
महाकुंभ के मेला क्षेत्र में जो मंजर बुधवार को देखा गया उसने सभी को सदमे में डाल दिया. एक व्यक्ति ने अपने परिजन का शव खोने के डर से तब तक उसका हाथ नहीं छोड़ा, जब तक कि वो शव अस्पताल के मुर्दाघर नहीं पहुंच गया. उसे डर था कि अगर वो शव का हाथ छोड़ देगा तो उसे अपने रिश्तेदार की लाश तक नसीब नहीं होगी. चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल और करोड़ों लोगों की भीड़ में प्रशासन मृतकों और घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए संघर्ष कर रहा था. वीडियो में घटना के बाद संगम के पास 50 से ज्यादा एंबुलेंस नजर आ रही थीं. चारों तरफ जूते, चप्पल, कंबल, बैग और कपड़े बिखरे हुए थे.
दावा है कि ये सारा सामान उन श्रद्धालुओं का था, जो संगम के पास मौनी अमावस्या का अमृत स्नान करने के लिए अपने परिवारों के साथ रुके हुए थे. लेकिन इसी दौरान लोगों की जो भीड़ संगम की तरफ जा रही थी, उसमें भगदड़ मच गई और इस भगदड़ में ये भीड़ उन लोगों पर गिर गई, जो वहां सो रहे थे या अपने परिवारों के साथ अमृत स्नान करने का इंतजार कर रहे थे. इस भगदड़ के बाद सैकड़ों लोग अपनों से भी बिछड़ गए और कई लोगों के शवों को एंबुलेंस से अस्पताल लाया गया.
30 की मौत, CM हुए भावुक
आजतक की टीम जब महाकुंभ के केंद्रीय अस्पताल पहुंची तो वहां फर्श पर 11 लाशें दिख रही थीं, जिनकी तस्वीरें आपको विचलित भी कर सकती हैं. अभी तक हम हर रोज महाकुंभ की भव्य तस्वीरें देख रहे थे जिसमें हर रोज करोड़ों लोग स्नान कर रहे थे. कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं हुई लेकिन किसी ने भी यह कल्पना नहीं की थी कि हमें महाकुंभ की दिव्य तस्वीरों के बाद आज ये दुखद तस्वीरें देखनी पड़ेंगी, जिसमें हम महाकुंभ में स्नान के बजाय मौत के आंकड़े देखेंगे.
इस भगदड़ में 30 लोगों की मौत हुई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी आज इस घटना पर बयान देते हुए भावुक हो गए. आज भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में इस 'भगदड़' की चर्चा हो रही है. हर कोई यही जानना चाहता है कि ये घटना महाकुंभ में कहां हुई, कैसे हुई, क्यों हुई और क्या इसके पीछे कोई साजिश भी हो सकती है? सबसे पहले ये जानते हैं कि ये घटना महाकुंभ के किस सेक्टर और किस घाट पर हुई?
उस रात आखिर संगम पर हुआ क्या?
इस बार महाकुंभ का मेला क्षेत्र लगभग 4 हजार हेक्टेयर की भूमि पर फैला हुआ है, जिसमें कुल 25 सेक्टर हैं और 41 घाट हैं. ये घटना मेला क्षेत्र के सेक्टर 2 में हुई है, जहां महाकुंभ का सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण घाट है. इस घाट को संगम घाट या संगम नोज भी कहते हैं क्योंकि इसी घाट पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का मिलन होता है. लोग मानते हैं कि उन्हें महाकुंभ में पवित्र स्नान का असली पुण्य तभी मिलेगा, जब वो संगम में डुबकी लगाएंगे. यही कारण है कि अभी जितने भी लोग महाकुंभ जा रहे हैं, वो संगम घाट पर स्नान करना चाहते हैं और इस घटना में भी यही हुआ. जो श्रद्धालु गंगा और यमुना नदी के घाटों पर मौजूद थे, वो मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान करने के लिए संगम घाट की तरफ प्रस्थान करने लगे, जिससे संगम घाट पर भीड़ का दबाव काफी बढ़ गया.
