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चाचा शिवपाल की रणनीति, अखिलेश का यूथ ब्रिगेड... यादवलैंड को नई रणनीति से साधने उतरी सपा!

यूपी की सियासत में अपने खिसके जनाधार को वापस लाने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है. अखिलेश ने चाचा शिवपाल यादव को साथ लेने के बाद अब पूरा फोकस यादवलैंड पर कर रखा है, क्योंकि एक के बाद एक यादव बेल्ट में बीजेपी कमल खिलाती जा रही थी. ऐसे में अखिलेश ने अब यादवबेल्ट को मजबूत करने का मिशन शुरू किया है.

रामगोपाल यादव, अखिलेश यादव, शिवपाल यादव रामगोपाल यादव, अखिलेश यादव, शिवपाल यादव
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 02 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 4:37 PM IST

मुलायम सिंह के गढ़ रहे यादवलैंड पर बीजेपी ने धीरे-धीरे पूरी तरह कब्जा जमा लिया है. ऐसे में मैनपुरी उपचुनाव में मिली जीत के बाद से सपा को सियासी संजीवनी मिल गई है और बीजेपी को हराने का हौसला भी मिल गया. अखिलेश यादव चाचा शिवपाल यादव को साथ मिलाने के बाद अब अपने पुराने गढ़ को वापस पाने के लिए नए सिरे से सियासी जमीन तैयार कर रहे हैं ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा को बड़ी ताकत के रूप में खड़ी कर सके.

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अखिलेश यादवलैंड में सक्रिय
मैनपुरी उपचुनाव के बाद से ही अखिलेश यादव हर सियासी कदम सोच-समझकर रख रहे हैं. इन दिनों इटावा, मैनपुरी, एटा, औरैया, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, कन्नौज, झांसी सहित यादवलैंड वाले इलाके पर खास फोकस कर रहे हैं. अखिलेश के हाल की दौरे पर नजर डाले तो वे इटावा, मैनपुरी ही नहीं बल्कि कन्नौज, फर्रुखाबाद और झांसी गए हैं. अखिलेश यादव फर्रुखाबाद के कायमगंज में पार्टी नेता नवल किशोर शाक्य के भाई की श्रद्धांजलि सभा में शामिल हुए थे तो झांसी में जेल में बंद पूर्व विधायक दीपनारायण यादव से मुलाकात की थी. 2024 में कन्नौज से खुद चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं और उसके बाद से लगातार दौरा भी कर रहे हैं.

पूर्व विधायक दीपनारायण यादव के परिवार से मिलते अखिलेश यादव

मुलायम परिवार में बिखराव के चलते ही सपा को लगातार हार का मुंह देखना पड़ा है. यादव बेल्ट में भी सपा को बीजेपी से मात खानी पड़ी है. सपा का गढ़ माने जाने वाले ज्यादातर क्षेत्रों में बीजेपी अपनी जीत का परचम लहरा चुकी है. कन्नौज, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद, बदायूं, एटा, इटावा, आजमगढ़ और रामपुर जैसे इलाके में बीजेपी के सांसद हैं. विधानसभा चुनाव में भी सपा को इस इलाके में हार का मुंह देखना पड़ा था. शिवपाल के साथ नहीं होने से सपा को इसी इलाके में सियासी नुकसान उठाना पड़ा था, क्योंकि इस बेल्ट में उनकी अपनी मजबूत पकड़ रही है. 

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अखिलेश का युवा ब्रिगेड पर फोकस

शिवपाल यादव के साथ आने से यह धारणा सपा के पक्ष में जा रही है कि अब पूरा मुलायम परिवार एकजुट है. इसके चलते यादव वोट में किसी तरह की बिखराव का खतरा नहीं होगा. आजमगढ़ सीट पर परिवार के बिखराव का साइड इफेक्ट नजर आया था तो मैनपुरी उपचुनाव में परिवार की एका का लाभ मिला था. यादवलैंड में मुलायम सिंह यादव के बाद शिवपाल की पकड़ मानी जाती है, लेकिन कुनबा एकजुट है तो अखिलेश भी यादवलैंड पर पूरी शिद्दत के साथ फोकस कर रहे हैं. यहां के हर गांव के युवाओं से सीधे जुड़कर भविष्य की रणनीति बना रहे हैं. 

यादवलैंड की एक के बाद एक सीट गंवा रही सपा ने मैनपुरी उपचुनाव में अपनी रणनीति बदली. भतीजे अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव के साथ सारे गिले-शिकवे भुलाकर न सिर्फ उन्हें जोड़ा, बल्कि उपचुनाव से दूर रहने की परंपरा को खत्म कर घर-घर चुनाव प्रचार भी किया. इस तरह सपा घर की सीट बचाने में कामयाब रही और उसके बाद से अखिलेश यादव इस इलाके में लगातार सक्रिय हैं. वह विधानसभा क्षेत्रवार लोगों से मिल रहे हैं और सभी को खुद से जोड़ने के अभियान में जुटे हैं. 

