
यूपी में संभल और बदायूं की जामा मस्जिद का विवाद अभी ठंडा भी नहीं हुआ कि मुजफ्फरनगर की एक मस्जिद विवाद ने भी हलचल मचा दी है. हालांकि इस मस्जिद में किसी मंदिर को तोड़कर बनाए जाने का मामला नहीं है बल्कि यह शत्रु संपत्ति को मस्जिद बनाकर कब्जा करने कोशिश का आरोप है.
शत्रु संपत्ति यानी वो जमीन है जिसे केंद्र सरकार ने 1968 में शत्रु संपत्ति इसलिए घोषित कर दिया क्योंकि यह लोग विभाजन के वक्त पाकिस्तान चले गए, लेकिन यह शत्रु संपत्ति कुछ खास है. दरअसल ये संपत्ति पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की थी. यूं तो लियाकत हरियाणा के हिसार के रहने वाले थे लेकिन उनके पिता की बड़ी संपत्ति मुजफ्फरनगर में भी थी. इसी में से एक मुजफ्फरनगर रेलवे स्टेशन के ठीक सामने बनी मस्जिद और उसके नीचे की चार दुकानें जो लियाकत अली खान की थी वो अब शत्रु संपत्ति घोषित की गई हैं.
शत्रु संपत्ति बताने के लिए आया था प्रार्थना पत्र
मुजफ्फरनगर के सिटी मजिस्ट्रेट विकास कश्यप ने आजतक को बताया कि मुजफ्फरनगर रेलवे स्टेशन के सामने 930 खसरा नंबर जो की आठ बिसवा जमीन थी जिस पर एक मस्जिद और चार दुकानें बनी हैं. उसे शत्रु संपत्ति बताने का प्रार्थना पत्र आया था, जिसकी जांच कराई गई और दिल्ली में शत्रु संपत्ति अधिकरण को इसकी रिपोर्ट भेजी गई. इसके बाद दिल्ली के शत्रु संपत्ति अधिकरण की टीम आई उसने जांच की. उसने दोनों पक्षों को सुना और यह पाया कि यह जमीन शत्रु संपत्ति है इसलिए इसे अब शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया है.
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मुस्लिम पक्ष इसे वक़्फ़ की जमीन बता रहा है लेकिन जांच में यह साफ हो चुका है कि यह शत्रु संपत्ति है इसलिए अब आगे की कानूनी कार्रवाई की जाएगी. दरअसल लियाकत अली खान उनके परिवार के पाकिस्तान पलायन कर जाने की वजह से यह जमीन शत्रु संपत्ति मानी गई.
क्यों उठा मुद्दा
करीब डेढ़ साल पहले मुजफ्फरनगर की एक संस्था हिंदू सनातन संगठन के संयोजक संजय अरोड़ा ने इस जमीन को लेकर
एक प्रार्थना पत्र प्रशासन को दिया था जिसमें यह दावा किया कि यह जमीन पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की है जिस पर अवैध तरीके से जमीन मस्जिद और दुकानें बनाई गई हैं इस शत्रु संपत्ति घोषित किया जाए.
इसके बाद इस जमीन की जांच हुई और इस मस्जिद के एक दुकान के मालिक ने इस वक़्फ़ की संपत्ति बताते हुए शत्रु संपत्ति होने को नाकारा. उसने यह दलील देते हुए कहा कि 40 के दशक में ही लियाकत अली खान के पिता ने इसे वक़्फ़ को दान कर दिया था और इससे जुड़े वक्त के कागजात भी जमा किए. जांच में पाया यह गया कि यह वक्त की संपत्ति नहीं है बल्कि लियाकत अली खान की ही संपत्ति है.
क्या है इस जमीन का इतिहास
शत्रु संपत्ति अधिकरण की जांच में पता चला कि 1947 में इस जमीन का मालिकाना हक लियाकत अली खान के पास था जिसे बंटवारे के बाद से अभी तक अवैध तरीके से कब्जा करके रखा गया था.
शत्रु संपत्ति अभिकरण ने जब जांच की तो पता चला कि 1918 में लियाकत अली खान के पिता रुस्तम अली खान के नाम ये जमीन हुई थी. रुस्तम अली खान की पत्नी और लियाकत अली खान की मां महमूद बेगम सहारनपुर उत्तर प्रदेश के नवाब काहिर अली खान की बेटी थी, और तब यह मुजफ्फरनगर सहारनपुर जनपद के अधीन था.
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संजय अरोड़ा ने अपनी शिकायत में यह बात लिखी कि हाल में ही इस जमीन पर होटल बनाया गया है जिसे मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण की अनुमति भी नहीं ली गई है लेकिन इसे मस्जिद और दुकान में तब्दील कर दिया गया है.
जबकि इसी मस्जिद में दुकान चलाने वाले मोहम्मद अतहर जो मस्जिद का पक्ष रख रहे है उनका दावा है कि ये ज़मीन 1946 में ही वक़्फ़ को दे दी गई थी इसलिए शत्रु संपत्ति का दावा गलत है. अब जबकि ये शत्रु संपत्ति घोषित हो चुकी है ऐसे में प्रशासन इसे अधिग्रहण के लिए कानूनी कार्रवाई तेज करने जा रहा है.