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क्या राजा भैया यूपी में फिर करेंगे 2018 वाला 'खेला'? SP के साथ-साथ बीजेपी से भी मेल-मिलाप

यूपी में राज्यसभा की एक सीट पर फंसे पेच के बीच सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने राजा भैया से मुलाकात की. नरेश उत्तम के बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी भी राजा भैया से मिलने पहुंच गए. दोनों दलों के प्रदेश अध्यक्षों से राजा भैया के मेल-मिलाप से अब ये सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या वह यूपी में फिर 2018 वाला 'खेला' करेंगे?

कुंडा विधानसीट से विधायक राजा भैया (फ़ाइल फोटो) कुंडा विधानसीट से विधायक राजा भैया (फ़ाइल फोटो)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 24 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 7:40 AM IST

उत्तर प्रदेश की 10 राज्यसभा सीटों के लिए 27 फरवरी को मतदान होना है. 10 सीटों के लिए 11 उम्मीदवार मैदान में हैं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से आठ और समाजवादी पार्टी (सपा) से तीन नेता ताल ठोक रहे हैं. 403 सदस्यों वाली यूपी विधानसभा में इस समय 399 विधायक हैं और संख्याबल के लिहाज से देखें तो बीजेपी के सात उम्मीदवारों की जीत तय है लेकिन पार्टी के आठवां उम्मीदवार उतार देने से सपा की तीसरी सीट फंस गई है.

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नंबरगेम में फंसी एक सीट के लिए सपा से लेकर बीजेपी तक एक्टिव हैं. दोनों ही दल अपने-अपने स्तर से संख्याबल जुटाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं और ऐसे में दो विधायकों वाली पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक (जेडीएल) और एक विधायक वाली बसपा की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है. सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने जेडीएल प्रमुख रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया से उनके आवास पर पहुंचकर मुलाकात की. इसके अगले ही दिन यूपी बीजेपी के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी भी इसके अगले ही दिन राजा भैया से मिलने पहुंच गए.

सपा से बात, बीजेपी से भी मेल-मिलाप

बीजेपी ऐसी पार्टी नहीं है जो तस्वीर का आकलन किए बगैर, बिना किसी रणनीति के अतिरिक्त उम्मीदवार उतार दे. यूपी में भी बीजेपी सपा के कुनबे में पहले सेंध लगा चुकी है जब दारा सिंह चौहान ने विधायकी से इस्तीफा देकर सत्ताधारी दल का दामन थाम लिया था. ऐसे में सपा भी सतर्क है. अखिलेश की रणनीति अपने कुनबे को बचाए रखते हुए राजा भैया की पार्टी को भी अपने पाले में करने की है जिससे तीसरी सीट जीतने पर किसी तरह का कोई संशय न रहे.

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राजा भैया और अखिलेश यादव (फाइल फोटो)

सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने राजा भैया से उनके आवास पहुंचकर बातचीत की. सपा प्रदेश अध्यक्ष ने राजा भैया की अखिलेश यादव से बात भी कराई. इसके बाद राजा भैया ने यह कहा भी कि सपा हमारे लिए सबसे पहले आती है. हमने अपने सार्वजनिक जीवन के 20 साल दिए हैं. यह हमारे लिए कोई पार्टी नहीं है. लेकिन इसके अगले ही दिन यूपी बीजेपी के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी भी राजा भैया से मिलने पहुंच गए. सपा के साथ बातचीत के बीच राजा भैया से भूपेंद्र चौधरी की मुलाकात ने कई सवालों को जन्म दे दिया है.

सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या राजा भैया 2024 में भी 2018 के राज्यसभा चुनाव वाला 'खेला' करेंगे? बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की राजा भैया से मुलाकात के बाद सपा भी अलर्ट मोड में आ गई है. अब अखिलेश यादव ने खुलकर राजा भैया को साथ आने का न्योता दे दिया है.

2018 के राज्यसभा चुनाव में क्या हुआ था?

साल 2018 में इन्हीं 10 राज्यसभा सीटों का चुनाव था, जिनके लिए 27 फरवरी को वोट डाले जाने हैं. तब 2019 के चुनाव से पहले सपा और बसपा में गठबंधन के लिए बातचीत चल रही थी. आठ सीटों पर बीजेपी की जीत सुनिश्चित थी और आरएलडी और अन्य छोटे-छोटे दलों, निर्दलीय विधायक राजा भैया के समर्थन से दो सीटों पर नंबरगेम सपा-बसपा गठबंधन के पक्ष में नजर आ रहा था. सपा से तब भी एक सीट से जया बच्चन उम्मीदवार थीं और दूसरी सीट से बसपा के भीमराव अंबेडकर चुनाव लड़ रहे थे. सपा के समर्थन से भीमराव का उच्च सदन पहुंचना भी तय माना जा रहा था लेकिन बीजेपी ने नौवां उम्मीदवार उतार दिया.

