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शिवपाल या राजभर... पूर्वांचल का 'चाणक्य' कौन? घोसी उपचुनाव नतीजे के बाद चर्चा तेज

घोसी उपचुनाव महज दो दल, दो उम्मीदवारों के बीच की लड़ाई नहीं थी. ये दो गठबंधनों, गठबंधनों के समीकरणों, नेताओं और उनकी रणनीतियों का भी टेस्ट था. शिवपाल यादव और ओमप्रकाश राजभर, दोनों नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर थी. अब परिणाम आने के बाद ये चर्चा तेज हो गई है कि पूर्वांचल का सियासी चाणक्य कौन है?

ओमप्रकाश राजभर और शिवपाल यादव (फाइल फोटो) ओमप्रकाश राजभर और शिवपाल यादव (फाइल फोटो)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 11 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 2:33 PM IST

पूर्वांचल के मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पूरी ताकत लगा दी. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, डिप्टी सीएम बृजेश पाठक समेत तमाम बड़े नेताओं ने डेरा डाल दिया था. दारा सिंह चौहान के नामांकन के ठीक बाद बड़ी रैली कर बीजेपी ने ताकत दिखाई, एकजुटता दिखाई. खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अंतिम चरण में चुनावी रैली को संबोधित कर चुनावी माहौल पार्टी के पक्ष में करने की कोशिश की.

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घोसी के जातीय समीकरण भी बीजेपी के लिए मुफीद माने जा रहे थे. बीजेपी ने अलग-अलग जाति-वर्ग के मतदाताओं को साधने के लिए अलग-अलग चेहरों को जिम्मेदारी दी थी. चौहान बिरादरी को साधने के लिए खुद पार्टी के उम्मीदवार दारा सिंह चौहान थे तो राजभर मतदाताओं के लिए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर. अन्य पिछड़ा वर्ग के बीच डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने प्रचार किया तो सवर्ण और दलित मतदाताओं के बीच दूसरे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने. भूमिहार वोट साधने के लिए घोसी के ही निवासी बिजली मंत्री एके शर्मा को भी मैदान में उतार दिया गया. लेकिन सभी दांव धरे के धरे रह गए.

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उपचुनाव के नतीजे आए तो विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) के उम्मीदवार सुधाकर सिंह ने चुनावी अखाड़े में दारा को 42759 वोट के बड़े अंतर से पटखनी दे दी. घोसी उपचुनाव में सपा और सुधाकर बाजीगर बनकर उभरे तो इसे लेकर भी बहस छिड़ गई कि ये हार दारा की है या बीजेपी की? घोसी उपचुनाव नतीजों के बाद ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान के योगी कैबिनेट में शामिल होने की संभावनाएं कितनी हैं? इस बहस के बीच ये चर्चा भी तेज हो गई है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की सियासत का चाणक्य कौन है?

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पूर्वांचल का चाणक्य कौन?

घोसी उपचुनाव महज दो दलों या उम्मीदवारों के बीच का चुनाव नहीं था. ये चुनाव था बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस यानी इंडिया गठबंधन का. ये चुनाव था सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले और बीजेपी के पिछड़ा-दलित और पसमांदा समीकरण सेट करने की कवायद का और ये टेस्ट था ओमप्रकाश राजभर की राजभर वोट ट्रांसफर करा पाने की काबिलियत का भी.

घोसी उपचुनाव के परिणाम ने ओमप्रकाश राजभर का एनडीए में भविष्य क्या होगा? योगी कैबिनेट में जगह मिलेगी भी या नहीं? कैबिनेट में जगह मिल भी गई तो कद का क्या होगा? ऐसे कई सवालों को जन्म दे दिया है. घोसी की लड़ाई को राजभर बनाम शिवपाल के रूप में भी देखा जा रहा था. बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व और बड़े नेता इस उपचुनाव से दूर नजर आए. ऐसे में अब परिणाम सामने आने के बाद ये चर्चा भी तेज हो गई है कि सूबे के नेताओं में पूर्वांचल का चुनावी चाणक्य कौन?

वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर श्रीराम त्रिपाठी ने कहा कि घोसी उपचुनाव के परिणाम से सपा में शिवपाल मजबूत हुए हैं तो वहीं राजभर एनडीए में कमजोर हुए हैं. राजभर अब न तो मंत्री पद के लिए बारगेन करने की स्थिति में रह गए हैं और ना ही लोकसभा चुनाव में सुभासपा के लिए अधिक सीटों के लिए ही. यही वजह है कि वे अब मंत्री बनने का दावा कर ऐसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि जनता ही उन्हें मंत्री पद पर देखना चाहती है, ऐसा संदेश जाए. दूसरी तरफ, घोसी उपचुनाव के बाद शिवपाल पूर्वांचल की सियासत में सपा के नए रणनीतिकार बनकर उभरे हैं.

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घोसी उपचुनाव में कैसे भारी पड़े शिवपाल

घोसी उपचुनाव में सपा और बीजेपी के बीच की सीधी फाइट में साइकिल दौड़ गई तो इसमें शिवपाल की क्या भूमिका रही? इस पर पूर्वांचल के वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर विनय कुमार ने कहा कि शिवपाल की इमेज कार्यकर्ताओं से जुड़े रहने वाले, जुझारू नेता की है. शिवपाल ने घोसी में कैंप कर रणनीति से लेकर प्रचार तक की रणनीति बनाई, उसे धरातल पर उतारा. तुरंत फैसले लिए और बीजेपी के हर दांव की तत्काल काट की.

उन्होंने कहा कि शिवपाल की रणनीति का केंद्र दारा सिंह चौहान थे ही, ओमप्रकाश राजभर की छवि भी राजभर मतदाताओं के बीच अवसरवादी नेता के रूप में गढ़ने में सपा सफल रही. बसपा का उम्मीदवार नहीं होने का लाभ भी सपा को हुआ लेकिन इस जीत में जमीनी हकीकत के आधार पर शिवपाल की गढ़ी रणनीति का भी बड़ा रोल रहा. लोकसभा चुनाव करीब है. आम चुनाव से पहले लिटमस टेस्ट माने जा रहे इस उपचुनाव की जीत को न सिर्फ सपा, बल्कि शिवपाल के सियासी करियर के लिए भी संजीवनी साबित हो सकती है.

घोसी उपचुनाव ने तैयार की आजमगढ़ की पिच

लोकसभा चुनाव 2024 में शिवपाल को आजमगढ़ से उम्मीदवार बनाने की मांग सपा में उठती रही है. घोसी उपचुनाव के नतीजों में जानकार आजमगढ़ लोकसभा सीट का भविष्य देख रहे हैं. डॉक्टर श्रीराम त्रिपाठी ने कहा कि शिवपाल ये संदेश देने में सफल रहे हैं कि वे पूर्वांचल की सियासी नब्ज पहचानते हैं. घोसी की जीत के बाद आजमगढ़ सीट से उनकी दावेदारी और मजबूत हुई है.

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शिवपाल के आजमगढ़ सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा जब जोरों पर थी, सपा के राष्ट्रीय सचिव और प्रवक्ता राजीव राय ने कहा था कि जब कोई बड़ा नेता मैदान में होता है तो उसका कार्यकर्ताओं के मनोबल पर सकारात्मक असर पड़ता है. इसका असर नतीजों पर भी नजर आता है. घोसी उपचुनाव के नतीजों में झलका भी. अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या एक उपचुनाव के नतीजे को पूरे पूर्वांचल का राजनीतिक मिजाज और राजभर को दगा कारतूस मान लेना जल्दबाजी नहीं?

ओमप्रकाश राजभर सर्वे एजेंसियों की रिपोर्ट्स के आधार पर ये दावा करते नहीं थक रहे कि 80 से 90 फीसदी राजभर मतदाताओं ने घोसी उपचुनाव में बीजेपी को वोट किया है. उन्होंने ये तक कह दिया कि हमारा गठबंधन 2024 चुनाव के लिए था, उपचुनाव के लिए नहीं. जानकार भी ये कह रहे हैं कि घोसी उपचुनाव में दारा की दलबदलू छवि के साथ कई लोकल फैक्टर्स भी हावी थे. सपा पीडीए के साथ सवर्णों को भी एक फ्रेम में सफल रही लेकिन पार्टी के सामने अब इसे लोकसभा चुनाव में भी दोहराने की चुनौती होगी.

 

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