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कौन चाहता है BSP की एंट्री, कौन नहीं... मायावती को लेकर इतने ऊहापोह में क्यों है INDIA गठबंधन?

इंडिया गठबंधन की दिल्ली में हुई बैठक में मायावती और बहुजन समाज पार्टी को लेकर भी चर्चा हुई थी. कौन इंडिया गठबंधन में बसपा की एंट्री चाहता है और कौन नहीं चाहता, इसकी वजहें क्या हैं? मायावती को लेकर इंडिया गठबंधन इतने ऊहापोह में क्यों है?

अखिलेश यादव, मायावती और मल्लिकार्जुन खड़गे (फाइल फोटो) अखिलेश यादव, मायावती और मल्लिकार्जुन खड़गे (फाइल फोटो)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 25 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 1:38 PM IST

एक तरफ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) कुछ ही महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गया है. वहीं, विपक्षी इंडिया गठबंधन अभी सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर मंथन में ही जुटा हुआ है. इंडिया गठबंधन में कुछ दलों को लेकर भी ऊहापोह की स्थिति है. आम आदमी पार्टी को लेकर अटकलें तेज हैं तो वहीं बात मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को लेकर भी हो रही है.

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दरअसल, इंडिया गठबंधन की दिल्ली में हुई बैठक में अखिलेश यादव ने बसपा के साथ गठबंधन को लेकर कांग्रेस की बातचीत पर तल्ख सवाल पूछे थे. अखिलेश ने बसपा की एंट्री पर इंडिया गठबंधन से सपा के बाहर निकलने तक की बात कह दी थी. राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के जयंत चौधरी ने भी दो टूक कह दिया था कि बसपा को गठबंधन में लिया गया तो हम बाहर निकल जाएंगे. दूसरी तरफ, कांग्रेस की ओर से यह कहा गया कि बसपा से गठबंधन को लेकर कोई गंभीर बातचीत नहीं की गई है.

अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि मायावती को लेकर इंडिया गठबंधन में इतनी ऊहापोह क्यों है? एक तरफ विपक्षी पार्टियां हर जगह एकजुट होकर बीजेपी और एनडीए के खिलाफ एक सीट पर एक उम्मीदवार उतारने की बात कर रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के एक बड़े दल बसपा के गठबंधन में आने पर सपा-आरएलडी जैसी पार्टियां इंडिया गठबंधन छोड़ने की धमकी क्यों दे रही हैं? सवाल ये भी उठ रहे हैं कि कांग्रेस, बसपा को गठबंधन में लेने के पक्ष में क्यों है? इन सबको समझने के लिए आंकड़ों की चर्चा जरूरी है.

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कांग्रेस क्यों चाहती है बसपा को साथ लाना

मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ने कई मौकों पर ये कहा है कि वह किसी गठबंधन में शामिल हुए बगैर लोकसभा के चुनाव में अकेले उतरेगी. हालांकि, मायावती ने विपक्षी दलों की पटना बैठक से पहले यह भी कहा था कि विपक्ष में चल रही हलचलों पर हमारी नजर है. यूपी कांग्रेस के नेता भी यह कहते रहे हैं कि मायावती के लिए इंडिया गठबंधन के दरवाजे हमेशा खुले हैं. हाल के दिनों में कांग्रेस और बसपा के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत की खबरें भी आईं. सपा और आरएलडी ने इंडिया गठबंधन की दिल्ली में हुई बैठक में इस तरह की कोशिशों पर नाराजगी जाहिर करते हुए गठबंधन छोड़ने की धमकी दे दी तो दूसरी तरफ सवाल ये भी उठ रहे हैं कि कांग्रेस आखिर बसपा को गठबंधन में लाने के पक्ष में क्यों है?

जयंत चौधरी और अखिलेश यादव (फाइल फोटो)

इसकी दो मुख्य वजहें बताई जा रही हैं. एक वजह ये है कि मायावती की पार्टी इंडिया गठबंधन में आई तो उत्तर प्रदेश में बीजेपी और एनडीए के खिलाफ एक सीट पर एक उम्मीदवार की परिकल्पना साकार हो सकती है. दूसरी वजह है दलित वोट. उत्तर प्रदेश में मायावती की पार्टी दलित वोट का प्रतिनिधित्व करती है. सूबे में दलित आबादी करीब 21 फीसदी है और मायावती की पार्टी का प्रदर्शन सीटों के लिहाज से भले ही हाल के चुनाव में बेहतर नहीं रहा लेकिन बसपा का वोट शेयर 20 फीसदी के आसपास बना रहा है.

