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IAS नवनीत सहगल आज हो रहे रिटायर, कल्याण सिंह, मायावती, अखिलेश और योगी, हर सरकार में रहे पावरफुल

उत्तर प्रदेश के चर्चित आईएस अधिकारी नवनीत सहगल आज रिटायर हो रहे हैं. विनम्र स्वभाव के माने जाने वाले सहगल ने कई सरकारों के साथ में काम किया और हर बार अपनी जिम्मेदारी का बखूबी से निर्वहन किया.

आईएएस नवनीत सहगल आईएएस नवनीत सहगल
कुमार अभिषेक/आशीष मिश्र
  • लखनऊ,
  • 31 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 5:37 PM IST

उत्तर प्रदेश के सबसे चर्चित वरिष्ठ आईएएस अधिकारी नवनीत सहगल आज 35 सालों की सेवा के बाद रिटायर हो रहे हैं. 1988 बैच के अधिकारी नवनीत सहगल, मायावती अखिलेश यादव और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कोर ग्रुप में काम कर चुके हैं. सरकार किसी की भी रही हो, लेकिन सहगल हर सरकार में प्रभावशाली रहे हैं. 

राजनीति में आएंगे सहगल?

नवनीत सहगल मायावती के दौर में उनके सचिव के तौर पर सबसे प्रभावशाली  रहे. अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते,वो पंचम तल के सबसे मजबूत और अखिलेश के करीबी माने गए. लखनऊ- आगरा एक्सप्रेस वे को रिकॉर्ड समय मे बनाने का रिकॉर्ड भी उनके नाम है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपने दौर में उन्हें अपना प्रमुख सचिव सूचना बनाया था. माना जा रहा है रिटायरमेंट के बाद नवनीत सहगल राजनैतिक पारी की शुरुआत कर सकते हैं.

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कौन हैं नवनीत सहगल

वर्ष 1963 में पंजाब के फरीदकोट में पैदा हुए नवनीत सहगल की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा हरियाणा में हुई क्योंकि इनके पिता यहीं नौकरी करते थे. अंबाला से दसवीं कक्षा पास करने के बाद सहगल ने भिवानी में रहकर इंटरमीडियट परीक्षा उत्तीर्ण की. वर्ष 1982 में 19 साल की उम्र में सहगल ने बीकॉम पास किया. ये सिविल सर्विस में जाना चाहते थे लेकिन उम्र नहीं हुई थी. इसके बाद सहगल ने चार्टेड एकाउंटेंटशिप (सीए) कोर्स में दाखिला लिया. 1986 में उन्होंने सीए कोर्स पूरा कर लिया. इसके अगले साल इन्होंने कंपनी सेकेटरीशिप का कोर्स भी पूरा कर लिया. सीए करने के बाद वर्ष 1986 में सहगल ने प्रैक्टिस और साथ में सिविल सर्विसेज की तैयारी भी शुरू कर दी. बड़ी कंपनियों के कंसल्टेंट के तौर पर सहगल ने देश में कई नई फैक्ट्रियों की शुरुआत कराई.

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पहले ही प्रयास में हुए UPSC में सफल

पहले ही प्रयास में सहगल 1988 में सिविल सेवा चयनित हो गए. इन्हें यूपी कैडर मिला. प्रोबेशन पीरियड में इनकी तैनाती सहारनपुर में हुई. वर्ष 1990 में इनकी पहली पोस्टिंग एटा में हुई. उसके बाद एक वर्ष ये देहरादून में एसडीएम के पद पर तैनात रहे. इसी दौरान कुंभ मेला का आयोजन होने पर सहगल हरिद्वार डेवलेपमेंट अथारिटी में उपाध्यक्ष के पद पर तैनात हुए. वर्ष 1993-96 तक इन्होंने कानपुर में यूपी फाइनेंशियल कार्पोरेशन में महाप्रबंधक की जिम्मेदारी संभाली. बाद में दो साल जौनपुर के जिलाधिकारी रहे. भाजपा सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इन्हें फैजाबाद का जिलाधिकारी बनाया. इस दौरान सहगल अयोध्या में रामजन्म भूमि से जुड़े संतों के काफी करीब आ गए.

