
उत्तर प्रदेश के संभल में मिली रानी की बावड़ी में बीते दो दिनों से खुदाई जारी है. भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच यहां अबतक 8 से 10 फीट की खुदाई हो चुकी है. इस बीच आजतक की टीम रानी की बावड़ी के अंदर पहुंची और वहां 1950 से रह रहे एक व्यक्ति से बावड़ी के बारे में जानकारी ली. उन्होंने बताया कि ये बावड़ी 32 बीघा जमीन पर बनी हुई है और इसके निर्माण में ककैया ईटों का इस्तेमाल किया गया था.
आजतक से बात करते हुए स्थानीय किशन कुमार ने बताया कि मैं इसको शुरू से ही देख रहा हूं. ये बावड़ी 32 बीघा जमीन पर बनी हुई है. हालांकि ये कितनी पुरानी है, इसकी कोई जानकारी हम लोगों को नहीं है. इसके नीचे दो मंजिल और बनी हुई हैं. इसकी सीढ़ियां कुएं तक गई हैं. इसमें कमरे भी बने हुए हैं. यहां इतनी जगह है कि कुएं के आसपास आसानी से घूमा जा सकता है.
उन्होंने बताया कि जहां से खड़े होकर हम लोग बातचीत कर रहे हैं, इसके चारों ओर रास्ता है. यहां एक ओर से घुसकर दूसरी ओर निकला जा सकता है. कुएं के चारों ओर गैलरी बनी हुई है, उसी के चारों ओर परिक्रमा की जा सकती है.
ककैया ईंटों से किया है बावड़ी का निर्माण
किशन कुमार के मुताबिक, इस बावड़ी के निर्माण में ककैया ईंट का इस्तेमाल किया गया है. ये पुरातन सभ्यता की बनी हुई है. इसे प्राचीन शैली में बनाया गया है. ये आजतक सुरक्षित हैं. ईटों को चुनने के लिए गारा-चूना का इस्तेमाल किया गया और फिर ऊपर से प्लास्टर किया गया है. उन्होंने बताया कि ककैया छोटी ईंटें होती थीं, जिनसे उस समय बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनाई जाती थीं.
रानी की वंशज ने क्या बताया?
इससे पहले आजतक से बात करते हुए यहां की रानी रहीं सुरेंद्र बाला की पोती शिप्रा बाला ने बताया था कि संभल का ये इलाका पहले पहले हिंदू बहुल था. मेरे पिता ने इसे बदायूं के अनेजा को बेचा था क्योंकि प्रॉपर्टी में कई हिस्सेदार थे, लेकिन उन्होंने प्लॉटिंग करके इसे मुस्लिमों को बेच दिया. इस कोठी को भी अनेजा ने आधे से ज्यादा मुस्लिमों को बेच दिया. पहले यहां सभी हिंदू ही थे. उन्होंने कहा कि हमारे लिए सौभाग्य की बात होगी कि हमारी प्रॉपर्टी हमें वापस मिल जाए. बता दें कि चंदौसी का लक्ष्मण गंज क्षेत्र 1857 से पहले हिंदू बहुल था. यहां सैनी समाज के लोग रहते थे, लेकिन अब यहां मुस्लिम आबादी ज्यादा संख्या में है.
बाबड़ी को लेकर डीएम ने क्या बताया?
डीएम राजेंद्र पैंसिया ने बताया कि इसे तीन मंजिल का बताया जा रहा है. इसमें नीचे के दो मंजिल मार्बल के हैं, ऊपर का ईंटों का बना है. 400 वर्गमीटर क्षेत्र का है. वर्तमान में 210 वर्गमीटर ही है. बकाये पर कब्जा है, जिसे जल्द ही खाली कराया जाएगा.
रानी की बावड़ी में क्या-क्या है?
रानी की बावड़ी की खुदाई में 50 से ज्यादा मजदूर लगे हुए हैं, जबकि ऊपर से मिट्टी हटाने के लिए जेसीबी लगाई गई हैं. जब बावड़ी के अंदर आजतक की टीम पहुंची तो उसका दरवाजा पूरी तरह मंदिर जैसा दिखाई दिया. बावड़ी के अंदर एक सुरंग भी है, जैसे ही सीढ़ियां खत्म होती हैं, वैसे ही सुरंग है. यहां लगातार खुदाई चल रही है. ये बावड़ी करीब 10-12 मीटर लंबी और 28 फीट गहरी बताई जा रही है.
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कितनी पुरानी है बावड़ी?
रानी की ये बाबड़ी करीब 150 साल पुरानी बताई जाती है. इसका इस्तेमाल पहले पानी स्टोर करने के लिए और सैनिकों के आराम करने के लिए किया जाता था. इन दीवारों में अभी भी नमी है क्योंकि यहां पानी रहता था. इस वक्त यहां जेसीबी लगी हुई है. अलग-अलग की मशीनें लाई गई हैं. खुदाई के दौरान सोमवार की सुबह ही सीढ़ियां मिली हैं. ये सीढ़ियों से होता हुआ रास्ता बावड़ी की ओर जाता है.