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'अखिलेश यादव के स्टैंड से विरोधियों को पड़ा तमाचा,' रामचरितमानस विवाद पर बोले स्वामी प्रसाद मौर्य

यूपी में रामचरितमानस पर छिड़े विवाद के बीच सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने आजतक से बातचीत की है. स्वामी से पूछा गया कि क्या अखिलेश यादव की आपके बयान पर मौन सहमति है? ताे उन्होंने कहा- शायद आपने कल राष्ट्रीय अध्यक्ष जी के बयान को नहीं सुना. उन्होंने अपना नजरिया और स्पष्ट कर दिया है. मौर्य ने कहा कि शूद्र समाज बीजेपी के दोहरे चरित्र को देख रहा है.

सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस को लेकर विवाद पर बयान दिया. (फाइल फोटो) सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस को लेकर विवाद पर बयान दिया. (फाइल फोटो)
कुमार अभिषेक
  • लखनऊ ,
  • 30 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 10:18 PM IST

यूपी की सियासत में समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य अपने बयानों को लेकर खासे चर्चा में हैं. स्वामी प्रसाद ने रामचरित मानस की कुछ चौपाइयों को लेकर आपत्ति जताई है और खुलकर विरोध किया है. यहां तक कि मौर्य के समर्थन में लखनऊ में रामचरित मानस की प्रतियां जलाने का मामला भी सामने आया है. इस सबके बीच, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इशारों-इशारों में शूद्र समाज को लेकर बयान देकर स्वामी प्रसाद मौर्य का समर्थन कर दिया है. आजतक ने सपा के नए महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य से पूरे मसले पर बातचीत की है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि जो लोग मेरे मुद्दा उठाने पर विरोध कर रहे हैं, राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के बयान से उनके गाल पर अपने आप चांटा पड़ गया है. 

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सवाल: रामचरित मानस को लेकर स्टैंड वही है या अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद बदला है?

जवाब: स्वभाविक रूप से देश की सभी महिलाएं, आदिवासी, दलित और पिछड़े जिस अंश से अपमानित हो रहे हैं जिसका उल्लेख मैं पहले कर चुका हूं. (ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, सकल-ताड़ना के अधिकारी) जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए जिन जातियों को उल्लेखित किया गया और नीछ कहा गया है. समस्त शूद्र यानी इसमें सभी आदिवासी, दलित, पिछड़े आते हैं. समस्त महिलाएं किसी भी वर्ण-वर्ग समाज की हों. यह मार-खाने, पिटाई के पात्र हैं. धर्म, मानव कल्याण के लिए होता है और मानवता के लिए होता है. किसी भी धर्म को, किसी भी वर्ण, जाति, समाज को अपमानित करने का हक नहीं है. गाली धर्म का हिस्सा नहीं हो सकती है. धर्म अपने ही अनुवाइयों में भेदभाव नहीं करता. इत्तेफाक जिनका भी मैंने उल्लेख किया, यह सब हिंदू धर्म को मानने वाले लोग हैं. हमें रामचरितमानस से कोई आपत्ति नहीं. चौपाई के इस अंश से जिससे देश की महिलाओं का अपमान हो रहा है. शूद्र समाज में सभी जातियों का अपमान हो रहा है. भेदभाव उनके साथ किया जा रहा  है, उस अंश को हटा दिया जाए. स्वाभाविक रूप से इस अपमान के खिलाफ बात चलती रहेगी. यह तब तक चलती रहेगी, जब तक महिलाओं के आदिवासियों और दलित पिछड़ों के सम्मान की बात पर लोग तैयार नहीं होते.

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सवाल:  कहा जा रहा है कि आपने संदर्भ को नहीं देखा, जिस संदर्भ में ये लिखा है?

जवाब: देखिए, मैंने भाव समझा है. अर्थ भी समझाया. संदर्भ समझा. अपने पाप पर चादर डालने के लिए कुतर्क का प्रस्तुतिकरण इसका समाधान नहीं है.

