
यूपी में कांवड़ यात्रा से पहले मुजफ्फरनगर जिले में खाने-पीने और फल की दुकानें लगाने वाले दुकानदारों ने अपने-अपने नाम लिखकर टांग लिए हैं. दरअसल, पुलिस ने कांवड़ रूट पर पड़ने वाले सभी दुकानदारों को निर्देश दिया था कि वो अपनी-अपनी दुकानों पर प्रोपराइटर या फिर काम करने वालों का नाम जरूर लिखें, जिससे कांवड़ियों में किसी प्रकार का कोई कंफ्यूजन न हो. अब इसको लेकर सियासत तेज हो गई है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव समेत तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने इसपर आपत्ति जताई है. खुद बीजेपी की सहयोगी जेडीयू भी इस फैसले से इत्तेफाक नहीं रखती है. जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि जिला प्रशासन कांवड़ यात्रा में दुकान पर नाम लिखने के नियम की समीक्षा करें और इसे अन्य जिलों में लागू न करें.
केसी त्यागी का कहना है कि पता नहीं किन परिस्थितियों में मुजफ्फरनगर प्रशासन ने यह निर्देश जारी किया, लेकिन इन मुस्लिम बहुल इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा का कोई इतिहास नहीं है. इसलिए प्रशासन अपने आदेश की समीक्षा करे और इसे यूपी के अन्य जिलों में लागू न करे.
वहीं, दारूल उलूम के प्रवक्ता मौलाना सुफियान निजामी ने कहा कि धर्म के नाम पर आपत्ति करना बिल्कुल गलत है, क्या दुकान किस धर्म के आदमी की है यह बताना जरूरी है?
निजामी के मुताबिक, कोई भी मजहब दूसरे मजहब के साथ में भेदभाव नहीं करता तो ऐसे में यह फरमान गलत है. कांवड़ यात्रियों की व्यवस्था मुसलमान भी करता है और जब ताजिए निकलते हैं तो हिंदू भाई भी मदद करते हैं. मामले में राजनीतिकरण से ज्यादा इस बात की जरूरत है कि मजहब के नाम पर बंटवारा न हो और भाईचारा कायम रहे.
गौरतलब है कि मुजफ्फरनगर में कांवड़ यात्रा को देखते हुए पुलिस ने सड़क किनारे फलों या खाने-पीने की दुकान लगाने वालों को अपना-अपना नाम टांगने का आदेश दिया था. जिला पुलिस के इस आदेश पर सपा मुखिया अखिलेश यादव भड़क गए हैं. उन्होंने कहा कि अगर नाम से ही पहचानना है तो जिसका नाम गुड्डू, मुन्ना, छोटू या फत्ते है तो उसके नाम से क्या पता चलेगा?
अखिलेश ने आगे कहा कि इस मामले में कोर्ट को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए. ऐसे आदेश सामाजिक अपराध हैं, जो सौहार्द के शांतिपूर्ण वातावरण को बिगाड़ना चाहते हैं.
वहीं, मुजफ्फरनगर पुलिस के इस निर्देश को लेकर AIMIM चीफ और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी की प्रतिक्रिया भी आई है. उन्होंने 'X' पर लिखा, " उत्तर प्रदेश पुलिस के आदेश के अनुसार अब हर खाने वाली दुकान या ठेले के मालिक को अपना नाम बोर्ड पर लगाना होगा ताकि कोई कांवड़िया गलती से मुसलमान की दुकान से कुछ न खरीद ले. इसे दक्षिण अफ्रीका में अपारथाइड कहा जाता था और हिटलर की जर्मनी में इसका नाम 'Judenboycott' था."