
यूपी की राजधानी लखनऊ में एक बिल्डिंग के नीचे शिव मंदिर होने का दावा किया गया है. जिसके मुताबिक 30 साल से इस मंदिर को कॉम्प्लेक्स के बेसमेंट में छिपाकर रखा गया है. तमाम शिकायतों के बावजूद तत्कालीन प्रशासन और सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं हुई. इस पूरे मामले को लेकर ब्राह्मण संसद के अध्यक्ष के साथ हिंदूवादी संगठन और तमाम पुजारी LDA (लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी) ऑफिस पहुंचे. वहां पहुंचकर लखनऊ विकास प्राधिकरण के सचिव विवेक श्रीवास्तव को अमरनाथ मिश्रा ने ज्ञापन सौंपा और मंदिर से जुड़े कागज दिए.
ऊपर बकरा कटे और नीचे भोलेनाथ, ये नहीं होगा बर्दाश्त
ब्रह्मांड संसद के अध्यक्ष अमरनाथ मिश्रा ने बताया कि LDA के सचिव ने निष्पक्ष जांच की बात कही है और मामले से जुड़े अधिकारियों से इस मामले में जानकारी जुटाने को कहेंगे. अमरनाथ मिश्र और तमाम साधु संतों ने बातचीत में बताया कि कॉम्पलेक्स पक्ष के द्वारा सभी फर्जी कागज दिखाए गए, मंदिर के गुंबद को सनातन में ढक देना या उसके ऊपर कुछ और बना देना सनातन में कुबूल नहीं है.
संतो ने कहा बकरीद में आप ऊपर ही बकरा काटेंगे और हमारे भोलेनाथ जमीन के नीचे बेसमेंट में अपना अपमान सहेंगे. हम ऐसा नहीं होने देंगे.
आपको बता दें कि इस मामले में हिंदू पक्ष के द्वारा दावा किया गया है कि यह मंदिर 1885 का है, जो स्वर्गीय गजराज सिंह ने अपनी कमाई से अपनी जमीन पर बनवाया था. 1906 में रजिस्टर्ड वसीयत कर उस जमीन पर एक ठाकुरद्वारा और शिवालय का निर्माण कराया. 1918 में पूजा अर्चना के लिए द्वारका प्रसाद दीक्षित को पुजारी के रूप में जिम्मेदारी सौंपी गई और कहा गया कि उनकी पुश्त दर पुश्त यहां पर पूजा पाठ करती रहेंगी.
डॉक्टर शाहिद पर है मंदिर पर कब्जा करने का आरोप
द्वारका प्रसाद के बाद लालता प्रसाद फिर उमाशंकर दीक्षित फिर रामकृष्ण दीक्षित और फिर यज्ञ मनी दीक्षित के पास यहां पूजा पाठ का अधिकार था. पर रामकृष्ण दीक्षित जब इस मंदिर में पूजा-पाठ कर रहे थे तब 1993-94 के बीच एक दल से जुड़े हुए नेता डॉक्टर शाहिद ने मंदिर पर कब्जा कर लिया और सरकारी संरक्षण में बिना नक्शा पास कराए भूमि पर अवैध निर्माण करवा दिया. यहां पर शॉपिंग कॉम्प्लेक्स दुकान भी बनवा दी गई.
मंदिर पक्ष से जुड़े हुए लोगों ने यह भी कहा कि इस प्रकरण में तत्कालीन नगर मजिस्ट्रेट लखनऊ से शिकायत की गई थी. उन्होंने मामले का संज्ञान लेते हुए 14 जनवरी 1993 को कैसरबाग और चौक सीओ को पत्र लिखकर निर्माण कार्य पर रोक लगाने का आदेश दिया था. साथ ही मजिस्ट्रेट ने मंदिर परिसर में स्थित बरगद का पेड़ जो कि लगभग ढाई सौ साल पुराना था उसको काटने से रोकने का भी आदेश दिया था. लेकिन इस आदेश के बावजूद निर्माण कार्य नहीं रुका.