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कोरोना काल में आई एंबुलेंस अब जूता सुखाने के आ रही है काम, खड़े-खड़े ही हो गई कबाड़!

कोरोना काल में 15 लाख की नई एंबुलेंस विभागीय जिम्मेदारों की लापरवाही की वजह से खड़े-खड़े कबाड़ हो गई. एम्बुलेंस का हाल अब यह है कि इस एम्बुलेंस पर विभागीय कर्मचारियों के जूते सुखाने के काम में लाया जा रहा है. तो मतलब यह है कि लाखों की सरकारी एम्बुलेंस की कीमत जूते के बराबर हो गई है.

एंबुलेंस पर जूता सुखाया जा रहा है एंबुलेंस पर जूता सुखाया जा रहा है
aajtak.in
  • बस्ती,
  • 03 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 12:22 PM IST

कोरोना काल के दौरान स्वास्थ्य महानिदेशालय से आई करीब 15 लाख की नई एंबुलेंस विभागीय जिम्मेदारों की लापरवाही की वजह से खड़े-खड़े कबाड़ हो गई. यह एंबुलेंस अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस था, मगर उदासीनता का आलम इस कदर कि शासन की तरफ से इस एंबुलेंस का न तो पंजीकरण कराया गया और न ही एएलएस यानी एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम से ही इसे जोड़ने के लिए बजट और सामान ही भेजा गया.

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वहीं जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि पंजीकरण न होने के कारण इस एंबुलेंस का कोई प्रयोग नहीं हो पा रहा है. करीब तीन साल पूर्व स्वास्थ्य निदेशालय से एक एंबुलेंस बस्ती स्वास्थ्य महकमे को भेजी गई थी. उस समय यह कहा गया था कि इस एंबुलेंस में एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम लगाया जाएगा और इसे 108 के बजाय डायरेक्ट स्वास्थ्य विभाग के सीएमओ अपने स्तर से जरूरतमंद को उपलब्ध करवाएंगे.

इतना ही नही संचालन के लिए विभाग की ओर से अलग से बजट भी मुहैया कराया जायेगा, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस एंबुलेंस को बिना पंजीकरण कराए ही भेज दिया गया था. बताया जा रहा है कि कोविड काल में पूरे प्रदेश में इस तरह से अत्याधुनिक एक-एक एंबुलेंस जिले को भेजे गए थे. वाहन आने के 6 महीने बाद निदेशालय से कहा गया कि एंबुलेंस का चेचिस नंबर उतारकर भेजिए ताकि एंबुलेंस का पंजीकरण कराया जा सके.

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सीएमओ कार्यालय से इसे भेजा भी गया मगर स्वास्थ्य महानिदेशालय से फिर कोई खोज खबर नहीं ली गई और अब आलम यह है कि काफी दिनों खड़े रहने की वजह से एंबुलेंस की बैटरी सहित कई पार्ट्स खराब हो चुके है. इसे फिर से एक्टिव करने में ही भारी भरकम बजट खर्च होगा. वाहन आने के बाद जिले में अब तक 6 से अधिक सीएमओ बदल चुके है, लेकिन पंजीकरण के लिए किसी की ओर से कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया.

एम्बुलेंस का हाल अब यह है कि इस एम्बुलेंस पर विभागीय कर्मचारियों के जूते सुखाने के काम में लाया जा रहा है. तो मतलब यह है कि लाखों की सरकारी एम्बुलेंस की कीमत जूते के बराबर हो गई है.

वहीं इस पूरे मामले को लेकर जब हमने मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर आरपी मिश्रा ने कहा कि एंबुलेंस खराब नहीं है, मैंने अभी चेक कराया था, केवल इसका पंजीकरण नहीं हो पाया है इसलिए इसे रोड पर नहीं उतारा गया है, यह एंबुलेंस कोविड काल में आई थी और पंजीकरण के लिए हमने पत्राचार कर दिया है.

एंबुलेंस पर जूता सुखाने वाले कर्मचारी सुरेश से जब हमने बात की तो उसने यह माना कि यह एंबुलेंस काफी दिन से खड़ी है, लेकिन जब जूता सुखाने वाला उससे प्रश्न पूछा गया तो वह बंदर को दोष देने लगा और कहा कि साहब यह जूता मैं नहीं सुखा रहा था बल्कि हनुमान जी यानी बन्दर ने लाकर एंबुलेंस पर रख दिया.

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(रिपोर्ट- संतोष सिंह)

 

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