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राजधानी दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण और स्मॉग पर आईआईटी कानपुर की रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने सर्दी के मौसम में राजधानी दिल्ली में आसमान में छा जाने वाले घने कोहरे के कारणों का पता लगाया है.
इसमें कहा गया है कि यह स्मॉग केवल वाहनों के धुएं के कारण नहीं, बल्कि सिंधु गंगा के मैदानों में जलने वाले चूल्हों और अलावों के कारण भी है. स्टडी में कहा गया है कि बायोमास यानी लकड़ी, फसल के अवशेष, घास और भूसा जलता है, जिसका धुआं दिल्ली के आसमान को धुंध के रूप में ढंक लेता है. इससे दिल्ली में सर्दी के मौसम में हर साल दम घुटने लगता है.
सर्दियों में दिल्ली की हवा इतनी प्रदूषित क्यों हो जाती है? इसको लेकर IIT कानपुर ने अपनी रिपोर्ट में ये निष्कर्ष दिए हैं. यह रिपोर्ट 6 संस्थानों के वैज्ञानिकों ने साल 2019 की सर्दियों में हुए सर्वे का अध्ययन कर तैयार की है. इसे नेचर जियोसाइंस जनरल में भी प्रकाशित किया गया है.
सिंधु गंगा के मैदान में जलते हैं अलाव और चूल्हे, जिससे होती है परेशानी
इस स्टडी के प्रमुख आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी का मानना है कि दिल्ली से सटे सिंधु गंगा के मैदान में लाखों घरों में सर्दियों में अलाव और सालभर चूल्हे जलते हैं. इन घरों में अनियंत्रित बायोमास जलाया जाता है. इससे अति सूक्ष्म कण बनते हैं. ये कण वातावरण में घुलकर धुंध का रूप ले लेते हैं.
वैज्ञानिकों ने दिल्ली में एरोसोल के आकार और गैसों की आणविक संरचना पर भी स्टडी की है. दुनिया की अन्य जगहों की तुलना में यहां 100 नैनोमीटर से छोटे एरोसोल तेजी से बढ़ते हैं, जो कुछ ही घंटों में धुंध बना देते हैं.
'बायोमास से दुनिया की 5% आबादी और क्षेत्रीय जलवायु प्रभावित'
आईआईटी के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी के मुताबिक, अध्ययन में पाया गया है कि 18 फीसदी असमय मौतों की वजह वायु प्रदूषण है. रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बायोमास के अत्यधिक दोहन के कारण दुनिया की 5 प्रतिशत आबादी और क्षेत्रीय जलवायु प्रभावित हो रही है.
उन्होंने बताया कि बायोमास जलाने से कार्बनिक वाष्प नैनो कणों को जन्म देते हैं. स्टडी में यह भी सामने आया है कि 100 नैनोमीटर से बड़े कणों में अमोनिया और क्लोराइड की मात्रा बहुत अधिक होती है.
IIT के साथ ही इन संस्थानों ने संयुक्त रूप से की स्टडी
सर्दी के मौसम में राजधानी दिल्ली को बुरी तरह अपनी चपेट में लेने वाला स्मॉग पिछले कई साल से परेशानी का कारण बना हुआ है. इसके लिए आईआईटी कानपुर, फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी, सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, पॉल शेरेर इंस्टीट्यूट, स्विट्जरलैंड की हेलसिंकी यूनिवर्सिटी ने संयुक्त अध्ययन किया.
यह रिसर्च पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी, जम्मू-कश्मीर और बंगाल के कई इलाकों में की गई. इसका रिजल्ट स्टडी के बाद सामने आया है.