फरुर्खाबाद में अखिलेश यादव

नेताजी की राह पर लौटे अखिलेश

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हालांकि, अभी तक यादवलैंड के ज्यादातर लोगों और नेताओं की की पहुंच मुलायम परिवार के अन्य सदस्यों तक थी, लेकिन अखिलेश ने अपने दरवाजे खोल दिए हैं. अखिलेश यादव समझ चुके हैं कि बिना नेताजी की राह पर चले सपा को दोबारा से इस इलाके में नहीं खड़े कर सकते हैं. अखिलेश ने पहली बार अपने राजनीतिक जीवन में यादवलैंड पर फोकस किया है. सपा की यह सोची समझी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, क्योंकि 2024 के चुनाव में बीजेपी की नजर यादव वोटबैंक में सेंध लगाने की थी.

बीजेपी की नजर यादव वोटबैंक पर

2022 के विधानसभा चुनाव के बाद ही बीजेपी ने भी यादव वोटों को लेकर अपनी रणनीति बदली है. बीजेपी 2024 के चुनाव के लिए गैर-यादव वोटों के बजाय कुल ओबीसी वोटों पर सियासत करती नजर आ रही है. पार्टी के संसदीय बोर्ड में दो यादव समुदाय के नेताओं को जगह दी गई तो पीएम मोदी ने यादव समुदाय के बड़े नेता रहे हरमोहन सिंह यादव की पुण्यतिथि में वर्चुअल शामिल होकर बड़ा सियासी संदेश दिया. यादव समुदाय के वोटों पर बीजेपी के घेराव को देखते हुए अखिलेश यादव अब पूरी तरह से यादवलैंड को लेकर सक्रिय हो गए हैं. 

यूपी में 8 फीसदी यादव वोटर

उत्तर प्रदेश में करीब 8 फीसदी वोटर यादव समुदाय से हैं, जो ओबीसी समुदाय की कुल आबादी का 20 फीसदी हिस्सा हैं. यादव समाज में मंडल कमीशन के बाद ऐसी गोलबंदी हुई कि ये सपा का कोर वोटर बन गया. यादव वोटर्स के दम पर ही मुलायम सिंह यादव तीन बार और अखिलेश यादव एक बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. सपा के सत्ता में रहते हुए यादव समाज राजनीतिक ही नहीं बल्कि आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से भी मजबूत हुआ. इसके चलते सपा पर सत्ता में रहते हुए यादव परस्त होने का आरोप भी विपक्ष लगाता रहा है.

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जौनपुर में पीड़ित परिवार के बीच अखिलेश यादव

यादव परस्ती के आरोप से बचने के लिए अखिलेश यादव ने खुद को एक समय तक किनारा कर रखा था, लेकिन खिसकते राजनीतिक आधार ने उन्हें अब खुलकर सामने आने के लिए मजबूर कर दिया है. मुलायम सिंह के बाद यादवलैंड में शिवपाल सिंह की पकड़ मजबूत रही है. शिवपाल ने भी अखिलेश को अपना नेता मान लिया है. ऐसे में यादवलैंड में सपा किसी तरह का कोई राजनीतिक कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है. मुलायम सिंह के दौर की पुरानी पीढ़ी भी खत्म हो रही है. ऐसे में नई पीढ़ी पर अखिलेश अपनी छाप छोड़ने में जुटे हैं ताकि यादवलैंड में बीजेपी को अपनी जड़ें जमाने का मौका न मिल सके. 

यूपी में यादव समुदाय का प्रभाव
उत्तर प्रदेश के इटावा, एटा, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, फिरोजाबाद, कन्नौज, बदायूं, आजमगढ़, फैजाबाद, बलिया, संतकबीर नगर, जौनपुर और कुशीनगर जिले को यादव बहुल माना जाता है. इन जिलों में 50 से ज्यादा विधानसभा और एक दर्जन लोकसभा सीटों पर यादव वोटर अहम भूमिका में हैं. सूबे के 44 जिलों में 9 फीसदी यादव हैं जबकि 10 जिलों में ये वोटर 15 फीसदी से ज्यादा है. पूर्वी यूपी और बृज के इलाके में यादव वोटर सियासत की दशा और दिशा तय करते हैं. वहीं, इन इलाके में मुस्लिम व अन्य जातियों की एकजुटता भी रहती है. अखिलेश यादव की रणनीति इन इलाकों में यादव वोटों पर मजबूत पकड़ बनाए रखते हुए मुस्लिम और दलितों को भी जोड़ने की रणनीति है. 

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