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'नागा देश के दुश्मनों से लड़ने को तैयार, भाला-बंदूक चलाना आता है', महाकुंभ में 'चश्मे वाले बाबा' ने भरी हुंकार

प्रयागराज महाकुंभ में बाबा, साधु-संतों के अलग-अलग रूप देखने को मिल रहे हैं. इसी क्रम में 'चश्मे वाले नागा बाबा' सुर्खियों में हैं. देश रक्षा पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय फौज से पहले नागा साधु दुश्मनों से लड़ने के लिए तैयार हैं. आर्मी वाले हमारे बच्चे हैं, बच्चे बाद में लड़ेंगे पहले हम गार्जियन लोग लड़ेंगे.

प्रयागराज महाकुंभ में आए 'चश्मे वाले नागा बाबा' प्रयागराज महाकुंभ में आए 'चश्मे वाले नागा बाबा'
समर्थ श्रीवास्तव
  • प्रयागराज ,
  • 16 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 2:53 PM IST

प्रयागराज महाकुंभ में बाबा, साधु-संतों के अलग-अलग रूप देखने को मिल रहे हैं. इसी क्रम में 'चश्मे वाले नागा बाबा' सुर्खियों में हैं. जब उनसे चश्मा लगाने का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि लगातार हवन करते हैं, जिससे धुआं उठता रहता है, इसलिए आंखों को बचाने के लिए चश्मा लगाते है. 

वहीं, विभूति लगाने के सवाल पर 'चश्मे वाले नागा बाबा' ने कहा कि यह हमारा इतिहास है, विभूति मंत्र की तरह है, चादर का काम करती है, शक्तिवर्धक बन जाती है, महाकुंभ सनातनी पर्व है. 

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वहीं, देश रक्षा पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय फौज से पहले नागा साधु दुश्मनों से लड़ने के लिए तैयार हैं. आर्मी वाले हमारे बच्चे हैं, बच्चे बाद में लड़ेंगे पहले हम गार्जियन लोग लड़ेंगे. हमें तलवार चलाना, त्रिशूल चलाना, भाला चलाना, बंदूक चलाना सब आता है. हम धर्म के सिपाही हैं, सनातन के सिपाही है. जब भी जरूरत पड़ेगी 'सनातनी फौज' देश के लिए तैयार रहेगी. 

नागाओं के सिद्धांतों पर बोलते हुए कहा कि किसी भी प्रकार से किसी का अहित नहीं करना है, वासना से दूर रहना है, सत्य और धर्म रखना है, दिल को दया का खजाना बनाना है. नागा नग्न है क्योंकि उसमें कोई कामना और वासना नहीं है. नागा भोलेनाथ का स्वरूप है, उनके कण हैं, साक्षात शिव का स्वरूप हैं. 

आपको बता दें कि इस बार महाकुंभ 13 जनवरी से प्रारंभ होगा और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन इसका समापन होगा. कहते हैं कि महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाने से इंसान के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. महाकुंभ केवल एक धार्मिक मेला नहीं है, बल्कि लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक भी है. यह हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को सहेजने और धर्म को समाज से जोड़कर रखने का महापर्व भी है.

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