
यूपी के प्रयागराज (Prayagraj) में संपन्न हुए आस्था के महापर्व महाकुंभ (Maha Kumbh) ने कई गरीब परिवारों की आर्थिक दशा भी सुधार दी. संगम नगरी में 45 दिनों तक चले इस भव्य आयोजन में 67 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई. ये महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन तक सीमित नहीं रहा, यह हजारों लोगों के लिए रोजगार और आय का जरिया भी बना.
इन्हीं में से कुछ लोग थे ट्रॉली मैन... झारखंड से आए वे मेहनतकश लोग, जो आम दिनों में कबाड़ी का काम करते थे, लेकिन कुंभ के दौरान उन्होंने अपनी ट्रॉलियों को श्रद्धालुओं के सफर का जरिया बना दिया. ये ट्रॉली मैन घंटों तक श्रद्धालुओं को कुंभ क्षेत्र में इधर-उधर ले जाते और बदले में मेहनताना पाते.
ट्रॉली मैन बताते हैं कि हमारे पास अपनी ट्रॉलियां थीं, जिनसे कबाड़ी का काम करते थे, लेकिन कुंभ के दौरान हमने सोचा कि इन्हीं ट्रॉलियों का इस्तेमाल श्रद्धालुओं को सुविधा देने के लिए किया जाए. और यह हमारे लिए एक बड़ा अवसर बन गया.
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इन ट्रॉली मैन के मुताबिक, वे कुंभ के अंतिम 15 दिनों में रोजाना 2000-3000 रुपये तक कमा रहे थे. कभी-कभी यह कमाई 2500 रुपये तक पहुंच जाती थी. अब वे इतनी रकम इकट्ठा कर चुके हैं कि नई ट्रॉली खरीदने का सपना साकार कर सकते हैं. एक ट्रॉली मैन ने उत्साह से बताया, अगर हम पहले आ जाते, तो और ज्यादा पैसे कमा सकते थे, लेकिन जितना भी कमाया, वह हमारी उम्मीद से कहीं ज्यादा था. अब हमें चिंता नहीं कि आगे कबाड़ी का काम करने के लिए भटकना पड़ेगा. हमारे पास अब खुद का संसाधन है, जिसे हम आगे और बेहतर बना सकते हैं.
गरीबों के लिए वरदान साबित हुआ कुंभ
महाकुंभ के दौरान सिर्फ ट्रॉली मैन ही नहीं, बल्कि छोटे चायवाले, सड़क किनारे दुकानदार, फूल और प्रसाद बेचने वाले भी इस आयोजन से आर्थिक रूप से लाभान्वित हुए. एक ट्रॉली मैन ने बताया कि इस कुंभ ने हमें यह सिखाया कि मेहनत और सही मौके का फायदा उठाया जाए तो कोई भी व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति सुधार सकता है.
हालांकि वे यह भी कहते हैं कि अगला कुंभ कब आएगा और क्या वे फिर से इतनी कमाई कर पाएंगे, यह निश्चित नहीं है, लेकिन फिलहाल वे इस अवसर के लिए कृतज्ञ हैं. कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि इसने कई लोगों की जिंदगी संवारने का काम किया. यह उन गरीब तबकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं था, जिनकी मेहनत को इस अवसर ने नई पहचान और नई राह दी.