सवाल: बैठक में क्या हुआ. क्या अखिलेश जी आपके साथ खड़े हैं? 

जवाब: बात राजनीतिक नहीं है. सामाजिक है. राजनीति को सूट करता या नहीं. शूद्र समाज को, देश की महिलाओं को अपमानित होने से बचाया जाए. स्वभाविक रूप से कोई भी सूझबूझ का नेता, व्यक्ति या समाज- कौन के सम्मान के खिलाफ बोलेगा. जब इस विषय पर उन्होंने कोई प्रतिकार नहीं किया तो सुबह ही ग्रुप से जो अर्थ निकालना हो, निकाल लो. बैठक किसी न्यायिक विषय पर हुई. उसका मैंने उल्लेख कर दिया कि भाजपा सरकार में एक देश के अनुसूचित समाज, पिछड़े वर्गों को वोट लेने के लिए हिंदू बना दिया, लेकिन जब उनके अधिकार की बात आती है तो बेगाने हो जाते हैं. एक-एक करके देश के दलितों, पिछड़ों का आरक्षण भाजपा ने खत्म कर दिया. अब हम उनको आरक्षण का अधिकार दिलाने के लिए जाति आधारित जनगणना कराने के लिए जनता के बीच में जाएंगे. मैदान में उतरेंगे और बीजेपी का दोहरा चरित्र जनता के बीच में उजागर करेंगे.

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सवाल: क्या अखिलेश यादव की इस मुद्दे पर मौन सहमति है?

जवाब: आप उनकी चिंता मत करिए. शायद आपने कल राष्ट्रीय अध्यक्ष जी के बयान को नहीं सुना. उन्होंने अपना नजरिया और स्पष्ट कर दिया है. आप सबको मालूम है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि किस तरीके से भारतीय जनता पार्टी शूद्र समाज की दुश्मन है. आरक्षण को खत्म कर रही है. धार्मिक स्थान पर जाने का विरोध करती है. भारतीय जनता पार्टी के इस रवैये की कड़ी निंदा करते हैं. पूरा का पूरा शूद्र समाज भारतीय जनता पार्टी के दोहरे चरित्र को देख रहा है. देखिए, एक हफ्ते से यह प्रसंग चल रहा है. एक हफ्ते के बीच में कल मेरी पहली मुलाकात हुई, उसके पहले उनसे मुलाकात नहीं हुई. सार्वजनिक मंचों से मैं जो बोलता रहता हूं, उसी विषय पर मैंने जोड़ दिया. आज पूरे देश में चर्चा चल रही है तो हमें सकारात्मक प्रमाण आने की उम्मीदें बढ़ी हैं. आज नहीं तो कल... अपने हिंदू धर्म को मानने वाले दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, महिलाओं को सम्मान दिलाने के लिए हमारे साथ खड़े होंगे. कयासबाजी कोई भी लगा सकता है.

सवाल: विपक्ष बेरोजगारी, महंगाई और गरीबी का उठा रहा है, आप ये मुद्दा क्यों लाए. क्या वजह है?

जवाब: मैंने शुरुआती दौर में कहा था कि ये बयान स्वामी प्रसाद मौर्या का है. आज देश में जो महंगाई है, वो आसमान छू रही है. देश के गरीबों, मजदूरों, किसानों की कमर टूट रही है. नौजवान बेरोजगार घूम रहा है. जीएसटी से कमर टूटी पड़ी है. सभी मुद्दों पर सरकार फेल है. विकास ठप है. 24 घंटा भाजपा सरकार लोगों की आंख में धूल झोंकने के लिए लगातार हिंदू- मुस्लिम करती रहती है. इसके खिलाफ समाजवादी पार्टी राजनीतिक फ्रंट से हमेशा लड़ाई करती रहती है. आज भी लड़ रही है. आगे भी लड़ती रहेगी. यह सामाजिक सरोकार से जुड़ा है. राजनीतिक मुद्दे, राजनीति में आ जाते हैं इसलिए अभी कोई चुनाव नहीं है. अभी हम चुनावी माहौल में यहां सब कहते तो लोग इसका अर्थ निकालते हैं या माहौल खराब कर रहे हैं. इस समय कोई चुनाव नहीं है. इस समय इत्तेफाक है. सारे इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट मीडिया के लोग इस विषय पर हमसे सवाल कर रहे हैं.

