
वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में जारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) टीम के सर्वे का काम पूरा हो गया है. आज (16 नवंबर) सर्वे का आखिरी दिन था. 100 दिन से अधिक चले ASI सर्वे के बाद अब कल (17 नवंबर) वाराणसी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में सौंपा जाएगा. सर्वे के दौरान 250 से अधिक अवशेषों को सुरक्षित रखा गया है. इसके अलावा अन्य सबूत भी जुटाए गए हैं. इन सभी को कोर्ट के समक्ष पेश किया जाएगा.
बता दें कि जिला जज ने 21 जुलाई को ज्ञानवापी में वजू खाने को छोड़कर बाकी परिसर का ASI सर्वे कराने का आदेश दिया था. 24 जुलाई को सर्वे कार्य शुरू हुआ, लेकिन बाद में इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रोक दिया गया था. मुस्लिम पक्ष ने सर्वे कार्य पर रोक लगाने की अपील की थी.
अंतरिम रोक का आदेश देने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील करने के लिए कहा था. 27 जुलाई को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया. और 3 अगस्त को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज करते हुए सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद 4 अगस्त को दोबारा सर्वे कार्य शुरू हुआ. जिसपर मुस्लिम पक्ष फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां कोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया. इस तरह ज्ञानवापी के ASI सर्वे का मार्ग प्रशस्त हो गया.
3 महीने से ज्यादा समय तक चला ASI का सर्वे
कोर्ट के आदेश के बाद ज्ञानवापी परिसर का सर्वे कार्य शुरू हुआ, जो तीन महीने से ज्यादा समय तक चला. ASI की 40 सदस्यीय टीम ने सर्वे में ग्राउंड पेनेट्रेशन रडार सिस्टम सहित कई अत्याधुनिक उपकरणों की मदद ली. नई-नई तकनीक के जरिए ज्ञानवापी परिसर में बने ढांचे और इसके तहखानों से लेकर गुंबद और शीर्ष की नाप-जोख कर डिटेल रिपोर्ट तैयार की गई है. इसमें हैदराबाद और कानपुर के एक्सपर्ट ने भी सहयोग दिया. सर्वे में थ्री डी फोटोग्राफी और स्कैनिंग के साथ डिजिटल मैपिंग भी करवाई गई है.
दावा किया गया कि सर्वे से खंडित मूर्तियां, हिंदू चिह्न और आकृतियां आदि मिले हैं. हालांकि, मुस्लिम पक्ष ने इसका खंडन किया और कोर्ट से गुहार लगाई कि सर्वे में मिली कथित चीजों की बातें बाहर मीडिया में ना फैलाई जाएं. बाद में कोर्ट ने भी यही आदेश अधिकारियों को दिया. फैसले से पहले गोपनीयता बनाए रखने की बात कही गई.