
ओपी राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के एनडीए में फिर से शामिल होने और दारा सिंह चौहान की घर वापसी से 2024 के चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को बढ़ावा मिला. राजभर ने 2019 में प्रचार के बीच में ही एनडीए छोड़ दिया था, जबकि दारा सिंह चौहान 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी (सपा) में शामिल हो गए थे. राजभर भी बाद में 2022 के चुनावों में सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल हो गए, लेकिन अब उन्होंने घरवापसी कर ली है, और 18 जुलाई को एनडीए की बैठक में शामिल हुए.
राजभर ने अपनी घर वापसी के कारण बताते हुए कहा, यूपी में विपक्षी एकता पर अखिलेश यादव की निष्क्रिय हैं और राजभरों को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के भाजपा के वादे और गरीबों और वंचितों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए द्वारा किए गए प्रयासों से वे प्रभावित हैं. वहीं दारा सिंह चौहान ने 2024 में मोदी को दोबारा पीएम बनाने का संकल्प लिया.
डेमोग्राफी और जातिगत दोनों तरह के वोटों पर अच्छी पकड़
राजभर और चौहान दोनों पूर्वांचल (पूर्वी यूपी) के प्रभावशाली ओबीसी नेता हैं और उनके भाजपा में शामिल होने से गैर-यादव ओबीसी वोटों को मजबूत करने के भगवा पार्टी के लक्ष्य को बढ़ावा मिलता है. जहां ओपी राजभर को राजभर जाति का नेता माना जाता है, वहीं दारा सिंह चौहान निचले ओबीसी समुदाय नोनिया जाति से हैं. दोनों समूह मिलकर राज्य की आबादी का चार से पांच प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं.
जहां राजभर कथित तौर पर पूर्वांचल की 12 लोकसभा सीटों पर प्रभाव रखते हैं, वहीं चौहान को कुछ ओवरलैप के साथ सात लोकसभा सीटों पर समर्थन प्राप्त है. राजभर गाजीपुर जिले से और चौहान मऊ जिले से विधायक हैं और वे विशेष रूप से वाराणसी और आजमगढ़ डिवीजनों में मजबूत हैं और संभावित रूप से गाजीपुर, लालगंज, आजमगढ़, संत कबीर नगर, अंबेडकर नगर, जौनपुर, घोषी, चंदौली, मछलीशहर, रॉबर्ट्सगंज, सलेमपुर और वाराणसी, बलिया सहित कई सीटों के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं. लेकिन ये नेता सिर्फ इन्हीं सीटों तक सीमित नहीं हैं.
2019 में बीजेपी को पूर्वी यूपी में नुकसान हुआ
बता दें कि 2014 में, बीजेपी ने पूर्वी यूपी क्षेत्र में 28 में से 27 सीटें जीतकर जीत हासिल की. सपा ने पारिवारिक गढ़ आजमगढ़ में जीत हासिल की थी. हालांकि, 2019 में, भाजपा इनमें से छह सीटें बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से हार गई - सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) ने दुर्जेय महागठबंधन बनाया था. वहीं, एसबीएसपी ने प्रचार के दौरान एनडीए से बाहर निकलकर 24 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. जबकि सपा ने आजमगढ़ को बरकरार रखा, बसपा ने घोषी, गाजीपुर, जौनपुर, अंबेडकर नगर, श्रावस्ती और लालगंज में 80,000 से 1.6 लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की.
जबकि भाजपा ने पिछले साल उपचुनाव में आजमगढ़ को पहले ही सपा से छीन लिया है, उसे सुभासपा के शामिल होने से इस क्षेत्र में लाभ मिलने की भी उम्मीद है. तथ्य यह है कि 2019 के बाद सपा और बसपा के तलाक के बाद महागठबंधन का कोई अस्तित्व नहीं रह गया है, जो इसके पक्ष में काम करेगा.
भाजपा को मिलेगा फायदा?
