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कभी पिता के साथ डेयरी चलाने वाला संजीव कैसे बना 'जीवा', मुख्तार अंसारी उसे क्यों कहता था डॉक्टर?

संजीव माहेश्वरी उर्फ संजीव जीवा जरायम की दुनिया का ऐसा नाम था, जिससे यूपी के साथ ही दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड के अपराधी तक थर्राते थे. वह मुख्तार का भरोसेमंद था. कभी पिता के साथ डेयरी में हाथ बंटाने वाले संजीव की अपराध की दुनिया की कहानी डूबी हुई रकम वसूली से शुरू हुई थी.

संजीव जीवा मुख्तार के सबसे भरोसेमंद गुर्गों में शामिल था (फाइल फोटो) संजीव जीवा मुख्तार के सबसे भरोसेमंद गुर्गों में शामिल था (फाइल फोटो)
संतोष शर्मा
  • लखनऊ,
  • 09 जून 2023,
  • अपडेटेड 7:49 AM IST

सबसे पहले मुन्ना बजरंगी, फिर राकेश पांडे, फिर मिराज और अब संजीव जीवा माहेश्वरी. ये वे नाम हैं, जिन पर बांदा जेल में बंद माफिया डॉन मुख्तार अंसारी आंख मूंदकर भरोसा करता रहा. जिनकी दम पर मुख्तार की जरायम की दुनिया का किला अभेद्य रहा. लेकिन जैसे ही उसकी इस दुनिया के सिपहसालार ढेर हुए, मुख्तार अंसारी के अपराध की सल्तनत भी मिट्टी के ढेर में तब्दील होती नजर आ रही है. इसी सल्तनत का आखिरी सिपाही था संजीव जीवा महेश्वरी, जो लखनऊ कोर्ट में मारा गया. 

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मुजफ्फरनगर के एक डॉक्टर के दवाखाने पर दवाइयों की पुड़िया बनाने वाला एक लड़का सुपारी किलर बन गया. देखते ही देखते वह मुख्तार का शार्प शूटर बन गया. आखिर कौन था संजीव जीवा, जिस पर मुख्तार अंसारी को सबसे ज्यादा भरोसा था. जिसके नाम से उत्तर प्रदेश ही नहीं दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड के अपराधी तक थर्राते थे.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक जिला है शामली. इसी शामली का एक गांव है आदमपुर. वही आदमपुर जहां संजीव जीवा महेश्वरी के शव को गुरुवार शाम को गांव वालों ने अंतिम विदाई दी. बेटे ने अंतिम संस्कार किया. पिता ओमप्रकाश माहेश्वरी बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए 1986 में गांव छोड़कर मुजफ्फरनगर की शहर कोतवाली क्षेत्र की प्रेम पुरी कॉलोनी आ गए थे. ओम प्रकाश माहेश्वरी ने डेयरी का धंधा शुरू किया. वहीं बेटा संजीव भी इंटर की पढ़ाई पूरी कर पिता के साथ डेरी पर हाथ बंटाने लगा. संजीव का एक भाई राजीव माहेश्वरी और दो बहनें पूनम और सुमन हैं. पत्नी पायल माहेश्वरी हैं. संजीव जीवा के तीन बेटे हैं तुषार, वीरभद्र और हरिओम. जबकि सबसे छोटी बेटी है आर्या.

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जरायम की दुनिया में 'डॉक्टर' था जीवा

पढ़ने में बेहद होशियार संजीव माहेश्वरी डॉक्टर बनना चाहता था, लेकिन एक तरफ पैसे की चाहत और दूसरी तरफ घर की आर्थिक स्थिति के चलते संजीव माहेश्वरी ने डॉक्टर बनने के बजाय एक स्थानीय डॉक्टर के दवाखाने पर कंपाउंडर का काम शुरू कर दिया था. इसके चलते लोग उसे डॉक्टर कहने लगे थे. जब संजीव माहेश्वरी जरायम की दुनिया में संजीव जीवा बना तो उसे मुख्तार अंसारी, मुन्ना बजरंगी समेत बड़े-बड़े माफिया तक डॉक्टर कहकर बुलाने लगे.


