
Uttar Pradesh News: 20 अगस्त, 2024 की देर शाम रायबरेली में कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद पुलिस विभाग की किरकिरी शुरू हो गई. लोग पुलिस के लापरवाह अफसरों को खरी-खोटी सुनाने लगे. दरअसल, पूरा मामला गदागंज थाने का है जहां 'मित्र पुलिस' का दावा करने वाली गदागंज पुलिस के चेहरे से एक नकाब हट गया, ये नकाब भी किसी गैर ने नहीं हटाया बल्कि उसी थाने के पड़ोसी पुलिस स्टेशन में तैनात अफसर ने हटाया. अब आइए सिलसिलेवार ढंग से जानते हैं पूरा मामला...
आपको बता दें कि रायबरेली जिले के गदागंज थाने के बगल में ही रहने वाले एक व्यापारी जलालपुर धही चौराहे पर अपनी 'चौरसिया ग्राहक सेवा केंद्र' नाम से एक दुकान चलाते हैं. रात के करीब 8:00 बजे वो अपनी दुकान बंद करके घर की तरफ जा रहे थे तभी रास्ते में उनके साथ कुछ लुटेरों ने लूट की वारदात कर दी. बदमाश उनकी गाड़ी भी लूट ले गए. किसी तरह दुकान के मालिक रवि चौरसिया वापस चौराहे पहुंचे और उन्होंने पुलिस को इसकी सूचना दी. इसके बाद पुलिस ने पूरे मामले की जांच शुरू की.
लेकिन इस मामले ने अलग रंग तब ले लिया जब तीसरे दिन गौरव उर्फ दीपू अपने ग्राम प्रधान के साथ 7 लाख रुपयों से भरा बैग लेकर थाने पहुंच गया. उसके साथ पहुंचे व्यापारी नेताओं ने थाना अध्यक्ष से बात की तो उन्होंने पैसे को सुपुर्दगी में लेते हुए दीपू को ही जेल भेज दिया.
व्यापारियों ने हंगामा किया तो जांच शुरू हुई
इस घटना को लेकर चौराहे पर व्यापारी नेताओं ने हंगामा काटा तो पूरी घटना की जांच बगल के थाने डलमऊ के एसएचओ ने फिर से शुरू की. जिसमें उन्होंने गदागंज थानेदार की जांच को एक तरह से खारिज करते हुए आरोपी युवक दीपू को बरी कर दिया. लेकिन इन सबमें दीपू हफ्ते भर से ज्यादा समय तक जेल में रहा.
डलमऊ थानेदार की जांच रिपोर्ट के बाद मामले ने जब तूल पकड़ा तो जिले की पुलिस ने पैरोकारी करते हुए कोर्ट में रिपोर्ट सबमिट की, जिसकी वजह से दीपू को 7 अगस्त को जेल से रिहा कर दिया गया. लेकिन तब तक इस केस ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में नया रंग ले लिया था और प्रियंका गांधी से लेकर अखिलेश यादव तक ने पुलिस और सरकार को निशाने पर ले लिया.
पीड़ित ने क्या बताया?
इस पूरे मामले की तह तक पहुंचाने के लिए 'आजतक' की टीम भी गदागंज थाने पहुंची, जहां उसे भी कई सवालों का सामना करना पड़ा और कई के जवाब अभी भी मिलना बाकी है. पीड़ित दीपू ने बताया कि 20 अगस्त को जब मैं पानी लेने जा रहा था तभी मुझको रास्ते में एक बैग पड़ा मिला था. उस वक्त हम चार-पांच लोग थे. मैं, मेरा भाई, सौरभ, राहुल, मुकुल और रजत आदि थे. बैग लेकर हम प्रधान जी के पास गए, फिर उनके जरिए बैग को थाने में जमा करवाया.
बकौल दीपू- 20 अगस्त को हमें बैग मिला था और 23 अगस्त को हम उसे थाने ले गए. डर की वजह से बैग तीन दिन अपने पास रखे रहे. लेकिन पुलिस ने पूछताछ के बाद थाने में ही बैठा लिया. दो दिन तक थाने में बैठाए रखा. बाकी लोगों को तो छोड़ दिया लेकिन कागजी कार्यवाही के बाद मुझे अकेले ही जेल भेज दिया. अब जांच के बाद छूटे हैं. जेल से बाहर निकालने में सहयोग करने वाले सभी लोगों का शुक्रिया.
वहीं, रवि शंकर चौरसिया (जिसके साथ लूट हुई थी) ने कहा कि उस दिन हम शॉप बंद करके घर जा रहे थे. जैसे ही अपने मोड़ पर पहुंचे वहां पर मास्क लगाए दो अनजान लोग खड़े थे. उन्होंने मेरी बाइक रोक ली और हाथापाई करने लगे. बैग छीनने लगे. आखिर में बैग पर झपट्टा मारकर बाइक लेकर भाग गए. इसके बाद 112 पर कॉल किया. घटना के तीन दिन बाद में पता चला कि मेरा पैसा मिल गया है. इस बाबत गदागंज SO ने थाने पर बुलाया.
थाने में रात के समय दीपू को दिखाया गया और हमसे पूछा गया कि क्या वही शख्स है जिसने लूट की थी? लेकिन मैं उसे पहचान नहीं पाया. इसके बाद पुलिस ने मेरा पैसा लौटाया. लेकिन उसमें 1 लाख कम था. लूट का माल 8 लाख था. बाइक भी अभी नहीं मिली है. बाद में पता चला कि दीपू को ही जेल भेज दिया गया है.
उधर, इसके बाबत एएसपी संजीव सिन्हा ने कहा कि 20 अगस्त को एक मुकदमा दर्ज हुआ था. इस घटना के घटित होने के तीन बाद दीपू ने पैसों से भरा पुलिस को सौंपा था. इसलिए मामला संदिग्ध लगा. शुरुआती तथ्यों के आधार पर उसपर कार्रवाई की गई थी. लेकिन जांच के बाद उसे रिहा कर दिया गया.
किसी निर्दोष के विरुद्ध कार्यवाही नहीं की जाएगी: पुलिस
रायबरेली पुलिस ने सोशल मीडिया के माध्यम से बताया किप्रकरण में वादी की तहरीर पर मुकदमा पंजीकृत किया गया था. घटना घटित होने के पश्चात तत्काल दीपू द्वारा पुलिस को बैग के संबंध में कोई सूचना नहीं दी गई थी, जिसमें उसकी भूमिका संदिग्ध पाई गई थी. ऐसे में तथ्यों के आधार पर अग्रिम कार्यवाही की गई थी. नव नियुक्त विवेचक द्वारा अन्य तथ्यों व परिस्थितिजनक साक्ष्य का समावेश करते हुए विवेचना की गई और उनकी संलिप्तता नहीं पाई गई जिसके क्रम में पुलिस ने इन्हें रिहा कराया है. वर्तमान में विवेचना प्रचलित है. किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा और किसी भी निर्दोष के विरुद्ध कार्यवाही नहीं की जाएगी.
उठ रहे ये सवाल
एक सवाल तो ये है कि डर ही सही लेकिन तीन दिन तक किसी के पैसे को अपने पास रखना कितना उचित था? वो भी तब जब दूसरे दिन ही आपको पैसे के असली मालिक मलिक का पता चल चुका था.
दूसरा सवाल ये है कि आखिर विवेचक को इतनी क्या जल्दी थी कि जब लूट की बाइक और लुटेरों का पता नहीं चला तो आनन-फानन में दीपू को क्लीन चिट क्यों दे दी. और इससे पहले उसे जेल ही क्यों भेजा गया.
पहले के जांचकर्ता ने दीपू के साथ उठाए गए अन्य पांच लोगों को क्यों छोड़ दिया था? क्यों दीपू को ही जेल भेजा था? ये कई सवाल हैं जिनके जवाब जो इस केस में मिलना बाकी हैं.