देर रात 2 बजे जब ये घटना हुई, तब उससे सिर्फ आधा घंटा पहले संगम घाट की कुछ तस्वीरें आई थीं, जिसमें चारों तरफ लोगों का सैलाब दिख रहा था. अनुमान है कि उस समय सिर्फ इस एक सेक्टर में संगम के आसपास 25 लाख से ज्यादा श्रद्धालु इकट्ठा हुए थे. पुलिस ने संगम पहुंचने के लिए जो मार्ग बनाए थे, वो इस कदर भरे हुए थे कि लोग वहां लगाए गए बैरिकेड को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे और पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स के जवान उन्हें रोकने के लिए बार-बार समझा रहे थे. ये सारे हालात भगदड़ मचने से सिर्फ आधा घंटा पहले के थे. प्रशासन के मुताबिक, ये घटना देर रात 1 बजकर 45 मिनट से 2 बजे के बीच हुई. जहां ये घटना हुई, वहां से संगम घाट की दूरी ज्यादा से ज्यादा सिर्फ 200 मीटर थी.
क्या VVIP मूवमेंट से बढ़ी भीड़?
अब इस सवाल पर आते हैं कि क्या इस भीड़ का कारण VVIP मूवमेंट था? बहुत सारे लोग सोशल मीडिया पर दावा कर रहे हैं कि प्रशासन ने VVIP नेताओं, सेलिब्रिटी और अधिकारियों के लिए कई मार्ग को आरक्षित किया हुआ था, जिसके कारण ये भगदड़ हुई लेकिन हमें जो जानकारियां मिली हैं, उनके मुताबिक ये दावा भ्रामक है और पूरी तरह से सही नहीं है. महाकुंभ के 45 दिनों में सबसे बड़ा अमृत स्नान मौनी अमावस्या को सिर्फ संगम में होता है और ये स्नान 13 अखाड़ों के साधु-संतों और महामंडलेश्वर द्वारा किया जाता है. इस दिन आम श्रद्धालु गंगा और यमुना नदी के घाटों पर अमृत स्नान कर सकते हैं लेकिन साधु-संत सनातन परंपरा के कारण सिर्फ संगम की Nose (नोज) पर ही अमृत स्नान करते हैं. यही कारण है कि संगम पर साधु-संतों के पहुंचने के लिए एक आरक्षित मार्ग बनाया जाता है, जिसे 'अखाड़ा रोड' भी कहते हैं.
अखाड़ों के साधु-संतों के टेंट गंगा नदी के उस पार लगे हुए हैं. उन्हें संगम में स्नान करने के लिए अस्थाई पुलों से गंगा नदी को पार करके इस अखाड़ा मार्ग पर आना होता है और क्योंकि अमृत स्नान के लिए सभी अखाड़े रथों पर सवार हो कर संगम पहुंचते हैं, इसलिए इस मार्ग को थोड़ा चौड़ा और बड़ा रखा जाता है. मौनी अमावस्या के अमृत स्नान के लिए भी ऐसा ही किया गया था और ये कोई VVIP मूवमेंट नहीं था. पुलिस ने गंगा नदी पर बने कई अस्थाई पुलों को बंद कर दिया था, ताकि आम श्रद्धालु जिस घाट पर हैं, वहीं स्नान करें और संगम की तरफ ना आएं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अलग-अलग मार्ग से करोड़ों श्रद्धालु संगम पर पहुंच गए, जिससे नागा साधुओं को अपना अमृत स्नान रोकना पड़ा.