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बीजेपी के इस दांव के बाद अलर्ट मोड में आए अखिलेश ने अपना समर्थन कर रहे विधायकों की बैठक बुला ली. बैठक में प्रतापगढ़ की कुंडा विधानसभा सीट से तब निर्दलीय विधायक रहे राजा भैया भी शामिल हुए. कहा जाता है कि तब राजा भैया ने अखिलेश यादव को समर्थन का आश्वासन भी दिया था लेकिन जब वोटिंग की बारी आई, उन्होंने बीजेपी के नौवें उम्मीदवार के पक्ष में वोट किया. वोटिंग से पहले अखिलेश की बैठक में पहुंचे राजा भैया ने वोट डालने के बाद सीएम योगी से मुलाकात की थी.

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राजा भैया के साथ ही बसपा, आरएलडी और निषाद पार्टी जैसे तब के गठबंधन सहयोगियों की क्रॉस वोटिंग का नतीजा यह हुआ कि सपा-बसपा गठबंधन अपने दूसरे उम्मीदवार के लिए प्रथम वरीयता के 37 वोट नहीं जुटा सका. बसपा के भीमराव को 33 वोट मिले और बीजेपी के नौवें उम्मीदवार अनिल अग्रवाल को 22. बात दूसरी वरीयता के वोट पर पहुंच गई और यहां बाजी बीजेपी के हाथ लगी. सपा-बसपा गठबंधन जो आसानी से दूसरी सीट जीतता नजर आ रहा था, वह राजा भैया और कुछ विधायकों की क्रॉस वोटिंग के कारण बीजेपी के हाथ आ गई.

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फिर वही राज्यसभा चुनाव और उलझा नंबरगेम

सपा को अपनी तीन सीटें जीतने के लिए 111 विधायकों के प्रथम वरीयता के वोट चाहिए. पार्टी के 108 विधायक हैं और कांग्रेस के दो. इंडिया गठबंधन में शामिल इन दोनों दलों के विधायकों का आंकड़ा 110 पहुंच रहा है और ऐसे में उसे जीत सुनिश्चित करने के लिए अपना कुनबा बचाए रखते हुए प्रथम वरीयता का एक वोट और चाहिए होगा. दूसरी तरफ बीजेपी को सभी आठ उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रथम वरीयता के 296 वोट की जरूरत होगी. बीजेपी गठबंधन के पास फिलहाल 286 विधायक हैं.

राजा भैया (फाइल फोटो)

यूपी विधानसभा में बसपा के एक, जेडीएल के दो विधायक हैं. जेडीएल विधायक अगर राज्यसभा चुनाव में सपा का समर्थन करते हैं तो पार्टी के तीनों उम्मीदवार जीत जाएंगे. अगर सपा अपने तीसरे उम्मीदवार के लिए प्रथम वरीयता के 37 वोट नहीं जुटा पाती है तो बात दूसरी वरीयता के वोट तक जाएगी जहां संख्याबल के आधार पर बीजेपी का पलड़ा भारी है. राज्यसभा चुनाव के इसी गणित को देखते हुए सपा और बीजेपी, दोनों ही पार्टियां राजा भैया की पार्टी को अपने पाले में लाने के लिए पूरा जोर लगा रही हैं.

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सपा को राजा भैया के साथ का विश्वास क्यों?

राज्यसभा के इस चुनाव में भी बीजेपी ने तीसरा उम्मीदवार उतारकर सपा की एक सीट फंसा दी है. बात दूसरी वरीयता के वोट तक न पहुंचे, इसके लिए सपा को अपना कुनबा बचाए रखते हुए जेडीएल और बसपा विधायकों के समर्थन की भी जरूरत होगी. सपा को 2018 चुनाव में राजा भैया ने गच्चा दे दिया था लेकिन इस बार पार्टी को उनके समर्थन का विश्वास है. तर्क यह दिए जा रहे हैं कि बसपा की सरकार में अपने उत्पीड़न, जेल जाने, पोटा के तहत एक्शन का दर्द राजा भैया भूले नहीं हैं. वह सपा-बसपा गठबंधन के खिलाफ थे लेकिन जब यह हो ही गया तब बसपा उम्मीदवार के लिए वोट करने की जगह उन्होंने बीजेपी को बेहतर विकल्प समझा.

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सपा से दूरी, अखिलेश यादव के साथ तल्खी के बावजूद राजा भैया के रिश्ते मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव के साथ मधुर रहे हैं. राज्यसभा की इन 10 सीटों के लिए 2018 में हुए चुनाव के मुकाबले 2024 में तस्वीर अलग है. सपा और बसपा की राहें जुदा हैं. शिवपाल भी भतीजे अखिलेश के साथ खड़े हैं. अखिलेश को सपा की सीट सुनिश्चित करने के लिए राजा भैया की जरूरत है और इसके लिए पहल भी उन्होंने खुद ही की है. ऐसे में 27 फरवरी की तारीख बताएगी कि राजा भैया सपा का साथ देते हैं या 2018 की कहानी दोहराते हैं.

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