यूपी में भाजपा की सीटें 2014 में 71 से घटकर 2019 में 62 हो गईं और इनमें से दो-तिहाई नुकसान (छह) पूर्वी यूपी से थे. इसने 2019 में 50,000 से कम वोटों के जीत अंतर के साथ पूर्वांचल में सात सीटें जीतीं, जबकि 2014 में यह सिर्फ तीन थी. उदाहरण के लिए, भाजपा ने मछलीशहर सीट सिर्फ 181 वोटों से जीती, जबकि बलिया सिर्फ 15,519 वोटों से जीती, जहां एसबीएसपी 35,900 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही. इन सीटों पर एसबीएसपी और दारा सिंह चौहान इसे अतिरिक्त बफर प्रदान करेंगे.
राजभर के पाला बदलने से अखिलेश यादव को 2022 में मिला फायदा
2022 के राज्य चुनावों में सपा+ गठबंधन ने पूर्वी यूपी (38 सीटें) में बीजेपी/एनडीए के मुकाबले बड़ी बढ़त हासिल की. भाजपा+ गठबंधन को इस दौरान 24 सीटों का नुकसान हुआ और बसपा/अन्य 14 सीटें हार गईं. राजभर की एसबीएसपी ने यहां अपनी छह सीटें जीतीं. इससे पहले 2017 में उसने बीजेपी के साथ गठबंधन में इस क्षेत्र से चार सीटें जीतीं थीं. सपा+ गठबंधन ने राजभर और दारा सिंह चौहान की एंट्री से बढ़त के साथ, आजमगढ़ डिवीजन में 21 में से 17 सीटें और वाराणसी डिवीजन में 28 में से 13 सीटें जीतीं.
ओपी राजभर के आलोचकों का मानना है कि उन्हें उस तरह का समर्थन नहीं मिलता जैसा वह दावा करते हैं, लेकिन जब सीट बंटवारे की बात आती है तो वह एक अच्छे सौदेबाज हैं. उनकी भूमिका को अधिक महत्व दिया गया है और चुनाव से ठीक पहले अन्य दलों से राम अचल राजभर, लालजी वर्मा, सुखदेव राजभर, त्रिभुवन दत्ता आदि नेताओं के सपा में प्रवेश से भी गठबंधन को पूर्वांचल में अच्छा प्रदर्शन करने में मदद मिली.
सपा गठबंधन से सुभासपा के बाहर निकलने के प्रभाव को बेअसर करने की उम्मीद में सपा ने ओपी राजभर के खिलाफ अकबरपुर के पूर्व बीएसपी विधायक राम अचल राजभर को खड़ा करने की संभावना है. उन्हें गाजीपुर, घोषी, बलिया और अंबेडकर नगर जिले का प्रभारी बनाया गया है.
2024 के लिए बीजेपी के लिए यूपी जरूरी
2024 के आम चुनावों में हैट्रिक बनाने की बीजेपी की योजना के लिए UP महत्वपूर्ण है. पार्टी ने महाराष्ट्र और बिहार में सहयोगियों का पलायन देखा है, जो यूपी के साथ 2019 में एनडीए के शीर्ष तीन राज्य थे, जो इसकी कुल संख्या का 40 प्रतिशत था. सर्वेक्षणों में बिहार और महाराष्ट्र में सीटों के नुकसान का अनुमान लगाया गया है, ऐसे में बीजेपी के लिए यूपी में फिर से जीत हासिल करना बहुत जरूरी है.
बुआ-भतीजा जोड़ी के टूटने से बीजेपी को यूपी में मिशन 80 पूरा करने में भी मदद मिलने की संभावना है. इस प्रकार राजभर और चौहान का एनडीए में शामिल होना इस दिशा में भाजपा का एक रणनीतिक कदम है और इससे राज्य में एनडीए की किस्मत को बढ़ावा मिलने की संभावना है.
(रिपोर्ट- अमिताभ तिवारी)