भीड़ के कारण एक 'अखाड़े' के साधु संतों को बीच रास्ते से ही बिना अमृत स्नान किए वापस अपने शिविरों में लौटना पड़ा और इससे ये साधु-संत नाराज़ भी हुए. इस सबके बीच हालात तब और ज्यादा बिगड़ने शुरू हुए, जब संगम पर पहुंचने के बाद लोग वहीं रुककर सुबह होने का इंतज़ार करने लगे. ये तमाम लोग ये सोच रहे थे कि ये मौनी अमावस्या पर सुबह 4 बजे ब्रह्म-मुहूर्त में पवित्र स्नान करेंगे और बाद में वहां से शहर की ओर वापस लौट जाएंगे. लेकिन इससे संगम पर भीड़ का दबाव काफी बढ़ने लगा और इस भीड़ में लाखों लोग संगम के पास अपना सामान रख कर वहीं विश्राम करने लगे. दावा है कि जब संगम के मार्ग में भगदड़ हुई, तब यही भीड़ वहां नीचे सो रहे लोगों पर गिर गई और इसमें 30 लोगों की जान चली गई.
क्या टल सकता था हादसा?
क्या प्रशासन ने इस भीड़ को नियंत्रित करने का कोई प्रयास नहीं किया? क्या इस भगदड़ को रोका जा सकता था? अगर श्रद्धालु प्रशासन की अपील को नज़रअंदाज़ नहीं करते तो हां, इस घटना को रोका जा सकता था. DIG वैभव कृष्ण ने घटना से कुछ देर पहले लाउडस्पीकर पर ये अपील की थी कि लोग घाटों पर रातभर ना रुकें क्योंकि इससे आने वाले दूसरे श्रद्धालुओं को परेशानी हो सकती है. उन्होंने ये भी कहा था कि लोग संगम पर जाने के बजाय उन्हीं घाटों पर पवित्र स्नान करें, जो उनके आसपास हैं. लेकिन लोगों ने प्रशासन की इस अपील पर ध्यान नहीं दिया और संगम पर बड़ी संख्या में लोगों के पहुंचने से ये घटना हो गई.
ये बात सही है कि लोगों ने प्रशासन की अपील पर ध्यान नहीं दिया लेकिन एक तथ्य ये भी है कि इस घटना के लिए लोगों को दोष देना बिल्कुल गलत होगा. अगर आप महाकुंभ की व्यवस्था को देखेंगे तो प्रशासन ने संगम पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कई रास्तों को डायवर्ट किया हुआ था. इस डायवर्जन के कारण लोगों को 6 से 7 किलोमीटर पैदल चल कर संगम की नोज पर पहुंचना पड़ रहा था यानी संगम का जो रास्ता 1 से 2 किलोमीटर का था, वो डायवर्जन के कारण 6 से 7 किलोमीटर हो गया था.
इसके अलावा ये मार्ग भीड़ के मुकाबले संकरे थे और इन रास्तों में धक्के खाते हुए संगम पहुंचना किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था. अगर कोई व्यक्ति मेला क्षेत्र में 6 से 7 किलोमीटर पैदल चल कर संगम पहुंचता है तो उसके लिए घाट पर कुछ देर रुककर आराम करना स्वाभाविक है. इस घटना में भी बहुत सारे लोगों ने यही किया इसलिए ये कहना कि लोग वहां क्यों रुके हुए थे, ये सही नहीं होगा. यहां गलती प्रशासन से हुई है, जो भीड़ को नियंत्रित करने में नाकाम रहा.
सरकार और चश्मदीदों के अलग-अलग दावे
महाकुंभ में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए 40 हजार पुलिसकर्मी और जवान और 2700 CCTV कैमरे लगाए गए हैं लेकिन इसके बावजूद ये भगदड़ को रोक नहीं पाए. इसके अलावा महाकुंभ में तीन प्रकार की सड़कें हैं. पहली सड़क को काली सड़क कहते हैं, जो आम श्रद्धालुओं के लिए होती है. दूसरी सड़क को लाल सड़क कहते हैं, जो VVIP मूवमेंट के लिए होती है और तीसरी सड़क को त्रिवेणी मार्ग कहते हैं, जो मेला क्षेत्र को संगम से जोड़ता है. लेकिन इस घटना में ये व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई और प्रशासन इस भगदड़ को रोक नहीं पाया.
