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लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद मायावती के द्वारा जारी की गई प्रेस रिलीज से भी इस बात का आभास मिलता है कि बीएसपी इस चुनाव में पूरी तरीके से जमींदोज हो चुकी है. बसपा अब जाटवों का अपना मूल जनाधार भी खोती जा रही है. मायावती ने अपने घटते जनाधार के बारे में कुछ नहीं लिखा, यह भी नहीं लिखा कि आखिर उनका वोट, चुनाव दर चुनाव क्यों नीचे जा रहा है लेकिन उन्होंने इस चुनाव का ठीकरा, एक बार फिर मुस्लिम वोटो पर फोड़ने की कोशिश की.
मायावती ने प्रेस रिलीज में के आखिर में यह लिखा है, "मुसलमान को इतना टिकट देने के बाद भी मुसलमानों ने उन्हें वोट नहीं दिया अब आगे से राजनीतिक चुनावी हिस्सेदारी देने के पहले बहुत सोच कर आगे बढ़ना होगा." मायावती के लिए सदमे की बात ये कि इस बार कांग्रेस पार्टी से भी कम वोट प्रतिशत बीएसपी को मिला है. यही नहीं दलित अगर INDIA ब्लॉक में शिफ्ट हुए हैं तो उसके पीछे की वजह कांग्रेस पार्टी है. राहुल गांधी का "बहुजन" अवतार मायावती को सबसे ज्यादा खल रहा है.
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मायावती के वोट बैंक में बड़ी गिरावट
माना जा रहा है मायावती का वोट बैंक अब खिसककर 8 फ़ीसदी के आसपास रह गया है और इस बार उनके अपने मूल वोटरों में एक तिहाई से ज्यादा की सेंध लग गई है, सिर्फ मूल जाटव वोटर ही नहीं बल्कि गैर जाटों, दलितों में भी जो मायावती का जनाधार था वह इस बार बड़ी तादाद में खिसका है. नगीना में चंद्रशेखर आज़ाद का बड़े मार्जिन से जीतना और बसपा का लगभग मिट्टी में मिल जाना बड़े दलित बदलाव की ओर इशारा कर रहा है.
नगीना सीट ने बीएसपी को यह बता दिया है कि उसकी सियासत किस गर्त में जा रही है. नगीना वह सीट है जहां से मायावती ने अपना पहला चुनाव लड़ा था लेकिन इस बार जमानत बचाना तो दूर बीएसपी इतना कम वोट लेकर आएगी इसका अंदाजा किसी को नहीं था. नगीना में बीएसपी चौथे नंबर पर रही और सिर्फ 13272 वोट ही उसे मिले. जबकि पहले नंबर पर रहे चंद्रशेखर आजाद रावण को 512552 वोट मिले, यानी चंद्रशेखर आजाद रावण से बसपा के वोटों का अंतर 499280 है. यहां दलितों ने मायावती की तरफ देखा भी नहीं है. बगल की बिजनौर सीट पर भी बीएसपी तीसरे नंबर पर रही.
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कहीं भी नहीं रही दूसरे नंबर पर
बसपा अपनी अपनी जीती हुई सभी 10 सीटों पर या तो तीसरे नंबर पर या चौथे नंबर पर रही है, बीएसपी कहीं भी दूसरे नंबर पर नहीं आ पाई. मायावती के लिए अब आगे की राह और मुश्किल होती जा रही है , कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की तरफ बसपा के वोट खिसक चुके हैं. मायावती की एकला चलो की रणनीति और बीजेपी की "बी" टीम का चस्पा लेबल बीएसपी के लिए काल बनता जा रहा है.
मायावती के लिए अब आगे 2027 का चुनाव है,ऐसे में क्या वह एक बार फिर बीजेपी के विरोध में गठबंधनों का रुख करेंगी या फिर अकेले लड़ेगी यह सवाल उनसे फिर पूछा जाएगा. मायावती सियासत में इतनी अकेली पड़ती जा रही है कि कोई चमत्कार ही उनकी पार्टी को दोबारा मुख्य धारा में ला पाएगा.