
क्या हो जब आपका अपना कोई गुम हो जाए. सालों साल उसकी तलाश जारी रहे. फिर एक दिन ऐसा आए कि कई सालों की यह बिछड़न एक पल में खत्म हो जाए, तो खुशी के आंसू आना लाजमी है. कुछ ऐसा ही हुआ यूपी-बिहार बॉर्डर करीब रहने वाला नवल किशोर के साथ. उनकी पत्नी आठ साल पहले अचानक घर से लापता हो गई थीं.
नवल चार बच्चों के साथ पत्नी की तलाश में जुटे थे. मगर, कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. किशोर ने पत्नी गायत्री को हर कहीं ढूंढा. ईश्वर से पत्नी के सही सलामत मिल जाने की हर रोज-हर पल दुआ मांगी. बच्चे भी अपनी मां की याद में गुमसुम रहते थे. वे हर वक्त भगवान से कहते था कि मां को वापस घर भेज दो.
फिर एक दिन ऐसे आया कि गायत्री अपने बिछड़े परिवार से मिली. बच्चों को अपनी मां वापस मिल गई और नवल को अपनी पत्नी. 812 किमी का सफर तय तक नवल आगरा आकर अपनी पत्नी को अपने साथ वापस घर ले गया.
फिल्म की कहानी की तरह परिवार से मिली गायत्री
यूपी के गोरखपुर जिले के बॉर्डर वीरगंज में नवल अपनी पत्नी गायत्री और चार बच्चों के साथ रहते थे. साल 2015 में गायत्री अचानक से घर से गायब हो गई. नवल ने गायत्री को बहुत ढूंढा, लेकिन कुछ पता नहीं चला. कई दिनों की तलाश के बाद पति नवल किशोर ने गायत्री के गुमशुदा होने की रिपोर्ट संबंधित थाने में दर्ज कराई.
पुलिस के साथ मिलकर नवल किशोर ने पत्नी को बहुत ढूंढा, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. समय बीतता रहा और अंतहीन लगने वाला तलाश का सिलसिला भी जारी रहा. इस दौरान अपने परिवार से बिछड़ी गायत्री मथुरा किसी की मदद से नारी निकेतन शरणालय में पहुंची.
गायत्री की मानसिक हालत नहीं थी ठीक
गायत्री की मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने के चलते पुलिस ने उसे आगरा के मानसिक चिकित्सा संस्थान में भर्ती कराया. इधर, आगरा में भर्ती गायत्री का अस्पताल में इलाज जारी था और उधर पति नवल किशोर और चार बच्चे साल दर साल उसके इंतजार में आंसू बहा रहे थे.
सिजोफ्रेनिया से मिला आराम, तो बताया घर का पता
गायत्री सिजोफ्रेनिया से पीड़ित थी. इसकी वजह से ही उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ गई थी और वह अपना घर से लापता हो गई थी. आगरा में उसका आठ साल इलाज चला. धीरे-धीरे उसकी मानसिक हालत में सुधार हुआ.
इस दौरान गायत्री को अपने परिवार की याद आने लगी. पति और बच्चों के याद में वह भी परेशान रहती. उसने अस्पताल में मौजूद फीमेल वार्ड इंचार्ज को उसने अपने घर का पता बताया. उसका बताया एड्रेस सटीक नहीं था. फिर उम्मीद के साथ अस्पताल प्रबंधन ने उसी पते पर पत्र व्यवहार शुरू किया.
एक दिन आया पत्र का जवाब और मिल गया परिवार
शुरुआत में कई सारे पत्र का जवाब नहीं आया. अस्पताल प्रबंधन और गायत्री ने भी उम्मीद छोड़ दी थी. फिर एक दिन चमत्कार हुआ. जिस पते पर पत्र भेजे जा रहे थे, वहां से जवाब आया. पति नवल किशोर ने पत्र लिखकर गायत्री के बारे में सब कुछ लिखा. फिर फोन के जरिए संपर्क साधा गया. जरूरी जानकारियां एकत्र की गई. इसके बाद 812 किमी दूर पति नवल किशोर पत्नी गायत्री को लेने पहुंचे.
एक-दूसरे से मिलकर रोते रहे नवल और गायत्री
आगरा के मानसिक चिकित्सा संस्थान एवं चिकित्सालय पहुंचे नवल किशोर ने गायत्री के संबंधी जरूरी कागज अस्पताल प्रबंधन को दिखाए. गायत्री और नवल ने जब इतन सालों बाद एक-दूसरे को देखा तो दोनों ही अपने आंसू संभाल नहीं सके. पर अब ये आंसू दुख के नहीं खुशी के थे.
इस पूरे मामले पर अस्पताल के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार ने बताया कि महिला मानसिक रूप से बीमार था. उसका पिछले आठ साल से इलाज चल रहा था. अब उसकी सेहत में बहुत सुधार है. साथ ही वह अपने पति से भी मिल चुकी है.
वहीं, फीमेल वार्ड इंचार्ज डॉ. चंचल चंद्रा ने बताया कि करीब 5-6 चिट्ठियां गायत्री के बताए पते पर भेजी गई थीं. एक चिट्ठी का जवाब आया था और अब गायत्री का पति उसे अपने साथ ले जा रहा है. इस परिवार को मिलता हुआ देखकर अस्पताल के लोग भी भावुक हो गए थे.
यह होता है सिजोफ्रेनिया के रोगियों के साथ
सिजोफ्रेनिया एक मनोरोग है. इससे पीड़ित व्यक्ति की सोच, समझ और व्यवहार सबकुछ बदल जाता है. इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को बिना किसी वजह के हर बात और व्यक्ति पर शक होने लगता है. वह अपनी ही बनाई दुनिया में खोया रहता है. उसे ऐसी आवाजें सुनाई देती हैं, जो वास्तव में होती ही नहीं हैं. बातें याद नहीं रहती हैं. मनोचिकित्सक की मदद से इस बीमारी का इलाज संभव है.