
वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर के तहखाने में पूजा-पाठ पर रोक लगाने की मांग पर सुनवाई टल गई है. मुस्लिम पक्ष ने तहखाने में 15 दिन के लिए पूजा-पाठ पर रोक लगाने की मांग की थी. दरअसल, कोर्ट के आदेश पर 31 जनवरी को देर रात से ही तहखाने में पूजा-पाठ शुरू हो गई थी. इस मामले में अगली तारीख 28 फरवरी तय की गई है.
ज्ञानवापी परिसर में बंद दो अन्य तहखानों की ASI सर्वे की मांग पर भी सुनवाई होनी थी. वादिनी ने जिला जज की अदालत में याचिका दाखिल की थी. जिला जज की अदालत में दोनों मामलों की सुनवाई होनी थी. लेकिन जिला जज की नियुक्ति न होने से सुनवाई टल गई है. जिला जज ए के विश्वेश 31 जनवरी को रिटायर हुए थे.
वाराणसी कोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका पर ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में पूजा-पाठ करने का अधिकार दे दिया था. जिसके बाद आज (1 फरवरी) ज्ञानवापी परिसर में आखिरकार 31 साल बाद पूजा-अर्चना शुरू हो गई थी. कोर्ट का आदेश आने के बाद रातोरात तहखाने से बैरिकेडिंग हटा दी गई थी. काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड की तरफ से पूजा करवाई गई. वाराणसी कोर्ट के जज अजय कृष्ण विश्वेश ने बुधवार (31 जनवरी) को ज्ञानवापी परिसर में मौजूद तहखाने में हिंदुओं को पूजा-पाठ करने का अधिकार देने का फैसला सुनाया था. उन्होंने जिला प्रशासन को 7 दिन के अंदर व्यवस्था कराने का आदेश दिया था. जिसके बाद प्रशासन हरकत में आया और महज कुछ ही घंटे में बैरिकेडिंग आदि खोलकर व्यास तहखाने में पूजा की व्यवस्था करा दी गई थी.
तीन दशक से कोर्ट में है मामला
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी परिसर का केस तीन दशक से भी ज्यादा समय से अदालत में है. जबकि, ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास 350 साल से भी ज्यादा पुराना है. इस केस में हिंदू पक्ष का दावा है कि नवंबर 1993 से पहले व्यास तहखाने में पूजा-पाठ को उस वक़्त की प्रदेश सरकार ने रुकवा दिया था. जिसको शुरू करने का पुनः अधिकार दिया जाए. वहीं, मुस्लिम पक्ष ने प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला देते हुए याचिका को खारिज करने की मांग की थी.
अगस्त 2021 में पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिविजन) के सामने एक वाद दायर किया था. इसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा और दर्शन करने की अनुमति देने की मांग की थी. महिलाओं की याचिका पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मस्जिद परिसर का एडवोकेट सर्वे कराने का आदेश दिया था. कोर्ट के आदेश पर पिछले साल तीन दिन तक सर्वे हुआ था. सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने यहां शिवलिंग मिलने का दावा किया था. दावा था कि मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग है. हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना था कि वो शिवलिंग नहीं, बल्कि फव्वारा है जो हर मस्जिद में होता है.
कोर्ट ने दिया था ASI सर्वे कराने का आदेश
हिंदू पक्ष ने विवादित स्थल को सील करने की मांग की थी. सेशन कोर्ट ने इसे सील करने का आदेश दिया था. इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. SC ने केस जिला जज को ट्रांसफर कर इस वाद की पोषणीयता पर नियमित सुनवाई कर फैसला सुनाने का निर्देश दिया था. मुस्लिम पक्ष की ओर से यह दलील दी गई थी कि ये प्रावधान के अनुसार और उपासना स्थल कानून 1991 के परिप्रेक्ष्य में यह वाद पोषणीय नहीं है, इसलिए इस पर सुनवाई नहीं नहीं हो सकती है. हालांकि, कोर्ट ने इसे सुनवाई योग्य माना था. मई 2023 में पांच वादी महिलाओं में से चार ने एक प्रार्थना पत्र दायर किया था. इसमें मांग की गई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित हिस्से को छोड़कर पूरे परिसर का ASI से सर्वे कराया जाए. इसी पर जिला जज एके विश्वेश ने अपना फैसला सुनाते हुए ASI सर्वे कराने का आदेश दिया था.