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दलित-जाट का समीकरण और चंद्रशेखर की एंट्री, खतौली में RLD ने बीजेपी को ऐसा किया परास्त

खतौली विधानसभा सीट पर आरएलडी उम्मीदवार की जीत हो गई है. सपा और चंद्रशेखर की पार्टी द्वारा मदन भैया को समर्थन दिया गया था. ऐसे में इस एक जीत ने राज्य में एक नई किस्म की राजनीति को भी हवा दे दी है. इसमें दलित और जाट समीकरण को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

अखिलेश यादव के साथ जयंत चौधरी अखिलेश यादव के साथ जयंत चौधरी
अमित भारद्वाज
  • मुजफ्फरनगर,
  • 08 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 6:31 PM IST

उत्तर प्रदेश उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने बड़ी जीत दर्ज की है. उसकी तरफ से मैनपुरी में तो अपने किले को बचाया ही गया, खतौली विधानसभा सीट पर भी बीजेपी को शिकस्त दी गई. खतौली के जो नतीजे सामने आए हैं, उसके मुताबिक आरएलडी उम्मीदवार मदन भैया ने भाजपा की राजकुमारी सैनी को 22165 वोटों के बड़े अंतर से हरा दिया है. अब ये सिर्फ एक जीत नहीं है, बल्कि राज्य में बीजेपी के खिलाफ शुरू हो रही नई राजनीति का भी शंखनाद है. 

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खतौली में जीत, राज्य में नई सियासत का आगाज?

विपक्षी एकजुटता की बात तो कई बार की गई है, लेकिन सोशल इंजीनियरिंग हर बार जमीन पर काम नहीं करती है. लेकिन खतौली सीट के नतीजे बता रहे हैं कि आरएलडी के साथ सपा और चंद्रशेखर की पार्टी का आना जबरदस्त फायदा पहुंचा गया है. सीधे-सीधे दलित वोटबैंक में सेंधमारी हुई है और इसका नुकसान बीजेपी को हुआ है.

अब चंद्रशेखर की पार्टी से दोस्ती यूं ही नहीं की गई है. विधानसभा चुनाव के दौरान जरूर गठबंधन होते-होते रह गया था, लेकिन इस बार उपचुनाव में सपा के मंच पर ही कई मौकों पर चंद्रशेखर दिख गए. उन्होंने खुलकर सपा और आरएलडी उम्मीदवार के लिए प्रचार किया. अब खतौली सीट पर विपक्ष की जीत भी इसलिए हुई है क्योंकि उसे आरएलडी वाला जाट वोट भी मिला है और चंद्रशेखर के साथ आने से दलित वोट भी नहीं छिटका. इसी कॉम्बिनेशन ने बीजेपी को जमीन पर परास्त करने का काम कर दिया है.

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बसपा का ना लड़ना दे गया फायदा

इस सीट पर आरएलडी की जीत का एक कारण ये भी रहा कि मायावती की बसपा ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था. अगर बसपा मैदान में होती तो एकतरफा दलित वोट मिलना मुश्किल हो जाता, लेकिन क्योंकि मैदान खुला था, ऐसे में जातीय समीकरण सटीक काम कर गए और बीजेपी को मुंह की खानी पड़ गई.

भाजपा प्रत्याशी राजकुमारी सैनी मतों की गिनती के बाद खतौली सेंटर छोड़कर निकल गईं. वह भाजपा के मौजूदा विधायक विक्रम सिंह सैनी की पत्नी हैं. उन्हें मुजफ्फरनगर दंगों के मामले में दोषी ठहराए जान के बाद चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था. 

2013 के दंगों को लेकर दर्ज हुआ था केस 

बताते चलें कि साल 2013 में मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगा हुआ था. इसमें 60 से अधिक लोगों की मौत हुई थी और दर्जनों लोग घायल हो गए थे. इस घटना के बाद जानसठ थाने में विधायक विक्रम सैनी समेत दर्जनों लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था. नौ साल तक इस प्रकरण की सुनवाई चली है, जिसमें 12 अक्टूबर को फैसला देते हुए विक्रम सैनी को दोषी करार दिया गया था. 

दंगों के बाद विक्रम सैनी बने दो बार विधायक

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तत्कालीन सपा सरकार ने रासुका लगाकर उन्हें करीब एक साल जिला कारागार में और इसके बाद हमीरपुर जेल में बंद रखा था. यहां से छूटने के बाद वह जिला पंचायत सदस्य बने थे. वहीं, पहली बार खतौली विधानसभा सीट से 2017 में विधायक का चुनाव लड़ा और जीता. इसके बाद 2022 में सपा-रालोद प्रत्याशी राजपाल सैनी को 16 हजार से अधिक मतों से हराकर दोबारा विधायक बने थे. 

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