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बसपा का वोट बैंक स्थिर

बसपा तब भी 20 फीसदी के करीब वोट शेयर मेंटेन रखने में सफल रही है, जब पार्टी यूपी में खाता तक नहीं खोल सकी थी. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता तक नहीं खुल सका था लेकिन पार्टी को तब भी 19.8 फीसदी वोट मिले थे. सपा को तब 22.5 और कांग्रेस को 7.5 फीसदी वोट मिले थे. ऐसा तब था जब सूबे में सपा की सरकार थी.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरे. तब बसपा को 19.4 फीसदी वोट शेयर के साथ 10, सपा को 18.1 फीसदी वोट शेयर के साथ पांच सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस का वोट शेयर गिरकर 6.4 फीसदी पहुंच गया था.

बसपा प्रमुख मायावती (फाइल फोटोः पीटीआई)

विधानसभा चुनाव की बात करें तो 2017 के यूपी चुनाव में सपा 22 फीसदी वोट शेयर के साथ 47 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं, बसपा को सीटें भले ही 19 थीं लेकिन वोट शेयर के मामले में पार्टी सपा से आगे थी. बसपा का वोट शेयर 22.4 फीसदी था.

साल 2022 के यूपी चुनाव में बसपा का प्रदर्शन बहुत खराब रहा था. बसपा एक सीट ही जीत सकी थी लेकिन तब भी पार्टी का वोट शेयर 13 फीसदी रहा था. बसपा का स्थिर वोटबैंक भी एक प्रमुख वजह है जिसके कारण कांग्रेस मायावती की पार्टी को गठबंधन में लाने के पक्ष में है.

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सपा और आरएलडी खिलाफ क्यों

कांग्रेस की कोशिशों पर सपा और आरएलडी ने ब्रेक लगा दिया है. अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि बसपा के गठबंधन में आने से आखिर सपा-आरएलडी का क्या नुकसान है जो ये मायावती की पार्टी को साथ लेने के खिलाफ हैं? इसकी जड़ में सीटों का मसला और 2019 के चुनाव में गठबंधन का अनुभव बताया जा रहा है. 2019 के चुनाव में सपा-बसपा साथ लड़े तो लेकिन शर्तें मायावती की ही चली थी. बसपा ने 38 और सपा ने 37 सीटों पर चुनाव लड़ा था. जयंत चौधरी की पार्टी के हिस्से तीन सीटें आई थीं जबकि अमेठी और रायबरेली से गठबंधन ने उम्मीदवार नहीं उतारे थे.

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कहा तो ये भी जाता है कि अखिलेश यादव ने आरएलडी के लिए अपने कोटे की तीन सीटें छोड़ी थीं. 2014 में खाता तक नहीं खोल पाई बसपा गठबंधन के बाद 10 सीटें जीत गई और सपा पांच सीटों पर सिमट गई थी. हालांकि, वोटो शेयर दोनों ही पार्टियों के गिरे. बसपा का वोट शेयर 2014 के 19.8 फीसदी से गिरकर 19.4 फीसदी पर आ गया. वहीं, सपा का वोट शेयर 2014 के 22.5 फीसदी से 2019 में 18.1 फीसदी पर आ गया.

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इंडिया गठबंधन की दिल्ली बैठक में बसपा को लेकर हुई थी चर्चा

बात बस लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन या आरएलडी के लिए बसपा के सीट नहीं छोड़ने तक ही सीमित नहीं है. मायावती ने चुनाव नतीजों के बाद सपा के खिलाफ जिस तरह से हमला बोला था, वोट ट्रांसफर नहीं होने का आरोप लगाया था, उसकी टीस अखिलेश के दिल में कहीं न कहीं अब भी है. दूसरी तरफ, मायावती के तेवर हाल के दिनों में कुछ नरम पड़े हैं. मायावती ने इंडिया गठबंधन की बैठक में बसपा के जिक्र को लेकर नाराजगी जताते हुए सपा को नसीहत दी तो साथ ही ये संदेश भी दे दिया- भविष्य में न जाने कब किसे किसकी जरूरत पड़ जाए. 

इंडिया गठबंधन में ऊहापोह क्यों

लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटों पर सीधा मुकाबला देखने को मिलता है या त्रिकोणीय, इसका जवाब तो वक्त देगा लेकिन फिलहाल बसपा की एंट्री के मुद्दे पर कांग्रेस और सपा-आरएलडी की दो राय जरूर सामने आ चुकी है. अब एक तरफ एक सीट पर एक उम्मीदवार की परिकल्पना को साकार रूप देने की सोच है तो दूसरी तरफ सपा-आरएलडी की अपनी चिंताएं.

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सपा की चिंता यह भी है कि बसपा अगर गठबंधन के सहारे मजबूत मौजूदगी दर्ज कराने में सफल हो जाती है तो यूपी में उसकी 'पीडीए' पॉलिटिक्स के लिए यह ठीक नहीं होगा. ऐसे में देखना होगा कि इंडिया गठबंधन इस ऊहापोह वाली स्थिति से कैसे निकलता है. मायावती की पार्टी के लिए एंट्री गेट खुलेगा या एंट्री से पहले ही एग्जिट द्वार?

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