
उत्तर प्रदेश में उपचुनाव के बाद शहरी निकाय चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई है. खतौली सीट के उपचुनाव में जिस तरह बीजेपी को मात खानी पड़ी है और नए समीकरण उभर कर आए हैं. गुर्जर-जाट-मुस्लिम-दलित गठजोड़ के चलते आरएलडी प्रत्याशी मदन भैया की जीत ने बीजेपी के लिए चुनौती पेश कर दी है. अगर ये सियासी समीकरण ऐसे ही मजबूती से बने रहे तो पश्चिमी यूपी के शहरी निकाय चुनाव में बीजेपी के सियासी राह में सपा-आरएलडी गठबंधन मुश्किल खड़ी कर सकती है?
सूबे में निकाय चुनावों को लेकर सियासी तानाबाना बुने जाने लगा है. शहरी निकाय चुनाव के नतीजे मिशन-2024 की दिशा तय करेंगे. इसीलिए सत्ताधारी बीजेपी से लेकर विपक्षी दल सपा, आरएलडी, बसपा और कांग्रेस सहित सभी पार्टियों ने अपनी ताकत झोंक दी है. निकाय चुनाव के आरक्षण की लिस्ट भी आ चुकी है और पश्चिम यूपी के नगर निगम की ज्यादातर मेयर सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित है.
यूपी में कुल 17 नगर निगम
यूपी में कुल 17 नगर निगम है, जिनमें से चार पश्चिमी यूपी में आती है तो चार ब्रज के क्षेत्र में है. अवध-पूर्वांचल-रुहेलखंड के इलाके में तीन-तीन नगर निगम है. पश्चिमी यूपी में सहारनपुर, मुरादाबाद, गाजियाबाद और मेरठ आती हैं. ब्रज के इलाके में आगरा, मथुरा, अलीगढ़ और फिरोजबाद है. पश्चिमी यूपी और ब्रज क्षेत्र में आठ नगर निगम है, जिनमें से 6 में बीजेपी के मेयर हैं और दो में बसपा के थे.
पश्चिमी यूपी में 2017 शहरी निकाय चुनावों में बीजेपी ने तीन नगर निगम के मेयर समेत 33 नगर पालिका और नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीती थी. वहीं, सपा ने 29 और बसपा ने एक मेयर सहित 27 नगर पालिकाओं व नगर पंचायतों पर कब्जा जमाया था. इस बार के सियासी हालत बदल गए हैं. आरएलडी और सपा एक साथ मिलकर निकाय चुनाव लड़ने का फैसला किया है तो बसपा और कांग्रेस भी पूरी ताकत के साथ किस्मत आजमाने का ऐलान किया है, जिससे बीजेपी के लिए चुनौती बढ़ गई है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम-गुर्जर-दलित मतदाताओं की तादाद बड़ी
मुजफ्फनगर की खतौली सीट पर जिस तरह से जाट-मुस्लिम-गुर्जर-दलित मतदाता एक साथ आए हैं, उससे सपा-आरएलडी गठबंधन के हौसले बुलंद हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश 150 निकाय सीटों पर इन चार समुदाय की बड़ी तादाद रहती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इसी इलाके में सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा था. सहरनपुर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद और अमरोहा संसदीय सीट बीजेपी हार गई थी जबकि मेरठ और मुजफ्फरनगर में बहुत कम अंतर से उसे जीत मिली थी.
पश्चिमी यूपी के 14 लोकसभा की 71 विधानसभा सीटों के अंतर्गत 150 निकाय इकाइयों के महापौर और चेयरमैन का चुनाव होने हैं. सपा-आरएलडी के बने गुर्जर-जाट-मुस्लिम-दलित कैंबिनेशन के चलते बीजेपी की राह आसान नहीं है. गाजियाबाद, मुरादाबाद, मेरठ और सहारनपुर नगर निगम और खतौली, शामली, कैराना, तितरो, हसनपुर, बुढ़ाना, खेकड़ा, देवबंद, लोनी, डासना, गढ़, खोड़ा, दादरी नगर पालिका ऐसी हैं, जिनमें जाट-गुर्जर-मुस्लिम गठजोड़ चौकाने वाले परिणाम दे सकते हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए इन सीटों पर नए तरीके से अपने राजनीतिक समीकरण बनाने होंगे?
नगर निगम का सालाना बजट
गाजियाबाद नगर निगम का 1367 करोड़ रुपये, आगरा नगर निगम का 1050 करोड़ रुपये, प्रयागराज नगर निगम का 800 करोड़ रुपये, बनारस नगर निगम का 750 करोड़ रुपये, मेरठ नगर निगम का 700 करोड़ रुपये, गोरखपुर नगर निगम का 452 करोड़ रुपये, मुरादाबाद नगर निगम का 417 करोड़ रुपये, झांसी नगर निगम का 322 करोड़ रुपये है. उत्तर प्रदेश के चार महंगे (बजट के आधार पर) नगर निगमों की कमान इस वक्त महिलाओं के हाथ में है.
लखनऊ, गाजियाबाद, प्रयागराज और कानपुर की कमान महिलाओं के पास है. ये चारों सीटें इस बार भी अनारक्षित हैं, यानी इन नगर निगम में मौजूदा मेयर को दोबारा टिकट की दावेदारी कायम है और उनका दावा है कि म्यूनिसिपल कारपोरेशन में उन्होंने काफी बेहतर काम किया है. हालांकि टॉप 5 में आगरा नगर निगम भी है, जिसकी कमान बीजेपी के ही नवीन जैन के पास है. ऐसे में देखना है कि इस बार निगम चुनाव में कौन बाजी मारता है?