मायावती सरकार में भी मिली खास जिम्मेदारी

कल्याण सिंह के बाद रामप्रकाश गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने पर नवनीत सहगल को निदेशक, स्टेट अरबन डेवलेपमेंट अथारिटी (सूडा) की कुर्सी मिली. वर्ष 2002 में अयोध्या में शिलादान कार्यक्रम को शांतिपूर्वक संपन्न कराने के लिए सहगल खास तौर पर फैजाबाद भेजे गए थे. वर्ष 2002 में बसपा-भाजपा की मिलीजुली सरकार बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने सहगल को लखनऊ का जिलाधिकारी बनाया. वर्ष 2004 में मायावती की सरकार जाने और बसपा की घोर विरोधी पार्टी सपा के अध्यक्ष मुलायम सिंह की सरकार बनने के बाद भी सहगल आठ महीने तक लखनऊ के जिलाधिकारी बने रहे. इसी बीच इनका प्रमोशन हो गया.

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वर्ष 2007 में यूपी में बसपा की सरकार बनने पर केंद्र से पांच आइएएस अफसर यूपी लौटे जिनमें से एक सहगल भी थे. हालांकि इसका नुकसान सहगल को अब उठाना पड़ रहा है क्योंकि ये दो साल ही केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर थे और अब आगे यह केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए ‘इम्पैनल्ड’ नहीं हो सकते हैं. एडीशन सेक्रेटरी और सेक्रेटरी के लिए जरूरी है कि वह तीन साल केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर रहे हों. बसपा सरकार में सहगल कई विभागों, पावर कार्पोरेशन, जल निगम, यूपी इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट कार्पोरेशन के चेयरमैन रहे.

बसपा की सरकार के बाद 2012 में यूपी में सपा की सरकार बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सहगल को हाशिए पर भेज दिया. सहगल धर्मार्थ कार्य विभाग जैसे महत्वहीन विभाग के प्रमुख सचिव बने. सहगल ने श्रवण यात्रा शुरू करके धर्मार्थ कार्य विभाग को प्रदेश में एक अलग पहचान दिलाई. इसी दौरान सहगल ने काशी विश्वनाथ कॉरीडोर बनाने की योजना का खाका खींचा. इन्होंने ही मंदिर के आसपास के भवनों को अधिग्रहीत करने की कार्ययोजना भी बनाई.

अखिलेश सरकार में मनवाया अपनी क्षमता का लोहा

वर्ष 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सहगल को उत्तर प्रदेश इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट अथारिटी (यूपीडा) का सीईओ बनाकर अपने ड्रीम प्रोजेक्ट आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे को पूरा करने का जिम्मा सौंपा. सहगल को जिस वक्त यह जिम्मेदारी सौंपी उस वक्त एक इंच जमीन भी आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे के लिए नहीं खरीदी गई थी. टेंडर प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट में मुकदमे में फंसी थी. सहगल ने सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में से मुकदमे वापस करवाए. छह महीने के भीतर आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे की सारी साढ़े सात हजार एकड़ जमीन खरीदी गई. अपने काम से सहगल सरकार का विश्वास जीतते गए और तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इन्हें प्रमुख सचिव सूचना की जिम्मेदारी भी सौंप दी. दो वर्ष के रिकार्ड समय में सहगल ने 302 किलोमीटर लंबा आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे बनाकर अपनी क्षमता का लोहा मनवाया.

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योगी सरकार में किया ये काम

वर्ष 2017 में यूपी में भाजपा सरकार बनने के बाद एक बार फिर नवनीत सहगल किनारे कर दिए गए. इन्हें खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग के प्रमुख सचिव की कुर्सी मिली. नए प्रयोगों से सहगल ने यूपी में खादी को एक अगल पहचान दिलाई. खादी की कई नई पॉलिसी लागू की गई जिसमें पहली बार प्रोडक्शन को बढ़ावा दिया गया. यह बढ़े हुए प्रोडक्शन का ही नतीजा था कि सहगल ने मास्क बनाने के लिए छह लाख खादी के कपड़े का इंतजाम चुटकियों में कर दिया. कोरोना के बढ़ते संकट में सहगल ने मध्यम, लघु एवं सूक्ष्म विभाग को भी अलग पहचान दिलाई है. उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य है जहां बंद पड़े उद्योगों में कार्य कर रहे मजदूरों को भी मजदूरी दिलाई जा रही है. सहगल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की 'वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट' ( ओडीओपी) योजना को जिस तरह से पंख लगाए हैं उसकी तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं.

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