाई के बाद शुरू हुई दोनों पक्षों में समझौता वार्ता. यह समझौता वार्ता विश्वविद्यालय मीटिंग हॉल और लखनऊ से लेकर हनुमानगढ़ी समेत कई मंदिरों में हुई. साढ़े चार महीने तक चली समझौता वार्ता में जब सहमति नहीं बन सकी, तो कोर्ट ने भी कहा कि दोनों पक्षों के बीच समझौता होना संभव नहीं है. इस समझौता वार्ता का कोई नतीजा नहीं निकल सकता. चंपत राय ने बताया कि जब चार महीने बाद भी समझौता वार्ता से कुछ हासिल नहीं हुआ तो कहा गया कि क्यों समय खत्म कर रहे हो. कुछ नहीं होगा. समझौते के लिए जो टीम बनी थी, उसने भी मान लिया कि कुछ नहीं हो सकता. और लिखकर दिया कि समझौता संभव नहीं है. तब अदालत ने अपनी प्रक्रिया शुरू की.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला
6 अगस्त 2019 को कोर्ट में मैराथन बहस चलने के बाद कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस को समाप्त मान लिया और 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने अपना निर्णय सुना दिया. इस फैसले के अनुसार तीन गुंबदों वाली इमारत की भूमि हिंदू समाज को दी गई और सरकार को 2 महीने के भीतर एक नया ट्रस्ट बनाने का आदेश भी दिया गया. इसी के बाद केंद्र सरकार ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन किया और उक्त भूमि भी इसी ट्रस्ट को सौंप दी गई. चंपत राय ने बताया कि कोर्ट ने कहा कि हमने सब की बात सुन ली है. अब हम अपना निर्णय देंगे. 9 नवंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया.
22 जनवरी को होगी प्राण प्रतिष्ठा
अब 22 जनवरी 2024 को श्री राम जन्मभूमि मंदिर में रामलला विराजमान होने वाले हैं, तो उनकी प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त ऐसा चुना गया है जो सबसे शुभ हो. नए मंदिर में श्री राम के 5 वर्षीय बालक स्वरूप की मूर्ति होगी और 51 इंच यानि लगभग साढ़े 4 फीट की होगी. प्राण प्रतिष्ठा किसके हाथों से हो, इसके लिए कई नाम पर विचार किया गया और उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी के नाम का निर्णय हुआ. चंपत राय ने कहा कि नया मंदिर बन रहा है, तो नई मूर्ति भी बनेगी. मंदिर में प्रतिमा जहां रखी जाएगी, वह गर्भगृह भी बन गया है. मंदिर बहुत बड़ा है, अभी निर्माण कार्य चल रहा है जो कि अगले 1 साल तक और चलेगा.