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सवाल: इसको ये माना जा रहा है कि दलित और पिछड़े वर्ग को साधने के लिए आप ऐसा कर रहे हैं?

जवाब: आप मुख्य मुद्दे क्यों हटाना चाहते हैं. आप महिलाओं के दुश्मन हैं. आदिवासी, दलितों, पिछड़ों के सम्मान के दुश्मन हैं, जो मुख्य मुद्दा है- आप उसको घुमा करके राजनीति से क्यों जोड़ना चाहते हैं. ये राजनीतिक मुद्दा नहीं है. ये रामचरित मानस राजनीति का हिस्सा नहीं है. रामचरित मानस धर्म से जुड़ा हुआ है, इसकी कुछ चौपाइयों पर मैंने आपत्ति दर्ज की है.

सवाल: बीजेपी का फोकस भी ओबीसी पॉलिटिक्स पर है. प्रधानमंत्री भी उसी समाज से हैं. अब आप भी खुलकर लुभाने की कोशिश में लगे हैं. ऐसो क्यों?

जवाब: एक बार किसी ने कहावत कह दी थी- कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली. प्रधानमंत्री जी को बहुत बुरा लगा था, लेकिन सही मायने में वह दिखावा था. अगर प्रधानमंत्री जी सही मायने में अपने को पिछड़ा मानते तो उसमें पिछड़े और दलित के चेहरे दिखाई पड़ते. उसमें एक भी पिछड़ा, दलित का चेहरा नहीं है. इसका मतलब है कि पिछड़ा का चेहरा दिखावटी है. अंदर कुछ और है.

सवाल: सपा में खुद का राजनीतिक भविष्य कैसे देख रहे हैं, बेटी तो दूसरी पार्टी में है?

जवाब: मेरी 40 साल की राजनीति हो गई है. 6 बार मैं कैबिनेट मंत्री रह चुका हूं. तीन बार नेता विरोधी दल रहा हूं. हमारे लिए विचार ज्यादा महत्व रखता है. पद महत्व नहीं रखता, इसलिए हम विचारों के साथ जब भी कभी टकराना पड़ा तो मैंने विचार को महत्व दिया. पद को नहीं. आपको ध्यान होगा जब मैंने बहुजन समाज पार्टी को छोड़ा, तब मैं राष्ट्रीय महासचिव था. कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त था. नेता विरोधी दल भी था. जब मैंने भाजपा छोड़ी, उस समय भी मैं कैबिनेट मंत्री था और रिकॉर्ड तोड़ काम करने वाला मंत्री था. मुख्यमंत्री जी ने खुद सार्वजनिक तौर पर कई बार स्वीकार किया है. उदाहरण देते थे, लेकिन विचारों पर टकराव हुआ. मंत्री पद और बीजेपी छोड़ने में एक मिनट का विलंब नहीं लगा. जब वहां तक टकराव की नौबत आई, आरक्षण पर डकैती पड़ी, कैबिनेट में विरोध किया. उसके बाद सरकार ने उस निर्णय को रोका. नहीं तो मैंने पार्टी छोड़ने का निर्णय लिया. 5 साल पहले अगर यही वाक्या हुआ होता तो उसमें मैंने छोड़ दिया होता. विदाई ले लिया होता. देखिए, आज मैंने जिस मुद्दे को उठाया, उससे हटना नहीं चाहता. डॉ. संघमित्रा भाजपा सांसद हैं. मुझे आपको जब बातचीत करनी हो तब बात कर लीजिएगा. आज मैं इस विषय पर बात कर रहा हूं, उस विषय से नहीं हटना चाहता हूं. इस गंभीर मामले को हल्का नहीं करना है.

