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समाजवादी पार्टी (सपा) ने यूपी की 10 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव की तैयारियां तेज कर दी हैं. सपा ने 10 में से छह सीटों के लिए प्रभारियों का ऐलान कर दिया है. प्रभारियों की इस लिस्ट में शिवपाल यादव का नाम भी है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल को अंबेडकरनगर जिले की कटेहरी सीट की जिम्मेदारी सौंपी है. ऐसे में सवाल है कि क्या ये उपचुनाव सपा में वापसी के बाद से ही अपनी खोई जगह तलाश रहे शिवपाल के लिए रुतबा लौटाने वाले साबित होंगे?
ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि 2017 में अखिलेश यादव के साथ हुए टकराव के बाद सपा से निकाले गए शिवपाल ने अपनी पार्टी बना ली थी. 2017 के यूपी चुनाव से ठीक पहले पार्टी से बाहर किए गए शिवपाल की 2022 के चुनाव से पहले सपा में वापसी तो हो गई लेकिन वह जगह नहीं मिल सकी. शिवपाल सपा में कभी मुलायम के बाद सबसे ताकतवर नेता माने जाते थे. लोकसभा चुनाव में कन्नौज से सांसद निर्वाचित होने के बाद अखिलेश ने जब विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और नया नेता प्रतिपक्ष चुनने की बात आई तो शिवपाल मजबूत दावेदार माने जा रहे थे.
अखिलेश ने शिवपाल पर माता प्रसाद पांडेय को तरजीह दी और उन्हें नया नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया. सीएम योगी ने यूपी विधानसभा में नए नेता प्रतिपक्ष को बधाई दी और शिवपाल पर तंज करते हुए कहा था कि आपने चाचा को गच्चा दे ही दिया. चाचा हर बार गच्चा खा जाता है. शिवपाल ने योगी के तंज पर पलटवार करते हुए कहा था कि पहले हम पीछे बैठते थे, अब नेता प्रतिपक्ष के बगल में आ गए हैं. गच्चा हम नहीं खाए हैं. अब कटेहरी उपचुनाव में सपा ने जब शिवपाल को प्रभारी बना दिया है, शिवपाल के लिए पार्टी की फ्रंटलाइन में अपनी जगह सुनिश्चित करने का मौका है.
उपचुनाव रुतबा लौटाने का मौका क्यों?
सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ओर से कटेहरी की जिम्मेदारी खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ले रखी है जिसकी जिम्मेदारी सपा ने शिवपाल को सौंपी है. यूपी में बीजेपी के सबसे बड़े चेहरे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने शिवपाल की संगठन क्षमता और रणनीतिक कौशल की परीक्षा होनी है. शिवपाल ने दारा सिंह चौहान के इस्तीफे से रिक्त हुई मऊ की घोसी सीट के उपचुनाव में भी सपा के चुनाव अभियान की बागडोर संभाली थी और वहां साइकिल दौड़ाने में सफल रहे थे.
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घोसी उपचुनाव में बीजेपी की ओर से तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी के साथ ही योगी कैबिनेट के कई मंत्रियों ने कैंप कर प्रचार किया था. घोसी और कटेहरी के उपचुनाव में एक बड़ा अंतर सीएम योगी की जिम्मेदारी है ही, ये भी है कि तब बसपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों ने भी उम्मीदवार नहीं दिए थे और बीजेपी-सपा में सीधा मुकाबला था.
इस बार सीएम योगी ने इस सीट को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है तो वहीं मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी ने भी उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर रखा है. ऐसे में शिवपाल के सामने एंटी बीजेपी या एंटी गवर्नमेंट वोट का बिखराव रोकने की चुनौती भी होगी और अगर कटेहरी सीट पर सपा जीत का परचम लहराती है तो सपा के साथ ही खुद उनके लिए भी ये एक बड़ी उपलब्धि होगी, बीजेपी के लिए बड़ा झटका होगा. इसे शिवपाल के लिए पार्टी में 2017 की आंतरिक कलह के पहले जैसा रुतबा लौटाने के मौके की तरह भी देखा जा रहा है.
शिवपाल का कद निर्धारित करेंगे कटेहरी के नतीजे!
कटेहरी सीट का चुनाव इतिहास देखते हुए सपा के लिए जीत जितनी मुफीद लग रही है, वर्तमान उतना ही कठिन है. सीएम का इस सीट को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लेना बताता है कि लड़ाई कितनी कठिन है. शिवपाल की इमेज कुशल संगठनकर्ता और चुनावी कौशल में माहिर नेता की है. अखिलेश ने उपचुनाव की दो सबसे टफ सीटों में से एक की जिम्मेदारी सौंपकर एक तरह से खुद को साबित करने का मौका दिया है. इस सीट के उपचुनाव नतीजे सपा में शिवपाल का कद निर्धारित करने वाले साबित हो सकते हैं.
किसके लिए उर्वरा रही है कटेहरी की सियासी जमीन?
कटेहरी की सियासी जमीन सपा-बसपा जैसे दलों के लिए उर्वरा रही है. इस सीट पर अब तक केवल एक बार कमल खिल सका है जब 1991 की राम लहर में इस सीट से बीजेपी के अनिल कुमार तिवारी जीते थे. 1991 के बाद हुए सात चुनावों में पांच बार बसपा और दो बार सपा को जीत मिली है. 1993 में बसपा के टिकट पर रामदेव वर्मा ने जीत का परचम लहराया था. 1996, 2002 और 2007 में बसपा के धर्मराज निषाद जीते.
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साल 2012 में सपा के शंखलाल मांझी ने बसपा का विजय रथ रोक दिया लेकिन 2017 में लालजी वर्मा ने ये सीट फिर से बसपा की झोली में डाल दी. 2022 में लालजी वर्मा सपा के टिकट पर लड़े और सीट बरकरार रखी. लालजी वर्मा अब संसद पहुंच चुके हैं. लोकसभा के लिए निर्वाचन के बाद उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था जिससे रिक्त हुई सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं.