
उत्तरप्रदेश के हाथरस में मंगलवार को सत्संग के दौरान मची भगदड़ में लाशों का अंबार लग गया. अब तक 121 मौतें बताई जा रही हैं. खबर लिखी जाने तक नंबर लगातार बढ़ता रहा. हादसे के बाद कई तस्वीरें आ रही हैं. छूटी हुई अकेली चप्पल, जिसका मालिक लापता है. बिलखती आंखें, जिनका इंतजार शायद ही कभी खत्म हो. छोटे चकनाचूर फोन, जिनपर अब कोई कॉल नहीं आएगा. फुलरई गांव ने बीते कुछ घंटों में उतनी चीखें, उतने आंसू देख लिए, जिनका जख्म सालों ताजा रहेगा.
ये सबकुछ हुआ, सूरजपाल उर्फ नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग के बाद. हाथरस के नेशनल हाइवे के पास बसे गांव फुलरई के खेतों में मंगलवार को सूरजपाल का कार्यक्रम रखा गया था. लगभग डेढ़ सौ बीघा खेतनुमा मैदान में 80 हजार लोगों के शामिल होने की अनुमति ली गई. लेकिन ये संख्या बढ़ी और डेढ़ लाख पार कर गई. कहीं-कहीं ये भी दावा है कि ढाई से तीन लाख लोग वहां जमा थे.
सुबह 8 से दोपहर 1 बजे तक सत्संग चलता रहा. लोग संगीत की धुन पर नाच-गा भी रहे थे. कई तस्वीरें हैं, जहां खुशरंग चेहरे और कपड़ों में श्रद्धालु दिखते हैं. सुरक्षा और भीड़ को संभालने का जिम्मा बाबा की प्राइवेट आर्मी यानी सेवादारों पर था. हाथों में डंडे लिए सेवादार यहां से वहां लोगों को ठीक से बैठने या शोरगुल न करने की हिदायत दे रहे थे. हल्की बारिश के बाद हवा में उमस थी. महिलाएं अपनी सबसे सुंदर साड़ियों के पल्लू से बार-बार पसीना पोंछ रही थी. बच्चों के साथ पहुंची मांएं आशीर्वाद पाकर जल्दी लौटने का इंतजार कर रही थीं. कुल मिलाकर, एक टिपिकल तस्वीर, जो किसी भी धार्मिक आयोजन या बड़े उत्सव में दिखती है.
यहां तक सब ठीक था. हालात करीब डेढ़ बजे एकदम से बिगड़ने लगे. दरअसल बाबा का काफिला सत्संग स्थल से बाहर जा रहा था, जब हुजूम का हुजूम उनकी गाड़ी के पीछे भागने लगा. सबको बाबा की चरण रज लेनी थी ताकि सारे दुख हर जाएं. बता दें कि बाबा दावा करता था कि उसकी चरण रज यानी पैरों की धूल माथे पर लगाने से सारे संकट दूर हो जाएंगे. आयोजन की हंसती-गाती तस्वीर यहीं से उलट हो गई.
भीड़ का सैलाब आया, जो सामने पड़ने वाली हर शै को कुचल रहा था. बैठे हुए लोग संभल न पाने के चलते जमीन पर ही गिर पड़े. दौड़ते हुए पांव एक बार रुके तो हमेशा के लिए रुक गए. भागती हुई मांओं के हाथों से बच्चों के हाथ छूट गए. एक दिन पहले हुई बारिश के चलते खेतनुमा मैदान दलदली जमीन बने हुए थे. श्रद्धालु रपटकर वहीं गिरने लगे. भीड़ का सैलाब इतना जबर्दस्त था कि कोई किसी अपने के लिए चाहकर भी रुक नहीं सका. लोग भागते रहे. लाशें बिछती रहीं.
बाबा का काफिला आगे बढ़ चुका था. चरण रज लेने के लिए दौड़ते लोग अब अपनों की खोज में भाग रहे थे. सैकड़ों लोग मिसिंग थे. धीरे-धीरे लाशें बरामद होने लगीं. खेतों में कीचड़-मिट्टी में सनी लाशें. कुछ जिंदा थे, जो वक्त पर इलाज न मिलने पर खत्म हो गए. घटना कितनी भयावह है इसका अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि हाथरस की मॉर्चुरी लाशें रखने और पोस्टमार्टम के लिए कम पड़ गई. उसके अलावा तीन जिलों- अलीगढ़, एटा और आगरा में भी पूरी रात पीएम होता रहा. बहुत से लोगों के परिजन अब भी मिसिंग हैं.
बाबा की चरण रज का क्या है फेर
लगभग हर तबके के लोग सूरजपाल उर्फ बाबा के अनुयायी रहे. चूंकि बाबा ने खुद कह रखा था कि उसकी चरण रज माथे से लगाने पर सारे कष्ट दूर हो सकते हैं, अनुयायी उतावले रहने लगे. अक्सर बाबा के काफिले के पीछे लोग भागते और जमीन से मिट्टी उठाकर माथे से लगाते. महिलाएं एक कदम आगे रहीं. वे गाड़ी के गुजरने के बाद पीछे छूटी धूल को आंचल में भर लेतीं. ऐसा सालों से चला आ रहा है.
ये हादसा भी हो सकता था, लेकिन मौके पर मौजूद लोगों के बयान इशारा कर रहे हैं कि ये लापरवाही के कारण हुई चूक से कहीं बड़ी बात है.
- मंशा पर पहला सवाल तो यहीं आ जाता है कि अगर कुछ हजारों की भीड़ के लिए इजाजत ली गई थी, तो लाखों की भीड़ जुटने से रोका क्यों नहीं गया. या फिर प्रशासन को इत्तला क्यों नहीं की गई.
- क्राउड मैनेजमेंट के लिए बाबा के सेवादार ही काफी क्यों मान लिए गए. क्या इसमें पुलिस की मौजूदगी नहीं होनी चाहिए थी.
- बारिश का मौसम था, इसके बाद भी फिसलन वाले खेतों को क्यों सत्संग का मैदान बनाया गया, जबकि यहां छोटी भूल भी आसानी से बड़ा हादसा बन सकती है.
- भगदड़ में बाबा के सेवादारों की भी भूमिका बताई जा रही है. कथित तौर पर उन्होंने भीड़ पर पानी की बौछार की, और धमकाया, जिससे लोग बेकाबू हो गई.
- हंगामे के बाद सेवादारों ने तुरंत लोकल प्रशासन को सूचित नहीं किया, बल्कि मुख्य सेवादार समेत बाबा खुद फरार हो गए. वे अब भी अंडरग्राउंड हैं.
फिलहाल 22 लोगों के खिलाफ सिकंदराराऊ थाने में FIR दर्ज हो चुकी है. कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसमें मुख्य आरोपी हरिनारायण साकार उर्फ भोले बाबा का नाम ही नहीं. घटना के बाद से बाबा फरार है. मैनपुरी में उसके आश्रम के बाद जगह-जगह छापेमारी चल रही है. इधर मुख्य सेवादार भी परिवार समेत फरार है.
कौन-कौन सी धाराएं लगीं और क्यों
इंडियन पीनल कोड की धारा 105 (गैर इरादतन हत्या), 110 (गैर इरादतन हत्या का प्रयास), 126-2 (गलत तरीके से रोकना), 223 (सिविल सर्वेंट द्वारा जारी आदेश की अवज्ञा), 283 (साक्ष्य मिटाना) जैसी कई धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है. एफआईआर में लिखा गया कि सड़क के दोनों ओर खेतों में भरे पानी और कीचड़ में बेतहाशा भागती भीड़ को सेवादारों और आयोजन समिति ने डंडों के दम पर जबरन रोक दिया. इससे भीड़ का दबाव बढ़ता चला गया और लोग एक-दूसरे को रौंदने लगे. मौके पर मौजूद घायलों को अस्पताल तक ले जाने में भी उन्होंने कोई मदद नहीं दी.
उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी हाथरस पहुंच हालात का जायजा लिया और प्रेस कॉफ्रेंस की. उन्होंने कहा कि कार्यक्रम में जो सज्जन उपदेश देने आए थे उनकी कथा पूरी होने के बाद, उनके मंच से उतरने पर, उन्हें छूने के लिए महिलाओं का एक दल आगे बढ़ा तभी उनके पीछे एक भीड़ गई. इसी दौरान लोग एक-दूसरे पर चढ़ते चले गए. सेवादार भी लोगों को धक्का देते रहे जिससे हादसा हुआ, इस पूरी घटनाक्रम के लिए ADG आगरा की अध्यक्षता में SIT गठित की गई है जिसने प्रारंभिक रिपोर्ट दी है. कई पहलुओं पर जांच होनी है.
कौन हैं सूरजपाल सिंह उर्फ नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा
लगभग 17 साल पहले इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट के सिपाही सूरज पाल ने नौकरी से इस्तीफा दिया और एक नई पहचान बनाकर आगरा के शाहगंज केदार से अपना काम शुरू किया. वो यहां प्रवचन देने लगा. उपदेश देने के साथ-साथ वो हैंडपंप के पानी से लोगों के इलाज का दावा करता. यहीं से वो खुद को नारायण साकार हरि कहने लगा. ये बाबा आम बाबाओं से अलग तौर-तरीकों रखता. सफेद सूट-बूट और काले चश्मे में नारायण सरकार चांदी रंग वाले सिंहासन पर बैठकर उपदेश दिया करता.
वो भगवान की बात नहीं करता था, बल्कि खुद को ही भगवान बताता. जल्द ही उसके अनुयायी बढ़ने लगे और सूरजपाल नारायण साकार से भोले बाबा बन गया. उसका एक खास नारा था, जो हर बार मंच से लगाया-दोहराया जाता- 'सम्पूर्ण ब्रह्मांड में सदा-सदा के लिए जय-जयकार हो'. मंगलवार को भी इस नारे के साथ सत्संग खत्म हुआ और बाबा अपनी गाड़ी के साथ निकल गया.
कैसा है बाबा का आश्रम
वैसे तो कई जगहों पर सूरज पाल के आश्रम की बात कही जा रही है, लेकिन फिलहाल इसके सच-झूठ की जांच बाकी है. बाबा का असल आश्रम, जिसे हेडक्वार्टर भी कह सकते हैं, मैनपुरी का बिछुआ आश्रम है, जो 21 बीघा में फैला हुआ है. लगभग 4 साल पहले बना ये आश्रम ऊंची-ऊंची दीवारों से घिरा हुआ है, जिससे अंदर की गतिविधि शायद ही पता लगे. हालांकि रिपोर्ट्स के अनुसार, बाबा के पास 6 कमरे हैं, जबकि बाहर की तरफ के कमरे सेवादारों और कमेटी मेंबर्स के लिए हैं. एक बड़ा शेड हैं, जहां लगातार खाना बनता है. बाबा सीधे दान नहीं स्वीकारते लेकिन बड़े-बड़े राजनेताओं के साथ उनकी तस्वीरें और शानोशौकत इशारा करते हैं कि गुप्त दान काफी होता होगा.
कैसा था अस्पताल का हाल
भीड़ छंटने के बाद मैदानों की तरफ लोगों का ध्यान गया. कीचड़ और धूल में सने शरीर आड़े-तिरछे पड़े थे. एक-एक करके लोगों को उठाया और पास के सीएचसी तक पहुंचाया जाने लगा. अस्पताल इसे संभालने के लिए कतई तैयार नहीं था. लोग लाइन में लगे रहे. न तो वहां ऑक्सीजन सिलेंडर था, न ड्रिप लगाने की व्यवस्था, और न ही डॉक्टर. इंतजार करते हुए अस्पताल परिसर में ही कई लोगों ने दम तोड़ दिया. आखिरकार घायलों को एटा और अलीगढ़ के हॉस्पिटल्स तक भेजा जाने लगा.
बाबा के सत्संग का आयोजन उसके अनुयायी ही करते रहे. इस बार भी यही हुआ था. मुख्य सेवादार देवप्रकाश मधुकर समेत 78 आयोजकों ने हाथरस में कार्यक्रम का बंदोबस्त किया. गांव में बाकायदा पोस्टर बनाकर सबके नाम और नंबर भी लिखे हुए थे. हादसे के बाद से ज्यादातर नंबर बंद पड़े हुए हैं.
इतने बड़े हादसे के बाद बाबा का काला चिट्ठा भी धीरे-धीरे खुल रहा है. बाबा का आपराधिक इतिहास रहा. आगरा में साल 2000 में बाबा पर पुलिस ने चमत्कारी उपचार अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था, हालांकि बाद में सबूतों के अभाव में कोर्ट से उसे बरी कर दिया गया. सूरजपाल उर्फ बाबा पर कथित तौर पर 6 मुकदमे हैं, जिसमें यौन शोषण का केस भी शामिल है.
फिलहाल हाथरस में पहुंचे श्रद्धालु या तो अपनों को खो चुके, या लापता लोगों की तलाश में यहां-वहां भटक रहे हैं. यहां तक कि अस्पताल-अस्पताल जाकर वे शवों को खुद चेक कर रहे हैं कि कहीं उनमें ही तो उनके अपने नहीं.