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सवाल: आज की स्थिति में बीजेपी को कैसे हराया जा सकता है? क्या विपक्ष एकजुट हो पाएगा?

जवाब: इंदिरा गांधी जैसी सख्त प्रधानमंत्री और बड़ी नेता को जीरो पर आउट होना पड़ा. मौके-मौके पर विपक्ष संगठित हुआ है. चाहे 77 का रहा हो या 89 का. जनता पार्टी रही हो जनता दल. या फिर ऑल अपोजिशन यूनाइटेड भी होगा. 2024 में बीजेपी की विदाई भी होगी. 

सवाल: क्या आप BSP में वापस जा सकते हैं? जो पॉलिटिक्स कर रहे हैं, वो विचारों से मिलती दिख रही है?

जवाब: पहली बात तो जहां विचारों का टकराव हुआ, मैंने एक बार नमस्कार किया. दोबारा पलट कर कभी नहीं झांका. वापस जाने का प्रश्न नहीं उठता. समाजवादी पार्टी की तरफ से मैं उनके साथ खड़ा रहूंगा. जहां विचार खत्म हो गया, वहां जाकर क्या करूंगा. शायद आपने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी का वह बयान नहीं देखा. सपा जॉइनिंग के वक्त उन्होंने कहा था कि अब बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर और लोहिया के विचारों के साथ समाजवादी पार्टी आगे बढ़ेगी. आज जब मैं बहुजन समाज के विचार की बात रख रहा हूं तो जहां रहूंगा वहां बहुजन समाज रहेगा.

सवाल: क्या आप सपा में प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते थे, लेकिन नहीं बनाया गया?

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जवाब: यह छोटी बात है. जो एक राष्ट्रीय पार्टी का सदस्य रह चुका है. राष्ट्रीय महासचिव रह चुका है. तीन बार नेता विरोधी दल रह चुका है. कैबिनेट मंत्री रह चुका है, उसके लिए प्रदेश अध्यक्ष क्या मायने रखता है. नव सीखिए राजनीति के नेता हैं जो इस तरह की छोटी सोच और तुष्टिकरण करते हैं लेकिन जो लोग स्वामी प्रसाद मौर्या को जानते हैं. पहाड़ से टकराने की आवश्यकता पड़ती है तो विचारों के साथ मैं खड़ा हो जाता हूं और टकराता भी हूं .

सवाल: क्या बीजेपी में वापस जाने की भी संभावना है? सुना है आपके अमित शाह से संबंध भी अच्छे रहे हैं?

जवाब: मैंने दलितों, पिछड़ों, महिलाओं के सम्मान के लिए बात उठाई है. इसमें आने-जाने की बात कहां से आ गई. राजनीति में व्यक्तिगत संबंध सबसे अच्छे होने भी चाहिए. मतभेद वैचारिक होता है. जहां भी रहा हूं और जब तक रहा हूं, सबसे अच्छे सद्भावपूर्ण वातावरण में व्यवहार भी रहा है. काम भी किया है. वैचारिक टकराव हुआ, अलविदा कर दिया. देखिए राजनीति में हार और जीत होती रहती है. चुनाव जीतना और हारना मायने नहीं रखता. विचार मायने रखता है. वैचारिक मतभेद हुआ, मैंने सूर्य नमस्कार कर दिया. सूझ-बूझ का व्यक्ति होगा, वह कभी भी राजनीति में गलत फैसला नहीं लेगा. हम सभी अपोजिशन की पार्टी नेताओं की एक राय है. देश बचाओ, बीजेपी हटाओ, संविधान बचाओ, बीजेपी हटाओ. 

