
मुलायम सिंह यादव जब समाजवादी पार्टी के सर्वे-सर्वा हुआ करते थे और शिवपाल यादव के पास शक्तियां निहित थीं. सपा में शिवपाल की तूती बोलती थी और नंबर दो की हैसियत रखते हैं, लेकिन अखिलेश यादव के सक्रिय होते ही वह हाशिए पर ही नहीं बल्कि पार्टी से भी बाहर हो गए. मुलायम के निधन और मैनपुरी चुनाव के बाद सियासी हालत बदले हैं. सपा में शिवपाल यादव वापसी करने के बाद से लगातार मजबूत होते जा रहे हैं और अपने पुराने रंग-रौब में भी लौट रहे हैं.
मुलायम कुनबे में सियासी विरासत को लेकर चाचा-भतीजे में छिड़ी जंग अब थम चुकी है. शिवपाल यादव और अखिलेश यादव आपसी गिले-शिकवे भुलाकर साथ आ चुके हैं. मैनपुरी उपचुनाव में एकजुटता का सपा को फायदा भी मिला. ऐसे में अखिलेश यादव चाचा शिवपाल के सम्मान में किसी तरह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ रहे हैं. राजनीतिक फैसलों में चाचा की राय ले रहे हैं तो जमीन स्तर पर सक्रियता दिखाने के लिए फ्रंटफुट पर उन्हें उतार दिया है.
शिवपाल यादव को पहले सपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया. इस तरह से छह साल बाद सपा संगठन में उनकी वापसी हुई. इसके बाद नेता विपक्ष अखिलेश यादव के अनुपस्थिति में समाजवादी पार्टी विधायक दल की बैठक की अगुवाई करते दिखाई दिए थे. विधानसभा सदन में शिवपाल यादव को पहली पंक्ति में सीट मिल गई है. नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव के बगल वाली एक सीट छोड़कर शिवपाल बैठे नजर आए. इतना ही नहीं विधानसभा में चाचा-भतीजे मिलकर सत्ता पक्ष पर प्रहार करेंगे, लेकिन उससे पहले बजट सत्र पर जातिगत जनगणना सहित कई मुद्दों पर प्रदर्शन की अगुवाई कर शिवपाल ने अपने पुराने तेवर दिखा दिए हैं. इससे साफ जाहिर है कि शिवपाल यादव अपने पुराने सियासी रौब में फिर से नजर आने लगे हैं.
दरअसल, सपा को उत्तर प्रदेश में सियासी तौर पर मजबूत करने में जितना हाथ मुलायम सिंह यादव का था, उतना ही पसीना शिवपाल ने भी बहाया था. सपा में वह जमीनी नेता के तौर पर पहचान रखते थे, लेकिन अखिलेश यादव के सक्रिय होने और सपा की कमान संभालने के बाद हाशिए पर चल गए थे. इसके बाद 2018 में शिवपाल ने अपनी अलग पार्टी बना ली, लेकिन अब शिवपाल ने अपनी पार्टी का विलय सपा में कर दिया है और मरते दम तक पार्टी में रहने का ऐलान भी कर दिया है. ऐसे में अखिलेश यादव उन्हें रिटर्न गिफ्ट के तौर एक के बाद रुतबे से नवाज रहे हैं.
सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शिवपाल यादव को छोड़कर भले ही उनके किसी करीबी नेता को जगह न मिली हो, लेकिन प्रदेश कार्यकारिणी में उनकी छाप नजर आएगी. सूत्रों की मानें तो शिवपाल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले कुछ चेहरों को प्रदेश कार्यकारिणी में जगह मिलनी है. संबंधित नाम पर विचार विमर्श चल रहा है. पिछली प्रदेश कार्यकारिणी में प्रमुख महासचिव के अलावा दो महासचिव बनाए गए थे. इस बार पांच महासचिव पर विचार चल रहा है. इसी तरह सचिव पद भी बढ़ सकता है.
शिवपाल यादव सपा में वापसी कर गए हैं और अखिलेश यादव के साथ भी उनके रिश्ते बेहतर हुए हैं. शिवपाल के सपा में आने से अखिलेश को राजनीतिक फायदा क्या मिलेगा वो इस बात पर निर्भर करेगा कि शिवपाल यादव में फिलहाल कितनी ताकत बची है. शिवपाल का सियासी जनाधार यादव बेल्ट में ठीक-ठाक रहा है. इसी का नतीजा है कि शिवपाल के साथ आने का जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र में बड़ा असर हुआ और लोगों ने डिंपल यादव को जमकर वोट दिए. इसके अलावा शिवपाल के साथ जमीनी स्तर के नेता जुड़े रहे हैं, जिन्हें संगठन में जगह देकर फिर से एक्टिव किया जा सकता है.
बता दें शिवपाल यादव ने 2018 में अपनी पार्टी बनाई थी तो उनके साथ इटावा के राम नरेश यादव, बरेली के वीरपाल यादव, रायबेरली के राम सिंह यादव, कानपुर अशोक यादव, सुंदरलाल लोधी जैसे नेताओं ने भी सपा छोड़ दी थी, लेकिन सभी नेता अब सपा में वापसी कर गए हैं. इसके अलावा जिले स्तर पर भी कई नेता हैं, जो जमीनी तौर पर सक्रिय रहने वाले हैं. सपा की प्रदेश कार्यकारिणी में शिवपाल समर्थकों को जगह मिल सकती है, जिसमें खासकर राष्ट्रीय और प्रदेश के फ्रंटल संगठनों में पद दिए जाएंगे. ऐसे में शिवपाल की करीबी रीबू श्रीवास्तव को महिला सभा प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जा चुकी है.
सपा का गढ़ माने जाने वाले ज्यादातर लोकसभा क्षेत्रों पर बीजेपी अपनी जीत का परचम लहरा चुकी है. कन्नौज, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद, बदायूं, एटा, इटावा, आजमगढ़ और रामपुर जैसे इलाकों में बीजेपी के सांसद हैं. शिवपाल के साथ आने का सपा को सियासी फायदा इन्हीं इलाकों में मिल सकता है, क्योंकि इस बेल्ट में शिवपाल की मजबूत पकड़ रही है. यादवों के बीच ही नहीं बल्कि गैर-यादव जातियों में भी वे मजबूत पकड़ रखते हैं. मैनपुरी में यह दिखा भी है कि गैर-यादव ओबीसी और दलित जातियों ने भी सपा को ठीक ठाक वोट दिए हैं.
पार्टी सूत्रों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अनुभवी और लगातार पार्टी में सक्रिय रहने वाले युवा नेताओं को फ्रंटल संगठनों की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी, ताकि वे चुनाव के दौरान पुराने और नए नेताओं को जोड़ सकें. इसमें जातीय जनाधार का भी ध्यान रखा जा रहा है. इतना ही नहीं शिवपाल यादव के करीबी नेताओं को भी जगह देकर उनके राजनीतिक अनुभव का लाभ उठाने की रणनीति है. इस तरह से शिवपाल खुद सेट होने के साथ-साथ करीबी नेताओं को जगह दिलाकर अपने पुराने सियासी रुतबे को फिर से हासिल करते दिख रहे हैं.