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प्राचीन मूर्तियों के सबूत, पूजा की पुरानी परंपरा... ज्ञानवापी के उस तहखाने की कहानी, जहां 30 साल बाद हुई पूजा

Gyanvapi Case: वाराणसी कोर्ट ने हिंदू पक्ष को ज्ञानवापी के तहखाने में पूजा का अधिकार दे दिया है. 31 साल से व्यासजी के तहखाने में पूजा नहीं हो रही थी. इस मामले के वादी शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास का दावा है कि उनकी कई पीढ़ियों ने तहखाने में पूजा की है और 1993 तक वो अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए तहखाने में स्थित देव प्रतिमाओं की पूजा सेवा करते थे.

ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में कोर्ट के आदेश के बाद हुई पूजा-अर्चना ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में कोर्ट के आदेश के बाद हुई पूजा-अर्चना
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 01 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 1:37 PM IST

Gyanvapi Case:  ज्ञानवापी परिसर के तहखाने में पूजा का अधिकार मिलने के बाद 2 बजे रात कड़ी सुरक्षा के बीच यहां पूजा-अर्चना की गई. इसके साथ ही करीब 30 साल बाद ज्ञानवापी के तहखाने में आरती गूंजी.वाराणसी जिला अदालत ने पूजा पर लगी रोक हटाते हुए डीएम को 7 दिन के अंदर पूजा शुरू कराने का आदेश दिया था. यहां 1993 से पूजा पाठ बंद थी.  कोर्ट के फैसले के फौरन बाद  प्रशासन हरकत में आया और रात भर बैठकों का दौर चला. बाद में काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड की तरफ से पूजा अर्चना सुनिश्चित की गई. 

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काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का केस तीन दशक से भी ज्यादा समय से अदालत में है. जबकि, ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास 350 साल से भी ज्यादा पुराना है. सबसे पहले जानते हैं कि ये पूरा मामला क्या है?

क्या है मामला?

दरअसल, इस केस में हिंदू पक्ष का दावा है कि नवंबर 1993 से पहले व्यास तहखाने में पूजा-पाठ को उस वक़्त की प्रदेश सरकार ने रुकवा दिया था. जिसको शुरू करने का पुनः अधिकार दिया जाए. वहीं, मुस्लिम पक्ष ने प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला देते हुए याचिका को खारिज करने की मांग की थी. 

अगस्त 2021 में पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिविजन) के सामने एक वाद दायर किया था. इसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा और दर्शन करने की अनुमति देने की मांग की थी. महिलाओं की याचिका पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मस्जिद परिसर का एडवोकेट सर्वे कराने का आदेश दिया था. कोर्ट के आदेश पर पिछले साल तीन दिन तक सर्वे हुआ था. सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने यहां शिवलिंग मिलने का दावा किया था. दावा था कि मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग है. हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना था कि वो शिवलिंग नहीं, बल्कि फव्वारा है जो हर मस्जिद में होता है.

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 सेशन कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा केस

इसके बाद हिंदू पक्ष ने विवादित स्थल को सील करने की मांग की थी. सेशन कोर्ट ने इसे सील करने का आदेश दिया था. इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. SC ने केस जिला जज को ट्रांसफर कर इस वाद की पोषणीयता पर नियमित सुनवाई कर फैसला सुनाने का निर्देश दिया था. मुस्लिम पक्ष की ओर से यह दलील दी गई थी कि ये प्रावधान के अनुसार और उपासना स्थल कानून 1991 के परिप्रेक्ष्य में यह वाद पोषणीय नहीं है, इसलिए इस पर सुनवाई नहीं नहीं हो सकती है. हालांकि, कोर्ट ने इसे सुनवाई योग्य माना था.

मई 2023 में पांच वादी महिलाओं में से चार ने एक प्रार्थना पत्र दायर किया था. इसमें मांग की गई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित हिस्से को छोड़कर पूरे परिसर का ASI से सर्वे कराया जाए. इसी पर जिला जज एके विश्वेश ने अपना फैसला सुनाते हुए ASI सर्वे कराने का आदेश दिया था.

एएसआई के सर्वे में मिली मूर्तियां और मंदिर के सूबत

कोर्ट के आदेश के बाद ज्ञानवापी परिसर का ASI सर्वे कराया गया था. 18 दिसंबर, 2023 को एएसआई ने जिला जज की अदालत में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. इसके बाद हिंदू पक्ष ने मांग की थी कि सर्वे रिपोर्ट की कॉपी दोनों पक्षों को सौंपी जाए. इस पर 24 जनवरी 2024 को जिला कोर्ट ने सभी पक्षों को सर्वे रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था. विष्णु शंकर ने बताया कि जीपीआर सर्वे पर ASI ने कहा है कि यह कहा जा सकता है कि यहां पर एक बड़ा भव्य हिन्दू मंदिर था, अभी के ढांचा के पहले एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था. ASI के मुताबिक वर्तमान जो ढांचा है उसकी पश्चिमी दीवार पहले के बड़े हिंदू मंदिर का हिस्सा है. यहां पर एक प्री एक्जिस्टिंग स्ट्रक्चर है उसी के ऊपर बनाए गए.

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हिंदू पक्ष ने आगे रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पिलर्स और प्लास्टर को थोड़े से मोडिफिकेशन के साथ मस्जिद के लिए फिर से इस्तेमाल किया गया है. हिंदू मंदिर के खंभों को थोड़ा बहुत बदलकर नए ढांचे के लिए इस्तेमाल किया गया. पिलर के नक्काशियों को मिटाने की कोशिश की गई. यहां पर 32 ऐसे शिलालेख मिले हैं जो पुराने हिंदू मंदिर के हैं.  

दोनों पक्षों के अपने-अपने दावे

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद काफी हद तक अयोध्या विवाद जैसा ही है. हालांकि, अयोध्या के मामले में मस्जिद बनी थी और इस मामले में मंदिर-मस्जिद दोनों ही बने हुए हैं. काशी विवाद में हिंदू पक्ष का कहना है कि 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने यहां काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई थी लेकिन मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां मंदिर नहीं था और शुरुआत से ही मस्जिद बनी थी. 

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जानकार मानते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर को अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने बनवाया था. इसे 1585 में बनाया गया था. 1669 में औरंगजेब ने इस मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनवाई. 1735 में रानी अहिल्याबाई ने फिर यहां काशी विश्वनाथ मंदिर बनवाया, जो आज भी मौजूद है.

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473 साल पुराना है व्यास परिवार का पूजा-पाठ का इतिहास?

हालांकि, ज्ञानवापी स्थित व्यासजी के तहखाना प्रकरण को लेकर शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास ने कोर्ट में इस बात का दावा किया कि आदि विश्वेश्वर की पूजा का इतिहास 473 साल पुराना है. शैलेंद्र कुमार द्वारा कोर्ट में जो दलील दी गई है उसके मुताबिक, ज्ञानवापी में शतानंद व्यास ने वर्ष 1551 में आदि विश्वेश्वर की पूजा शुरू की थी.  इसके बाद व्यास परिवार की कई पीढ़ियों ने जिम्मेदारी निभाई और साल 1930 में इस परिवार के बैजनाथ व्यास ने पूजा-पाठ का जिम्मा संभाला. फिर उनके बेटी राजकुमारी उत्तराधिकारी बनीं जिनके चार बेटे हुए जिनमें से एक का नाम सोमनाथ व्यास था. शैलेंद्र कुमार इन्हीं सोमनाथ व्यास की बेटी ऊषा रानी के बेटे के रूप में तहखाने में पूजा का अधिकार मांग रहे थे.

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