
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में गोरखपुर जाएंगे. यहां वे गीता प्रेस के शताब्दी समारोह में शामिल होंगे. समारोह का समापन इसी महीने के अंत में होगा. इस अवसर पर प्रधानमंत्री गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित ‘शिव महापुराण’ के विशिष्ट अंक का विमोचन भी करेंगे. 4 जून 2022 को तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने गीता प्रेस शताब्दी वर्ष का शुभारम्भ किया था.
गीता प्रेस से मिली जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समारोह में आने की स्वीकृति दे दी है. 30 मई की तारीख पर समय देने का निवेदन गीता प्रेस की ओर से किया गया है. PMO की तरफ़ से तारीख अभी फ़ाइनल नहीं की गई है. हालांकि निमंत्रण स्वीकार कर लिया है.
धार्मिक और आध्यात्मिक पुस्तकों के सबसे बड़े प्रकाशक गीता प्रेस, गोरखपुर की स्थापना 1923 में की गई थी. अब तक गीता प्रेस 92 करोड़ से ज़्यादा धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन कर चुका है. रामचरितमानस को घर-घर में पहुंचाने का श्रेय भी गीता प्रेस को है, जिसकी अब तक सबसे ज़्यादा प्रतियां छापी गई हैं.
गीता प्रेस के शुरू होने की कहानी और इसका अब तक का सफर असल में बड़ा ही दिलचस्प है. बात 1920 के दशक की है. कलकत्ता (अब कोलकाता) के एक मारवाड़ी सेठ जयदयाल गोयंदका रोज गीता पढ़ते थे. अठारहवें अध्याय में गीता सार के रूप में लिखी यह बात उनके दिल को छू गई कि -जो इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझको प्राप्त होगा.” सो वे उसकी व्याख्या भी करने लगे. बाद में लोगों के कहने पर अपनी व्याख्या एक प्रेस से छपवाई लेकिन उसमें भयंकर भूलें देखकर वे दुखी हो गए. यहीं आया खुद के प्रेस का ख्याल. गोरखपुर के अपने एक श्रद्धालु घनश्यामदास जालान के सुझाव पर उसी शहर में दस रु. किराए में एक मकान में शुरू हो गया गीता प्रेस.
आज गोरखपुर शहर के हिंदी बाजार में इसकी इमारत में सहेजकर रखी आगंतुक पुस्तिका में धर्म, समाज, शासन, प्रशासन, सेना और यहां तक कि न्यायपालिका की सैकड़ों शख्सियतों की टिप्पणियां पढ़कर तो यही लगता है कि यह प्रेस एक तीर्थस्थल का दर्जा पा चुका है. फरवरी 2007 में यहां आए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश दोरैस्वामी राजू ने लिखा कि “आज गीता प्रेस आना मेरे लिए नितांत सौभाग्य की बात है... यहां के लोग आध्यात्मिकता की बुनियादी सेवा कर रहे हैं और भारतीय विरासत की कुछ इस तरह से हिफाजत कर रहे हैं, जिसकी दुनिया के इतिहास में मिसाल मिलनी मुश्किल है.”