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सवाल: 2024  में गठबंधन का चेहरा कौन होना चाहिए? क्या अखिलेश को भी पीएम फेस के तौर पर देखते हैं?

जवाब: कौन चेहरा होगा, यह बीजेपी में भी तय नहीं था. जनता दल में भी नहीं था. इस समय विपक्ष सरकार बनाने लायक हुआ है. चुनाव सब लोग मिलकर लड़ेंगे. चेहरा अपने आप बाद में आ जाएगा.

सवाल: पार्टी के कई नेता आपके बयान से नाराज हैं. खासतौर से ब्राह्मण नेताओं में नाराजगी है?

जवाब: आपने जो भी नाम लिए, किस वर्ग के हैं उसका भी उल्लेख कर दिया. इसी तरह से जो भी देश के आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों, महिलाओं पर जुल्म-अत्याचार करने के पक्षधर हैं, धर्म के नाम पर अपमानित करने का पाप करते हैं, वही अकेले हमारे विरोध में हैं. वह सभी एक ही वर्ग के हैं, उसके अलावा पूरे देश में हमारे खिलाफ किसी ने जुबां नहीं खोली.
स्वभाविक रूप से पार्टी बड़ी होती है. व्यक्ति छोटा होता है. अगर कोई व्यक्ति बोल रहा है तो पार्टी के आगे उसकी क्या हैसियत है. पार्टी के दया से विधायक-सांसद बनता है या पदाधिकारी बनता है. पार्टी टिकट नहीं देगी तो क्या बनेंगे. वह अकेले चुनाव लड़ेंगे क्या और रही बात आज सवाल सबसे बड़ा यह बनकर आ रहा है. एक ही वर्ग जाति के लोग क्यों महिलाओं के सम्मान के खिलाफ है? आदिवासी, दलितों, पिछड़ों के अपमान के खिलाफ क्यों हैं? एक ही वर्ग विशेष के लोग स्वामी प्रसाद मौर्य के इस अभियान के विरोध में क्यों हैं? हमने कभी ब्राह्मण पर टिप्पणी नहीं की. आपने ब्राह्मण शब्द यूज किया है. हम यह कह रहे हैं हम विरोधी किसी के नहीं हैं. हम महिलाओं, आदिवासी, दलितों, पिछड़ों के सम्मान के पक्ष में हैं.

सवाल: कई लोगों ने पार्टी के भीतर नाराजगी जताई थी, अपने ऐसे विरोधियों को क्या कहेंगे?

जवाब: ऐसे लोगों को जब कभी मौका आएगा, यही महिलाएं, दलित, आदिवासी, पिछड़े मिलकर के सबक सिखाएंगे. राष्ट्रीय अध्यक्ष जी के बयान के बाद उनके गाल पर चांटा अपने आप पड़ गया. पहली बात तो यह है कि जब मैंने कह दिया है कि मेरा निजी बयान है. इसमें समाजवादी पार्टी बार-बार कहां से आ रही. राजनीति मुद्दा इसमें क्यों ले आते हो. यह निहायत सामाजिक सरोकार से जुड़ा... महिलाओं के सम्मान से जुड़ा, आदिवासी, दलितों और पिछड़ों के सम्मान से जुड़ा मामला है. शूद्र समाज को अपमानित ना किए जाने के लिए मैंने आवाज उठाई है. इसमें कोई अपना विरोध मानता है तो उसकी सोच की बलिहारी है. मेरी मंशा किसी वर्ग, किसी समाज, धर्म का विरोध, किसी प्रकार की टिप्पणी करना नहीं है, बल्कि जिनको अपमानित किया जा रहा है उनको सम्मान दिलाने का है. जब कोई स्वामी प्रसाद मौर्या की जीभ काटने की बात करेगा, नाक काटने की बात करेगा, कान काटने की बात करेगा तो स्वामी प्रसाद मौर्या ऐसे लोगों की आरती उतारेंगे.

(इनपुट- प्रशांत श्रीवास्तव)

 

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