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रामचरितमानस विवाद: स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में आए पूर्व DGP सुलखान सिंह, बोले- उन्हें विरोध का अधिकार

सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने कहा, 'हिंदू समाज के तमाम प्रदूषित और अमानवीय ग्रंथों की निंदा तो करनी ही होगी. भारतीय ग्रंथों ने समाज को गहराई से प्रभावित किया है. इन ग्रन्थों में जातिवाद, ऊंचनीच, छुआछूत, जातीय श्रेष्ठता/हीनता आदि को दैवीय होना स्थापित किया गया है.'

स्वामी प्रसाद मौर्य और सुलखान सिंह (फाइल फोटो) स्वामी प्रसाद मौर्य और सुलखान सिंह (फाइल फोटो)
कुमार अभिषेक
  • लखनऊ,
  • 30 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 1:16 PM IST

रामचरितमानस विवाद में नया मोड़ आ गया है. समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्या के समर्थन में पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह उतर आए हैं. सुलखान सिंह ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा, 'स्वामी प्रसाद मौर्य के मानस पर दिये गए बयान पर अभिजात्य वर्ग की प्रतिक्रिया ठीक नहीं है. मौर्य ने मानस का अपमान नहीं किया है मात्र कुछ अंशों पर आपत्ति जताई है. उन्हें इसका अधिकार है. रामचरितमानस पर किसी जाति या वर्ग का विशेषाधिकार नहीं है.'

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स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में सुलखान सिंह ने कहा, 'हिंदू समाज के तमाम प्रदूषित और अमानवीय ग्रंथों की निंदा तो करनी ही होगी. भारतीय ग्रंथों ने समाज को गहराई से प्रभावित किया है. इन ग्रन्थों में जातिवाद, ऊंचनीच, छुआछूत, जातीय श्रेष्ठता/हीनता आदि को दैवीय होना स्थापित किया गया है. अतः पीड़ित व्यक्ति/समाज अपना विरोध तो व्यक्त करेगा ही. किसी को भी भारतीय ग्रंथों पर एकाधिकार नहीं जताना चाहिए.'

सुलखान सिंह ने कहा, 'कुछ अतिउत्साही उच्च जाति के हिंदू हर ऐसे विरोध को गालीगलौज और निजी हमले करके दबाना चाहते हैं. यह वर्ग चाहता है कि सदियों से शोषित वर्ग, इस शोषण का विरोध न करे, क्योंकि वे इसे धर्मविरोधी बताते हैं. हिंदू समाज की एकता के लिए जरूरी है कि लोगों को अपना विरोध प्रकट करने दिया जाये. भारतीय ग्रंथ सबके हैं. यह शोषित वर्ग हिंदू समाज में ही रहना चाहता है, इसीलिये विरोध करता रहता है. अन्यथा इस्लाम या ईसाई धर्म अपना चुका होता. अतीत में धर्मांतरण इसी कारण से हुये हैं.'

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सुलखान सिंह ने कहा, 'स्वामी प्रसाद मौर्य के मानस पर दिये गए बयान पर अभिजात्य वर्ग की प्रतिक्रिया ठीक नहीं है. मौर्य ने मानस का अपमान नहीं किया है मात्र कुछ अंशों पर आपत्ति जताई है. उन्हें इसका अधिकार है. रामचरित मानस पर किसी जाति या वर्ग का विशेषाधिकार नहीं है. राम और कृष्ण हमारे पूर्वज हैं. हम उनका अनुसरण करते हैं. हमें यह अधिकार है कि हम अपने पूर्वजों से प्रश्न करें. यह एक स्वस्थ समाज के विकास की स्वाभाविक गति है. राम और कृष्ण से उनके कई कार्यों के बारे में सदियों से आमलोग सवाल पूछते रहे हैं. यही उनकी व्यापक स्वीकार्यता का सबूत है.'

आखिर में सुलखान सिंह ने कहा, 'मैं रामचरित मानस और भगवद्गीता का नियमित पाठ करता हूं और इनका अनुसरण करने का यथासंभव प्रयास करता हूं, लेकिन मैं मानस और गीता पर प्रश्न उठाने वालों की निंदा नहीं करता हूं, बल्कि ऐसे लोगों से संपर्क होने पर अपनी समझ और क्षमता के अनुसार उनके संदेहों का निवारण करता हूं, हिंदू समाज की एकता और मानवता के हित में मैं निंदक लोगों पर हमले और अभद्रता करने वालों की निंदा करता हूं.'

स्वामी प्रसाद मौर्य क्यों कर रहे हैं विरोध?

सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था, 'तुलसीदास की रामचरितमानस में कुछ अंश ऐसे हैं, जिन पर हमें आपत्ति है. क्योंकि किसी भी धर्म में किसी को भी गाली देने का कोई अधिकार नहीं है. तुलसीदास की रामायण की चौपाई है. इसमें वह शुद्रों को अधम जाति का होने का सर्टिफिकेट दे रहे हैं.'

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इस पूरे विवाद की शुरुआत बिहार के शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर के एक बयान से हुई थी. नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के 15वें दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, 'रामचरितमानस के उत्तर कांड में लिखा है कि नीच जाति के लोग शिक्षा ग्रहण करने के बाद सांप की तरह जहरीले हो जाते हैं. यह नफरत को बोने वाले ग्रंथ हैं. एक युग में मनुस्मृति, दूसरे युग में रामचरितमानस, तीसरे युग में गुरु गोलवलकर का बंच ऑफ थॉट. ये सभी देश और समाज को नफरत में बांटते हैं. नफरत देश को कभी महान नहीं बनाएगी. देश को महान केवल मोहब्बत बनाएगी.'

 

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