
उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है. उपचुनाव के लिए चुनाव कार्यक्रम का ऐलान होना अभी बाकी है लेकिन राजनीतिक दलों ने इसे लेकर तैयारियां शुरू कर दी हैं. उम्मीदवार चयन के मोर्चे पर मंथन शुरू हो चुका है. समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस लोकसभा चुनाव का मोमेंटम इन उपचुनावों में भी बरकरार रखना चाहते हैं तो वहीं भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी सभी सीटें जीतने के लिए पूरा जोर लगाने को तैयार है. बीजेपी और सपा के बीच होने जा रहे इस मुकाबले को बहुकोणीय बनाने की तैयारी में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी है.
बसपा उपचुनाव लड़ने से परहेज करती रही है लेकिन पार्टी इस बार हर सीट पर उम्मीदवार की तलाश में है. बसपा नेतृत्व ने इसे लेकर संगठन के स्तर पर तैयारी भी शुरू कर दी है. उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया में पार्टी के जिलाध्यक्ष पार्टी प्रमुख मायावती को रिपोर्ट करेंगे. इस रिपोर्ट के आधार पर ही उम्मीदवार का नाम फाइनल किया जाएगा.
बसपा के इस कदम की बहुत चर्चा हो रही है. चर्चा बेवजह भी नहीं है. बसपा उपचुनाव में उम्मीदवार उतारने से परहेज करती रही है. फिर अब उपचुनाव लड़ना बसपा के लिए जरूरी है या मजबूरी? जरूरी या मजबूरी की बात इसलिए भी हो रही है, क्योंकि पिछले कुछ साल में बसपा के प्रदर्शन में गिरावट आई है. यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार चला चुकी बसपा आज विधानसभा में एक सीट पर सिमटकर रह गई है.
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संसदीय चुनावों की बात करें तो तीन में से दो चुनावों में पार्टी खाता तक नहीं खोल पाई. 2019 में बसपा ने 10 सीटें जीतीं जरूर थीं लेकिन तब पार्टी सपा के साथ गठबंधन कर उतरी थी. बसपा को लेकर कहा तो ये भी जाता था कि खराब से खराब हालत में भी पार्टी 16 फीसदी के आसपास वोट शेयर मेंटेन कर जाती है. ऐसा देखने को भी मिला है लेकिन हाल के लोकसभा चुनाव में बसपा वोट शेयर के मामले में कांग्रेस से भी पिछड़ गई.
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दलित पॉलिटिक्स की पिच पर बसपा को चंद्रशेखर आजाद के उभार के बाद आजाद समाज पार्टी से चुनौती भी मिल रही है. बसपा हाल के चुनाव में शून्य पर सिमट गई तो वहीं आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद नगीना सीट से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचने में सफल रहे. चंद्रशेखर की पार्टी अब विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव में भी उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है. ऐसे में मायावती और बसपा को यह आशंका भी सता रही है कि कहीं हाथी के सिंबल पर उम्मीदवार की नामौजूदगी से एएसपी को दलित समाज में पैठ मजबूत करने का मौका न मिल जाए. बसपा के सामने दलित वोट बेस बचाने की चुनौती है.