इस घटना पर सरकार और चश्मदीदों का पक्ष अलग-अलग क्यों है? पुलिस का कहना है कि इस भगदड़ में कुछ बैरिकेड्स टूट गए थे, जिसकी वजह से भीड़ का एक जत्था जमीन पर सो रहे कुछ श्रद्धालुओं पर चढ़ गया. लेकिन चश्मदीदों का कहना है कि संगम घाट पर आने और जाने के लिए एक ही मार्ग था, जिससे लोगों में धक्का-मुक्की हुई और इसके बाद वहां भगदड़ मच गई.
मौनी अमावस्या पर संगम में स्नान का क्या महत्व
कुंभ हो, अर्द्धकुंभ हो, पूर्ण कुंभ हो या महाकुंभ हो, इन सबमें सबसे बड़ा अमृत स्नान मौनी अमावस्या का होता है. इस स्नान को मोक्ष की प्राप्ति के लिए जरूरी माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन प्रयागराज की त्रिवेणी में अमृत बहता है, जिसकी वजह से ज्यादातर लोग 'गंगा' नदी या यमुना नदी में स्नान करने के बजाय संगम की नोज़ में स्नान करने का संकल्प लेते हैं. संगम की नोज़ का मतलब, नाक के उस आकार से है, जहां मान्यता है कि गंगा और यमुना नदी के साथ धरातल के नीचे सरस्वती नदी का भी मिलन होता है.
इसके अलावा मौनी अमावस्या पितरों को समर्पित होती है इसलिए लोग अपने पितरों की शांति के लिए संगम में स्नान करके एक नई शुरुआत करते हैं और साधु-संत इसी दिन मोक्ष की प्राप्ति के लिए मौन व्रत रखकर अमृत स्नान करने के लिए आते हैं. इस बार मौनी अमावस्या का अमृत स्नान इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि ये योग 144 वर्षों के बाद आया है, जिसके कारण ज्यादा से ज्यादा लोग संगम के घाट पर इकट्ठा हुए हैं और इस दौरान ये घटना हो गई.
सरकार ने बढ़ाया था संगम नोज का आकार
बहुत सारे लोग ये भी कह रहे हैं कि अगर उत्तर प्रदेश की सरकार संगम की नोज़ का विस्तार करती तो ये घटना नहीं होती? लेकिन ये दावा भी पूरी तरह से गलत है. इस बार सरकार ने सिंचाई विभाग और IIT गुवाहाटी के विशेषज्ञों के साथ संगम की नोज वाले घाट का अतिरिक्त दो हेक्टेयर क्षेत्र विकसित किया है. पहले इस घाट पर एक बार में 50 हज़ार लोग आ सकते थे लेकिन इस बार एक बार में संगम पर दो लाख लोग आ सकते हैं.
इस भगदड़ के बाद महाकुंभ में एक नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बन गया. बुधवार रात 8 बजे तक मौनी अमावस्या के दिन 7 करोड़ 64 लाख लोगों ने महाकुंभ में अमृत स्नान किया. अब तक महाकुंभ में 27 करोड़ 58 लाख लोग आ चुके हैं. सोचिए, भगदड़ का भी लोगों पर कोई असर नहीं हुआ और 20 घंटे में 7 लाख करोड़ 64 लाख लोगों ने आज महाकुंभ में अमृत स्नान किया.
इस 'भगदड़' के कारण 13 अखाड़ों के साधु-संतों ने मौनी अमावस्या के अमृत स्नान को टाल दिया था. ये भी एक बहुत बड़ी बात है. नागा साधुओं ने पहले ही अपना पिंडदान करके संसारिक जीवन के सारे अधिकार छोड़ दिए थे लेकिन इस भगदड़ के कारण आज उन्हें सबसे पहले अमृत स्नान करने का अधिकार भी छोड़ना पड़ा और ये अमृत स्नान आज दोपहर 2 बजे शुरू हुआ.