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43 साल बाद मुरादाबाद दंगे की सच्चाई आई सामने, योगी सरकार ने सदन में पेश की रिपोर्ट

मुरादाबाद में साल 1980 में हुए दंगे के 43 साल बाद योगी सरकार ने जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया. रिपोर्ट से पता चला है कि इस दंगे का मुख्य कारण दो मुस्लिम नेताओं की आपसी लड़ाई थी. दंगे में 80 से ज्यादा लोग मारे गए थे जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए थे.

मुरादाबाद में 80 से ज्यादा लोगों की मौत मुरादाबाद में 80 से ज्यादा लोगों की मौत
अभिषेक मिश्रा
  • लखनऊ,
  • 08 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 8:53 PM IST

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में 1980 में हुए दंगे के 43 साल बाद योगी सरकार ने विधानसभा के पटल पर इसकी रिपोर्ट पेश की जिसमें कई अहम खुलासे हुए हैं. इस दंगे में 83 लोग मारे गए थे जबकि 112 लोग घायल हुए थे. घटना की जांच के लिए एकल सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था. अब इसी की रिपोर्ट में दंगे को लेकर चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है.

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रिपोर्ट में बताया गया है कि मुस्लिम लीग के दो नेताओं के राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की वजह से यह दंगा हुआ था. मुस्लिम समुदाय में नेता को लेकर उस वक्त चल रही खींचतान दंगे का मुख्य कारण था.

रिपोर्ट में सच्चाई आई सामने

रिपोर्ट के मुताबिक ईदगाह और अन्य स्थानों पर गड़बड़ी पैदा करने के लिए कोई भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी या हिंदू संगठन जिम्मेदार नहीं था. दंगों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) या भारतीय जनता पार्टी की भी कोई भूमिका नहीं थी. वहीं रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि आम मुसलमान भी ईदगाह पर उपद्रव करने के लिए जिम्मेदार नहीं थे.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि डॉ शमीम अहमद के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग और डॉक्टर हामिद हुसैन उर्फ डॉक्टर अज्जी के नेतृत्व वाले खाकसारों, उनके समर्थकों और भाड़े पर लगाए गए लोगों ने पूरी कारगुजारी को अंजाम दिया था. यह पूरा दंगा पूर्व नियोजित था. 

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रिपोर्ट के मुताबिक नमाजियों के बीच में सूअर धकेल दिए गए थे.  इसके बाद अफवाह फैलने पर क्रोधित मुसलमानों ने पुलिस चौकी और हिंदुओं पर अंधाधुंध हमला किया था. इसके परिणाम स्वरूप हिंदुओं ने भी बदला लिया जिस पर सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा था.

43 साल बाद सदन में क्यों पेश हुई रिपोर्ट

जांच के बाद आयोग की रिपोर्ट को दोनों सदनों (विधानसभा और विधान मंडल) में रखे जाने के लिए  मंत्रि परिषद के अनुमोदन के लिए 13.03.1986, 09.06.1987, 22.12.1987, 17.09.1988, 31.07.1989, 20.10.1990, 24.07.1992, 11.12.1992, 01.02.1994, 30.05.1995, 15.02.2000, 17.02.2002, 31.05.2004 और 09.08.2005 को राज्य के अलग-अलग मुख्यमंत्रियों से सहमति मांगी गई. हालांकि रिपोर्ट को प्रस्तुत किये जाने पर प्रदेश की सांप्रदायिक स्थिति, रिपोर्ट के प्रकाशन के प्रभाव आदि कारणों से उच्च स्तर पर रिपोर्ट को लंबित रखने का फैसला किया जाता रहा.

दंगे के वक्त थी यूपी में कांग्रेस की सरकार

जिस वक्त ये दंगा हुआ था उस वक्त यूपी में वीपी सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी. ये दंगा ईद के दिन शुरू हुआ था. जांच आयोग ने नवंबर 1983 में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी, लेकिन पहले की तमाम सरकारों ने कभी इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया.

देश-प्रदेश की जनता को सच्चाई जानने का हक: मौर्य

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वहीं इस रिपोर्ट को सदन में पेश किए जाने को लेकर यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि यह रिपोर्ट तो पेश होनी ही चाहिए, पहले की सरकारों ने इसे छिपा कर रखा था. मुरादाबाद दंगों की सच्चाई देश और प्रदेश की जनता को जानने का मौका मिलना ही चाहिए.

वहीं मुरादाबाद 1980 दंगे के एक पीड़ित परिवार ने रिपोर्ट सामने आने के बाद कहा कि  घर के 4 लोगों को उठा ले गए थे,आजतक लौटकर नहीं आए. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने इस रिपोर्ट पर चर्चा की ये जानकार अच्छा लगा. दंगे की सच्चाई सबके सामने आनी चाहिए.

 

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