
चार दशक पहले हुए दिहुली दलित नरसंहार मामले में आखिरकार न्यायालय ने अपना फैसला सुना दिया है. मैनपुरी कोर्ट के विशेष न्यायाधीश ने मंगलवार को कप्तान सिंह, राम पाल और राम सेवक को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा और 50 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है.
क्या था पूरा मामला?
18 नवंबर 1981 की शाम को फिरोजाबाद जिले के दिहुली गांव में 17 हथियारबंद डकैतों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी थी. इस हमले में 23 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि 1 व्यक्ति ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था. इस तरह कुल 24 दलितों की निर्मम हत्या कर दी गई थी.
घटना के बाद स्थानीय निवासी लैइक सिंह की तहरीर पर मामला दर्ज किया गया था. पुलिस जांच में 17 डकैतों को आरोपित किया गया था, जिनमें गिरोह के सरगना संतोष सिंह (उर्फ संतोसा) और राधेश्याम (उर्फ राधे) भी शामिल थे. हालांकि, मुकदमे के दौरान 13 आरोपियों की मौत हो गई, जबकि एक आरोपी अब भी फरार है.
पीड़ित परिवार से मिली थीं इंदिरा गांधी
इस हत्याकांड के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की थी, जबकि विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने दिहुली से सादुपुर (फिरोजाबाद) तक पैदल यात्रा कर पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की थी.
'चार दशक बाद मिला न्याय'
इस फैसले पर शासकीय अधिवक्ता रोहित शुक्ला ने कहा, 'चार दशक बाद पीड़ित परिवारों को न्याय मिला है. यह एक ऐतिहासिक फैसला है, जिससे समाज में यह संदेश जाएगा कि कोई भी अपराधी कानून से नहीं बच सकता.'
अब आगे क्या?
फैसले के बाद, दोषियों के पास उच्च न्यायालय में अपील करने का विकल्प रहेगा. न्यायालय के इस फैसले को पीड़ित परिवारों ने न्याय की जीत बताया है.