
उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा सीट और दो विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हो रहे हैं. 5 दिसंबर को इन सीटों पर मतदान होना है लेकिन सबसे अधिक चर्चा हो रही है मैनपुरी लोकसभा सीट की. मैनपुरी लोकसभा सीट से उपचुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव चुनाव मैदान में हैं. मुलायम सिंह यादव के निधन से रिक्त हुई इस सीट से जहां उनकी बहू डिंपल यादव चुनाव मैदान में हैं तो वहीं ऐन चुनाव के वक्त मुलायम का परिवार भी एकजुट हो गया है.
दूसरी तरफ, सूबे और केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने सपा से ही सांसद रहे रघुराज शाक्य को टिकट दिया था. रघुराज शाक्य को शिवपाल यादव का करीबी माना जाता था लेकिन अब चाचा-भतीजे में सुलह के बाद माहौल बदल गया है. बीजेपी ने कई बड़े नेताओं को मैनपुरी के चुनावी रण में प्रचार के लिए उतार दिया है वहीं अब चर्चा चुनाव मैदान से दूरी बनाए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की भी हो रही है. बसपा की चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि पार्टी के चुनाव न लड़ने के फैसले के बाद दलित वोटरों का साथ किसे मिलेगा.
साल 2019 का लोकसभा चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ने वाली बसपा की प्रमुख मायावती ट्वीट कर लगातार सपा और बीजेपी, दोनों को ही घेर रही हैं. मायावती के दोनों दलों पर हमलावर रुख का चुनाव में दलित मतदाताओं पर क्या असर होगा, चर्चा इसी बात को लेकर है. दरअसल, अतीत के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो मायावती की पार्टी उपचुनाव में अपना उम्मीदवार नहीं उतारती है. हालांकि, अखिलेश यादव के इस्तीफे से रिक्त हुई आजमगढ़ लोकसभा सीट के उपचुनाव में बसपा ने उम्मीदवार उतारा था.
राजनीतिक परिस्थितियों और दलित वोटर्स की तादाद को देखते हुए चुनावी समर से हाथी के गायब होने की चर्चा भी खूब हो रही है.अगर मैनपुरी में मतदाताओं की संख्या को देखें तो सबसे ज्यादा यादव मतदाता हैं. दूसरे नंबर पर शाक्य वोटर हैं. अनुसूचित जाति के मतदाताओं की तादाद भी करीब 1 लाख 52 हजार बताई जा रही है जिसमें सबसे अधिक जाटव हैं जिन्हें बसपा का परंपरागत वोटर माना जाता है.
सपा को टक्कर देती रही है बसपा
साल 2014 में बीजेपी के मजबूती से उभरने से पहले तक सपा को इस सीट पर बसपा ही टक्कर देती रही है. बसपा की गैरमौजूदगी में अनुसूचित जाति के मतदाताओं का क्या रुख रहेगा, सभी की नजरें इसी पर टिकी हैं. गौरतलब है कि 2019 के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने लगातार इस बात का संदेश दिया कि दलितों का उत्पीड़न करने, उनका अहित करने के लिए बीजेपी के साथ सपा भी जिम्मेदार है. मायावती ने ये संदेश देना शुरू किया कि सपा की राजनीति बसपा की दलित राजनीति के विरोध में है. 2019 के बाद अखिलेश ने जितने नेताओं को सपा में शामिल कराया, उनमें से ज्यादातर बसपा के ही नेता थे. एक चर्चा ये भी है कि अखिलेश यादव ने हाल में किसी भी दलित को एमएलसी नहीं बनाया. ये भी सपा के खिलाफ जा रहा है.
बीजेपी पर आक्रामक नहीं हैं मायावती
मायावती बीजेपी पर मौका देख कर हमला करती हैं पर बहुत ज्यादा आक्रामक नहीं होतीं. इन राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए बीजेपी ने खास तौर पर दलित वोट के लिए अपनी रणनीति को धार दी है. परिवार के एक होने से यादव वोटों के सपा के पक्ष में जाने की उम्मीद है तो वहीं शाक्य को प्रत्याशी बनाकर बीजेपी ने मैनपुरी में दूसरे सबसे बड़े वोट बैंक को एक संदेश दिया है. बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि हर बैठक में तैयारी अनुसूचित जाति के डेढ़ लाख वोट को लेकर भी हो रही है.
करहल विधानसभा की जिम्मेदारी संभाल रहे यूपी बीजेपी के प्रदेश मंत्री और एमएलसी सुभाष यदुवंश का कहना है कि हम लोग जाति धर्म के आधार पर चुनाव नहीं लड़ते. पार्टी की नीतियों और मोदी और योगी सरकार के काम को लेकर लोगों के बीच जा रहे हैं. जब बसपा और सपा का गठबंधन था और खुद मायावती ने मुलायम सिंह यादव के लिए वोट मांगा था तब भी उनको 94 हजार वोट से ही जीत मिली थी. इस बार तो गठबंधन नहीं है. उन्होंने कहा कि सभी वोटर्स को हकीकत समझ में आ गई है.
क्या कहते हैं जानकार
राजनीति के जानकारों का कहना है कि परिस्थितियों को देखते हुए बीजेपी का उत्साह बढ़ना स्वाभाविक है. सपा को इस समीकरण का पता है इसलिए सपा नुकसान की भरपाई के लिए हर वर्ग के बीच मुलायम की विरासत की बात कहते हुए पहुंच रही है. जानकार ये भी बताते हैं कि शिवपाल के डिंपल का समर्थन करने से बीजेपी की लड़ाई मुश्किल हुई है लेकिन अगर बीजेपी डेढ़ लाख दलित वोट में सपा की तुलना में अधिक समर्थन मिलता है तो ये बड़ी बात होगी.