डूबी रकम वसूलने से शुरू हुई थी अपराध की दुनिया की कहानी

जिस दवाखाने पर संजीव काम करता था, उसके डॉक्टर का पैसा इलाके का दबंग वापस नहीं कर रहा था. एक दिन डॉक्टर दवाखाने पर परेशान बैठा तो संजीव ने वजह पूछी. डॉक्टर ने वजह बताई कि दबंग पैसा लौटा दे रहा. अब धमकी भी देता है. संजीव जीवा ने शर्त रखी कि वो पैसा वसूलकर लाएगा, लेकिन उसका एक हिस्सा मेरा होगा. डॉक्टर को भी लगा कि रकम डूब रही है जो मिल जाए वही सही और उसने हामी भर दी. संजीव महेश्वरी उस व्यक्ति का पता लेकर निकला और कुछ घंटों बाद पूरी रकम वापस लेकर डॉक्टर के पास आ गया. रकम मिली तो डॉक्टर ने उसका हिस्सा दे दिया. थोड़े से साहस और गुंडई से थोड़ी देर में मिली रकम ने संजीव की अपराध की दुनिया में पसंद जगा दी. यहीं से दवाखाने में पुड़िया बनाने वाला संजीव माहेश्वरी जरायम की दुनिया का संजीव जीवा बन गया.

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संजय दत्त की फिल्म देख नाम में जोड़ लिया 'जीवा'

संजीव माहेश्वरी फिल्म स्टार संजय दत्त का बहुत बड़ा फैन था. संजय दत्त की हर फिल्म की दीवानगी ही थी कि जब संजीव माहेश्वरी अपराध की दुनिया में दस्तक दे रहा था, तो उसने इस नई दुनिया में अपना नया नाम भी रखा. वह नाम संजय दत्त की फिल्म जीवा को देखकर जोड़ा गया. संजीव जीवा माहेश्वरी एक ऐसा गैंगस्टर था जिसने शुरुआत अपहरण, रंगदारी, वसूली, हत्या से की. जो हथियारों की सप्लाई में उत्तर भारत के सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक था. एके-47 हो या फिर कोई भी छोटा-बड़ा हथियार. संजीव के पास सभी मिलता था.

जेल से ही चला रहा था कारोबार

जरायम की दुनिया में कहा जाता है कि गोली चलाने का माद्दा चंद अपराधियों में ही होता है, लेकिन संजीव जीवा माहेश्वरी श्रीवास्तव है और श्रीवास्तव गोली नहीं कलम चलाते हैं. लेकिन संजीव जीवा और ओम प्रकाश श्रीवास्तव उर्फ बबलू दो ऐसे माफिया डॉन हुए जो अपराध की दुनिया में कही जाने वाली इस कहावत को गलत साबित करते हैं. जिन्होंने अपराध की दुनिया में अपने शातिर दिमाग का तो इस्तेमाल किया ही,  साथ ही अपने दम पर कई सनसनीखेज वारदातों को अंजाम देकर अपना दबदबा भी कायम किया. बबलू श्रीवास्तव लंबे समय से बरेली जेल में बंद है. बरेली जेल से ही उसका कारोबार हिंदुस्तान और हिंदुस्तान के बाहर कई देशों में फैला हुआ है. संजीव जीवा माहेश्वरी साल 2017 से बाराबंकी, महाराजगंज, लखनऊ जेल में बंद रहा है, लेकिन जेल से ही संजीव जीवा का कारोबार भी चलता रहा.

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कैसे हुई संजीव जीवा की हत्या?

लखनऊ की एक कोर्ट में बुधवार को शूटर विजय यादव ने संजीव जीवा की हत्या की थी. कोर्ट में मौजूद प्रत्यक्षदर्शी वकील ने बताया था कि कोर्ट में भीड़ थी. जीवा सुनवाई का इंतजार कर रहा था. तभी एक शूटर आया और उस पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. संजीव जान बचाने के लिए अंदर भागा और वह 10 से 15 मिनट तक बेसुध पड़ा रहा. शूटर कह रहा था कि हम जीवा को मारने आए थे और मार दिया. जीवा पर बीजेपी नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या का आरोप था, जिन्होंने कभी मायावती की गेस्ट हाउस कांड में जान बचाई थी.

 

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