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'कब्रिस्तान नहीं, ये महाभारत काल का लाक्षागृह...', 53 साल बाद आए कोर्ट के फैसले में हिंदू पक्ष की जीत

बागपत के लाक्षागृह (Lakshagraha) और कब्रिस्तान के विवाद पर कोर्ट का फैसला आया गया है. कोर्ट ने कहा है कि ये जगह कब्रिस्तान नहीं है बल्कि महाभारत कालीन लाक्षागृह है. हिंदू पक्ष के वकील के मुताबिक, राजस्व न्यायालय में भी यह जमीन लाखामंडप के नाम से दर्ज है.

लाक्षागृह-कब्रिस्तान विवाद पर आया कोर्ट का फैसला. लाक्षागृह-कब्रिस्तान विवाद पर आया कोर्ट का फैसला.
दुष्यंत त्यागी
  • बागपत ,
  • 05 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 8:42 PM IST

यूपी के बागपत में लाक्षागृह और कब्रिस्तान विवाद पर कोर्ट का फैसला हिंदू पक्ष के समर्थन में आया है. कोर्ट ने कहा है कि ये जगह कब्रिस्तान नहीं है, बल्कि महाभारत कालीन लाक्षागृह है. विवादित जमीन पर लाक्षागृह ही है. इस फैसले पर हिंदू पक्ष ने कहा कि लाक्षागृह का वर्णन महाभारत में आता है. ये महल पांडवों को जिंदा जलाने के लिए बनवाया गया था. 

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दरअसल, सिविल कोर्ट में मुकीम खान व अन्य ने यह दावा करते हुए केस दायर किया था कि यह जमीन कब्रिस्तान की है. साल 1970 से मुकदमा चला रहा था. 1997 में मुकदमा बागपत ट्रांसफर हुआ. 53 साल बाद हिंदुओं के पक्ष में फैसला आया है. हिंदू पक्ष के वकील ने बताया कि अपने फैसले में कोर्ट ने कहा है, यह कोई कब्रिस्तान नहीं है, लाक्षागृह है और महाभारत काल का ही है. मौके पर जो प्राचीन चिन्ह मिले हैं, उससे साफ होता है कि ये कब्रिस्तान नहीं है. 

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उन्होंने कहा कि जब मुगल शासक यहां आए और राज किया तो उन्होंने तोड़फोड़ करके जो चाहा वो कर लिया. गवाही और साक्ष्यों के बाद कोर्ट ने यह पाया है कि यह वास्तव में कब्रिस्तान नहीं है. यह 108 बीघा जमीन है. एक ऊंचा टीला है. यहां पर पांडव आए थे. उनको जलाकर मारने के लिए एक लाखामंडप बनाया गया था. रेवेन्यू कोर्ट में भी है लाखामंडप दर्ज है. 

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'ये जगह प्राचीन समय से हिंदुओं के लिए तीर्थस्थल रही है'

हिंदू पक्ष के वकील रणवीर सिंह तोमर के मुताबिक, कोर्ट ने सबूतों के बाद यह पाया है कि यह कब्रिस्तान नहीं है. यहां 108 बीघा जमीन पर ऊंचा टीला है. राजस्व न्यायालय में भी यह जमीन लाखामंडप के नाम से दर्ज है. ये जगह प्राचीन समय से ही हिंदुओं के लिए तीर्थस्थल रही है.

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